Thursday, March 30, 2017

सूबे में संत नहीं संघ चला रहा अपना एजेंडा

मित्रों नमस्कार, 

उत्तर प्रदेश का निजाम बदल चुका है. सन्यासी को सत्ता हासिल हुई है और ये सत्ता बदलने के साथ जमाने ने भी करवट ले ली है. हुक्मरान के आदेश पर हुकुमत के हाकिम अवैध बूचड़खानों को बंद कराने में जुटे हैं. कुछ असलियत में बंद करा रहे हैं तो कई सिर्फ अपना नंबर बढ़ा रहे हैं. ये इसलिए भी क्योंकि कई संवेदनशील, जैसे आजमगढ़, आगरा, फीरोजाबाद, मुजफ्फरनगर, फैजाबाद आदि तमाम जिले ऐसे भी हैं, जहां आधिकारिक तौर पर तो बूचड़खाने बंद हो चले हैं, लेकिन बीफ की बिक्री में अभी कोई कमी दर्ज नहीं की गई है. दुकानों से हटकर ये उपक्रम अब घरों से संचालित होने लगे हैं. ये बात दीगर है कि इसकी भनक सिर्फ 'खाने वालों तकÓ ही सीमित है. 
फिलहाल इस मुद्दे पर सरकार सख्त है, ऐसा दिखाया जा रहा है. अंदरखाने क्या चल रहा है, किसी को पता नहीं है. यह भी इस सूबे की सच्चाई है कि यदि सत्ता 'कट्टरÓ बनी रही तो खुलेआम चलने वाले बूचड़खाने अतीत की बातें हो जाएंगी. होंगी भी क्यों नहीं, इसके पीछे सीधे तौर पर संघ परिवार का एजेंडा काम कर रहा है. संघ अपने उद्देश्यों की पूर्ति अब खुले तौर पर करने से कोई हिचक महसूस नहीं करेगा. वजह साफ है, केंद्र भी उसके हाथ में और देश के दर्जन भर प्रांतों की बागडोर भी संघ की आनुसांगिक पार्टी बीजेपी की मुट्ठी में कैद है. ऐसे में बूचड़खानों को बंद कराना पहली प्राथमिकता पार्टी और सरकार दोनों की हो सकती है.
क्यों हो सकती है, इसके लिए हमें नौ दशक पीछे जाना होगा. यानी बात 1925 की करते हैं. जब संघ की स्थापना हुई. सन् 1925 में अपने स्थापना काल से ही संघ का उद्देश्य हिंदू समाज को अखंडता और सुसंगत तरीके से आक्रामक शक्ति के रूप में परिवर्तित करना था. इसके सदस्यों और संगठन के लिए धार्मिक भावनाएं, राजनीतिक सरोकारों से जुड़ी हुई थीं. अक्टूबर 1952 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया का अंग्रेजी प्रेस में एक हस्ताक्षरित लेख छपा. हालांकि इस तरह के लेख उस दौर में बमुश्किल, लिखने, पढऩे और देखने को मिलते थे. क्योंकि ब्रितानी हुकुमत की सरपरस्ती के चलते ये लेख कभी-कभार ही प्रकाशित किए जाते थे. 
उस लेख के माध्यम से आरएसएस प्रमुख एमएस गोलवलकर यानी 'गुरू जीÓ ने इस बात पर जोर दिया कि 'अपनी जड़ों से कटकर कोई देश पुन निर्माण नहीं कर सकता है. इसलिए ये जरूरी है कि हम अपने मौलिक विचारों और मूल्यों को फिर से जिंदा करें. उन तमाम चिन्हों और प्रतीकों को खत्म कर दें, जो हमें हमारे अतीत की गुलामी और अपमान की याद दिलाते हैं. यह हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए कि हम अपने आपको पवित्रतम मौलिक रूप में देखें. हमारा वर्तमान और भविष्य हमारे स्वर्णिम अतीत के साथ पूर्ण रूप से एक्यबद्ध होना चाहिएÓ....इस तरह पेश किए गए आदर्श को क्या स्वरूप दिया जा सकता है या उसका क्या मतलब निकाला जा सकता है. 
