
कृष्ण अंतत: क्या है?
रह-रहकर यह सवाल उठता है. क्या है उनकी संपूर्ण यात्रा....
आइए एक मानव से महामानव और परमेश्वर की संज्ञा से परिभाषित श्रीकृष्ण के सफर पर चलते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की तलाश करते हैं.
विश्व संस्कृति के इतिहास में मात्र श्रीकृष्ण ऐसे हैं, जिनकी जीवन यात्रा कारागार से आरंभ होकर कल्पतरू तक बनी. सभी तरह के हारे, घबराए, जीवन से निराश लोगों को साहस, आत्मविश्वास और वत्सल छांव प्रदान करती है. कृष्ण के बारे में सोचें...
जिसके जन्म लेने से पूर्व ही सत्ताधारियों ने उसकी हत्या करने का कुचक्र रच डाला था.
जिसे धरती छूते ही उसकी मां की गोदी से छीन लिया था.
आज जब चिकित्सा विज्ञान यह दावा करती है कि कोख से जन्म लेने के आधा घंटे के भीतर मां का स्तनपान शिशु को पौरूषत्व प्रदान करता है, उस दौर में देवकी के हृदय के टुकड़े को छीनकर जन्म के चंद क्षणों बाद ही वासुदेव ने उफनती कालिंदी को पार कराया. अर्थात बृज क्षेत्र का माखनचोर कृष्ण को अपनी असल मां का दूध तक पीने को नहीं मिला था.
सारे मिथक, इतिहास लोकगाथाएं खंगाल लें. कहां मिलेगा आपको कृष्ण सा जन्मजात आउटसाइडर. गर्भ के अंधकार से यूं बाहर फेंके गए हम सभी रोएं हैं, कृष्ण कई लोगों के आंसुओं का कारण लेकर पैदा हुए.
शायद ही कोई होगा, ऐसा लड़खड़ाकर चलने वाला बच्चा, जिसे सुनना पड़ा यह ताना कि तू गोरा नहीं काला है. यशोदा, उसकी मां नहीं, उसने तो बस उसे पाला है. दुधमुंही उम्र और इतना जहर आसपास. कोई और होता तो कच्ची उम्र में न्यूरॉटिक हो जाता. या क्या पाता नंदमहल की खिड़की से यमुना में छलांग लगा देता. आज की युवा पीढ़ी और बालमन यह ध्यान रखे कि कृष्ण ने वह सब नहीं किया.
आयु बढऩे के साथ-साथ कृष्ण ने साहसिक कदम उठाया. इतना साहसिक कि इंद्रपूजा का विरोध तक कर डाला. वर्षा जब धरासार होने लगी तो ब्रजवासियों के लिए गोवर्धन पर्वत उठाकर कृष्ण ने छत्ररक्षक की भूमिका निभाई.
श्रीकृष्ण चरित का निहितार्थ समझें. इंद्रियों का अर्थ गमन या गो. एक बार पहाड़ उठा ले कोई, डूबने से बचा ले अपनों को, तो समझिए कि इंद्रियां सध गईं. उनके साथ काल के प्रवाह में बहने की जगह उन्हें ऊध्र्वमुखी करने को रास कहा जाएगा. अब कृष्ण के आंतरिक प्रभाव की ओर मुड़ें. जब ब्रज की गोपियां भरमाई सी जिंदगी जीने लगीं, तब एक-एक गोपी के वास्ते कृष्ण रास के व्यसन में डूब गए. यमुना की रेत, मयूर की तान, गौ के चारे, दही की मटकी, चूल्हे की आग, राख, धड़कन, सांस, नींद, आंगन, पानी. एक-एक रंग में इंद्रधनुष. कहां-कहां कृष्ण नहीं दीख पड़े थे.
मथुरा पहुंचे श्रीकृष्ण को जीवन की कई त्रासदी झेलनी पड़ी थीं. जरासंध का हमला, कालयवन से प्राण बचाने की नौबत, भिक्षा मांगकर खाना. कई ऐसे प्रसंग जो कृष्ण के जीवन को संघर्ष से भरपूर बनाते हैं. कुरूक्षेत्र के मैदान में अर्जुन जब युद्ध लडऩे से इनकार कर देता है, अपनों को सामने देख शस्त्र गिरा देता है. तब श्री कृष्ण के मुख से गीता के रूप में वाणी प्रखर हुई. जो आज की रहस्य ग्रंथ मानी जाती है.
भ्रष्ट सत्ताधीशों को उखाड़ फेंकने की कला भी श्रीकृष्ण ने सिखाई. आधुनिक युग की मैनेजमेंट टेक्नीक को भी पहले-पहल श्रीकृष्ण ने ही समझा. उन्होंने युधिष्टर से जहां अश्वात्थामा कहलवाया, वहीं भीम के समक्ष शिखंडी को लाकर खड़ा कर दिया. जिसे आजकल के लोग कूटनीति कहते हैं. जयद्रथ वध उनके दूरदृष्टा का परिचय देने के साथ आधुनिक युग शब्दावली का आपदा प्रबंधन कहलाता है. देह छोडऩे के पूर्व श्रीकृष्ण ने जराव्याध को क्षमा दी थी. इसके साथ स्वर्ग और सुख प्रदान किया. इसीलिए श्रीकृष्ण के रूप और व्यक्तित्व को परिभाषित करना असंभव है.
अब जरा विचार करें कि यदि श्रीकृष्ण न होते तो ललित कलाओं का क्या होता. इतिहास गवाह है कि हर कला की धुरी श्रीकृष्ण पर टिकी है. श्रीकृष्ण योगेश्वर भी हैं और ढेरों विरोधी के संगम भी. हम सभी उनकी भक्ति में लीन हैं. उनके जैसा चरित्र खोजने की कल्पना करना भी बेमानी भरा है. क्योंकि कान्हा सौ पंखुरियों के कमल हैं.




