Wednesday, November 16, 2016

सुनिये मोदी जी अपनी 'माँ' की

प्रिय नरेंद्र दामोदर मोदी जी,
नमस्कार,
एक माँ की तरफ से ढेर सारा आशीर्वाद। आपने काला धन निकालने की जो मुहिम छेड़ी है, वह काबिल-ए-तारीफ़ है। आपकी नेकनीयत पर मुझे कोई शक नहीं है। बल्कि आपकी ईमानदारी पर कोई प्रश्न चिन्ह खड़े करना आपकी 15 वर्ष से अधिक शासन व्यवस्था के अनुभव को चुनौती देने के समान होगा। यह आपके राजनितिक कद को भी छोटा करने का दुस्साहस होगा। लेकिन चूँकि मैं एक 80 वर्ष से अधिक उम्र की वृद्ध माँ और इस देश की सम्मानित नागरिक के साथ वोटर भी हूँ तो ये पूछने का हक़ रखती हूँ कि आखिर एक सप्ताह से बैंकों के बाहर कोई 'जनसेवक' नजर क्यूँ नहीं आ रहा ? सभी राजनीतिक संगठन आम जनता के इस महत्वपूर्ण कार्य को सम्पन्न कराने से क्यूँ कतरा रहे हैं ? वोट बनवाने या डलवाने के टाइम पर तो वह हर चौखट की कुण्डी खटखटाने से नहीं हिचकते। मैं पूछना चाहती हूँ कहाँ हैं वह सामाजिक संगठन, जो समाज सेवा का डंका बजाते हैँ, लेकिन आज बुजुर्गों की मदद करने के लिए उनके दर्शन दुर्लभ हैं। कहाँ हैं वह चेरीटेबल ट्रस्ट जो बुजुर्गों के कल्याण के लिए धन्ना सेठों से लाखों का चंदा बटोर लेते हैं, लेकिन आज 4000 रूपये के खुले देने के लिए वह कंगाल हो गए है। चूँकि हम बुजुर्गों के आप प्रधान सेवक हैं तो क्या आपकी 'बूढ़ी प्रजा या बूढ़ी माँ' यूँ ही दिन-रात लाइन में लगी रहेगी ? आप कुछ तो बूढ़ी माँ के दर्द पर मरहम मलो। ताकि देश भर की माँओं को 'हीरा बेन' होने का अहसास हो।
आपकी मदद की बाट जोहती
बैंक के बाहर बैठी
एक 'बूढ़ी माँ'।