Friday, December 2, 2016

है ना कमाल की बात

मित्रों नमस्कार, 

4758 लोग कतार में नहीं है

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस शक्तिशाली शैली में 500 और 1000 रु. के करंसी नोट बंद करने का निर्णय लिया, उससे हर अच्छे नागरिक को यही उम्मीद बंधी हुई है. और यही कारण है कि समूचा देश कतारबद्ध है. धक्के खा रहा है. 70 से अधिक निर्दोष, वरिष्ठ भारतीय नागरिक कतार में अपनी जान गंवा चुके हैं. अनेक विवाह समारोह स्थगित हो गए हैं. गांवों में छोटे-छोटे कर्जे मिलने बंद हो गए हैं. देश त्रस्त है. भटक रहा है. मध्यमवर्गीय तो टूट से गए हैं. महिलाएं अपनी घरेलू बचत को देख-देखकर दुखी, भयभीत और सशंकित हंै. घबराहट मची हुई है चारों ओर.

एक बात ये भी है कि कोई ईमानदार इसलिए नहीं होता कि उसे ईमानदार के रूप में पहचाना जाए. वह तो मन से ईमानदार होता है. अपने समर्पण से होता है. अपने त्याग से होता है. अपने कर्तव्य से होता है. यही उम्मीद लोगों को जगी हुई है. ईमानदारी को प्रतिष्ठा मिलने की आशा जगी हुई है. क्योंकि ईमानदार होना व्यक्ति का अपना चरित्र होता है. प्रतिष्ठा के लिए ईमानदारी कारोबार में अपनाई जाती है. वहां यह अनिवार्य है. कुछ यही रवैया सरकारों ने अपनाया है. अपने ईमानदार होने का. जब सरकारें ईमानदार हो जाएंगी तो कोई बेईमान नहीं रहेगा. शायद यही मंशा है मिस्टर प्राइम मिनिस्टर जी की. 

अब बात करते हैं, उस कतार की, जो बैंकों के बाहर लगी है. सर्द सुबह में. घने कोहरे में. ठिठुराती रातों में. ये कतार है मितव्ययी घरेलू महिला की. ऊर्जावान युवा की. भविष्य के प्रति आशांवित युवतियों की. जीवन के अंतिम पड़ाव में जुड़ते बुजुर्गों की. बेहतर स्वास्थ्य लाभ की कामना करने वाले बीमारों और तीमारदारों की. सब लाइन में है. लंबी है लाइन. अनवरत. न टूटने वाली. पर कहीं अनुशासनहीनता नहीं. 

और सुनिए इससे भी अचरज और धीरज रखने वाली बात ये है कि कुछ लोग कतार में नहीं है. बिजनेसमेनों की संख्या अनगिनत है. लेकिन कुछ लोग गिनती के हैं. जो इस देश की जनता ने अपनों में से गिने हैं. चुने हैं. भेजे हैं. नेतृत्व करने को. अपनी बात कहने को. अपने विकास को. संसद तक. विधानसभा तक. है ना कमाल की बात. 4758 लोग कतार में नहीं है. 543 संसद सदस्य और 4215 विधायक. 

दरअसल, इनके लिए लाइन अमर्यादित व्यवहार है. फिर चाहे बैंक की हो, सरकारी दफ्तर की हो, अस्पतालों की हो, या फिर जनता के घर के बाहर दस्तक देने की हो. आज जब जरूरत हर किसी को वोट से ज्यादा नोटों की है, तो ये लोग नोटों से क्यों दूर भाग रहे हैं, ये एक सवालिया निशान खड़े करता है. मुश्किल इतनी भर भी नहीं है, देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं, फिर भी ये बेफिक्र हैं, तो शक का दर्पण खड़ा ही हो जाता है. 
बहरहाल, आज जब देश लाइन में है. नेट के लिए, नोट के लिए, वोट के लिए, खातों के लिए, रोजगार के लिए, हक के लिए, आरक्षण के लिए, संरक्षण के लिए. उस दौर में संसद में मिस्टर जी का मनमोहन बन जाना लोगों की उम्मीदों को तोड़ता हुआ नजर आता है. इसलिए बोलिए जनहित में, तोलिए जनहित में और खोलिए जनहित में. जरूरी राहों को. 

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