आरएसएस के लिए आखिर वे कौन-कौन से खास उद्देश्य थे जो युवाओं को अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए प्रेरित कर पाते? संघ प्रमुख की राय में भारत एक हिंदू राष्ट्र था. हिंदू खुद ही कई जातियों, पंथों और भाषाओं के अलावा क्षेत्रों में विभाजित थे. इसलिए संघ का उद्देश्य हिंदू समाज को मजबूत और सुसंगत तरीके से लड़ाकू बनाना था. आज भी ये एजेंडा संघ के लिए उतना ही प्रासंगिक है, जितना स्थापना काल यानी 1925 में था. खास बात ये है कि गाय के प्रति गोलवलकर जी की व्यक्तिगत श्रद्धा थी. इस पर कोई शक नहीं कर सकता. फिर भी गो हत्या पर प्रतिबंध को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाने संबंधी आह्वान किसी विराट उद्देश्य के प्रति समर्पित था और वह उद्देश्य था हिंदू समाज को एक सूत्र में बांधना. 
जाहिर तौर पर गाय पूरे हिंदुस्तान में पाई जाती है. उसी तरह हिंदू भी पूरे देश में, और अब दुनिया के कोने-कोने तक फैले हुए हैं. हिंदू गाय को पूजनीय और प्रात: स्मरणीय मानते हैं, लेकिन मुसलमान और ईसाई गाय को बीफ के नाम से पुकारते हुए उन्हें काटते हैं. एक-दो परिवार इस धर्म के अपवाद हो सकते हैं. (मैं जब ये लेख लिख रहा हूं तो एक मुसलमान मेरे बगल में ही बैठा है.) इस तर्क के आधार पर ही आरएसएस एक राष्ट्रव्यापी अभियान की शुरूआत करना चाहता था. और आज जब वह अपनी आनुसांगिक पार्टी भाजपा को सत्ता के शिखर तक पहुंचा चुका है, तो उसके उद्देश्यों की पूर्ति होती हुई दिख रही है. ये मुहिम करीब 15 वर्ष पहले गुजरात से शुरू हुई और अब उत्तर प्रदेश में इसका व्यापक असर दिख रहा है. 
...तो ये कहना गलत नहीं होगा कि सरकार के सिंहासन पर बैठा शख्स कोई अवैध कानून का पालन नहीं करवा रहा, बल्कि वह तो संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक बड़ी लकीर को खींचने में जुटा हुआ है. बेशक ये साहसिक कदम है, लेकिन बहुमत, मजबूत इच्छा शक्ति और कट्टरवादिता के बिना ये संभव नहीं था. अवैध बूचड़खाने बंद करना अच्छी बात है, लेकिन हुक्मरानों को इस गोरखधंधे से बेजार बाजार और बेरोजगार हुए लोगों के लिए नीति संगत कदम उठाने होंगे. ताकि मुसलमानों को लगे कि थोड़ा बहुत जो भी उन्होंने वोट बीजेपी को दिया, वह सार्थक सिद्ध हुआ. वरना देश और प्रदेश एक बार फिर सांप्रदायिकता की आग में जल सकता है..

आपका 
गौरव

Sunday, March 12, 2017

हर कैंडिडेट को मिला 40 फ़ीसद से अधिक वोट

मित्रों नमस्कार,
मेरी कलम से निकला चुनावी परिणाम का एक विश्लेषण।

सरकार को  कमीशन नहीं अब जरूरत है मिशन की

मित्रों नमस्कार,

'करेंगे आप, ये आपका वादा था. 
अब आप ही करेंगे, ये आपका दावा रहेगा. 
आप करके दिखाएंगे ये आपकी कसौटी होगी.'

उत्तर प्रदेश. 22 करोड़ मतदाताओं की उम्मीदों का प्रदेश. जहां आज एक लहर आई. लहर नहीं सुनामी कहिए. जो लहरों से लड़ते रहे, उन्हें उम्मीद नहीं थी सुनामी आएगी. अब उसी रौ में भगवा लहरा रहा है. हर तरफ. हर जगह. हर जाति पर. हर मजहब पर. हर शख्स पर भगवा रंग चढ़ा है. न मालुम पड़ता है कौन हिंदू है कौन मुसलमान. हुकुमत बदल चुकी है. हाकिम नए होंगे. हुक्मरान भी बदलने वाले हैं. चेहरे तय हो चुके हैं. बस सिंहासन पर बैठने की देर है. ये देर भी जल्द खत्म होगी. 15 मार्च तक का वक्त काटना होगा सिर्फ. तभी 'उत्तम प्रदेश' में 'काबिल', 'सुल्तान', 'दबंग' और 'टाइगर' सत्ता पर काबिज होंगे. साहब और सरकार ज्यों ही बैठेंगे. उनका 'मिशन-कश्मीर' की तरह 'मिशन यूपी' शुरू हो जाएगा. मिशन, मिशन ही रहेगा, ये ही उम्मीद लगाए बैठा है जनमानस. ये मिशन 'कमीशनÓ में नहीं बदलेगा, इसी आस और भरोसे से तो उन्होंने सत्ता बदली है. 

- सोचा है, (किसानों ने) अब सारे कर्जे माफ होंगे. 
- सोचा है, (शहरवासियों ने) सड़क, पानी और बिजली मिलेगी. 
- सोचा है, (बहू-बेटियों ने) सुरक्षा है, मिल जाएगी हमको. 
- सोचा है, (युवाओं ने) रोजगार मिल जाएगा उनको. 
- सोचा है, (उद्यमियों ने) ईधन और लागत कम होगी. 
- सोचा है, (गरीबों ने) आवास और शिक्षा मिलेगी. 

यानी, चुनौती है. सत्ता के सामने. विपक्ष की नहीं. विरोध की नहीं. हंगामे की नहीं. शोर-शराबे की नहीं. वॉकआउट की नहीं. बिल पास होने की नहीं. न किसी आंदोलन की. बस, सिर्फ जनतंत्र की उस उम्मीद की, जिसने लोकतंत्र की कसौटी पर 'हरा-लाल' झंडा उतारकर 'भगवा' लहराया है. अब न केंद्र की फिक्र है, न राष्ट्रपति शासन की. जोड़-तोड़ की चिंता भी नहीं है. गठजोड़ करना नहीं है. बस सामने है तो जनता की उम्मीदों का आकाश. जिसे जमीन तक ला पाना असंभव तो है, लेकिन नामुमकिन नहीं. इच्छा शक्ति मजबूत करनी होगी. नहीं की तो, हश्र क्या होगा. सब जानते हैं. यूपी का मिजाज. अब बदल चुका है. 

परिवर्तन होता है.
सत्ता का. 
खुला और साफ लफ्जों भरा जनादेश. 

- 2002 में हुआ. 
- 2007 में हुआ. 
- 2012 में हुआ. 
- अब, 2017 है.
- 2019 आएगा. 
- और, 2022 भी.

मना लीजिए, जश्न. जब तक जी चाहे. आपका मन भर जाए तो जरा गौर भी फरमाइए. इस यूपी पर. जहां अपराध है. लूट-खसोट मची है. असुरक्षा है. अपहरण है तो चीरहरण भी है. महंगाई इतनी, कि रोटी नमक से ही मिलती है. गरीब, मजलूम और मजदूरों का. साग-सब्जी की खुशबू त्योहारों पर महकती है. इधर, विकास के इंजन को 'बत्ती' चाहिए. नलों में पानी भी. अन्य मुददे भी हैं. क्षेत्रवार. तहसीलवार. जातिवार और विशेषतौर पर धर्मवार. वादा है आपका, मंदिर भी बनाएंगे. कोर्ट के नियमों पर गौर करते हुए. तो अब जो कहा, उसे करिए भी. लोकतंत्र की कसौटी पर खरा उतरने की आवश्यकता है. 'लुटियंस की दिल्ली' आपकी है. 'अकबर की सल्तनत' भी आपको मिल चुकी है. एक-दो नहीं 325 हैं आप. 73 सांसद हैं आपके. सिर्फ इच्छा शक्ति को और मजबूत कीजिए. 

करेंगे आप, ये आपका वादा था. 
अब आप ही करेंगे, ये आपका दावा रहेगा. 
आप करके दिखाएंगे ये आपकी कसौटी होगी. 

आपका, 
गौरव