गुजरात में आरक्षण की आग लगी हुई है. अभी चन्द महीनों पहले तक आरक्षण का मुद्दा हरियाणा और राजस्थान में हिंसक हुआ था. गुर्जरों ने यह मुद्दा उठाते हुए रेल पटरियों को नुक्सान पहुंचाया. अब कुछ यही हालात गुजरात में नजर आ रहे है. युवा नेता हार्दिक पटेल ने पटेलों की गुमनामी को चीरते हुए आंदोलन की सुनामी ला दी है. दरअसल, पटेलों के आरक्षण का मुद्दा न्य नहीं है. ये गाहे-बगाहे उठता रहा है, लेकिन इसे वो बुलंदी नहीं मिल सकी जो, मिलनी चाहिए थी. ये कहना भी गलत नहीं होगा कि मांग को पुरजोर तरीके से उठाने वाला कोई अगुआ नहीं था. वैसे भी गुजरात में महात्मा गांधी के बाद सरदार बल्लभ भाई पटेल ही बहुचर्चित नेता बने. जिन्होंने गृहमंत्री रहते हुए अपने परिवार या समुदाय उत्थान की बात पर गौर नहीं किया..इसीका परिणाम था की उनकी विरासत सँभालने का मौका राज्य के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल को मिला. पटेल के मुख्यमंत्री बनने तक तो ठीक था, लेकिन पटेल की जनविरोधी नीतियों क चलते उनके खिलाफ भी आवाज उठने लगी..संयोग से ये आंदोलन भी छात्र नेताओं के नेतृत्व में हुआ. यानी युवा ही इस आंदोलन की आवाज बने. युवाओं की आवाज थी कि जनविरोधी नीतियों के खिलाफ राज्य सर्कार इस्तीफा दे. नवनिर्माण के नाम से जाना जाने वाला ये आंदोलन हिंसक भी हुआ.बसों और कार्यलयों में आग लगा दी गई. चिमनभाई पटेल उर्फ़ चिमन चोर को इस्तीफा देना पड़ा. इस घटना का जिक्र इसलिए भी करना पड़ रहा है क्योंकि वर्तमान में जो केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार है, वह यह कहते हुए नहीं थकती है कि सरदार बल्लभ भाई पटेल उनके आदर्श हैं. और 70 के दशक की सरकारों ने भी पटेलों के लिए कुछ किया नहीं. तो बात सीधी सी साफ है महापुरुषों के नम पर राजनितिक समर्थन तो हासिल कर लेते हैं लेकिन जब बात महापुरुषों के समुदाय के हक़ और हकूक की आती है तो ये दल बैकफुट पर आ जाते है. गुजरात के मुख्यमंत्री पद को छोड़कर प्रधानमंत्री बने नरेंद्र भाई मोदी और उनकी विरासत सँभालने वाली मुख्यमंत्री आनंदीबेन को ये समझना होगा की 'हार्दिक इच्छा' कितनी जायज़ है. दरअसल राज्य में 2017 में विधानसभा चुनाव है ऐसे में पटेलों का प्रदर्शन अपने आप अहम हो जाता है. संख्याबल तो है ही, और राज्य व केंद्र सरकार इसे दमन करने का प्रयास करतीहैं तो उन्हेँ विधानसभा चुनावों में परिणाम भुगतन पड़ सकता है. तो अब सवाल उठता है कि आखिर आंदोलन रुकेगा कैसे? बेशक प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदी राज्य में गुजराती भाषा में शांति की अपील क्र रहे हैं, लेकिन आरक्षण देने या न देने पर जल्द फैसला करने की चुनौती उनके सामने खड़ी हुई है. क्योंकि आंदोलन गुजरात में 15 वर्ष के बाद परिवर्तन की आहट करने को तैयार खड़ा हुआ है और ये बात भी सच है कि इतिहास दोहराये बिना नहीं रहता है...
आपका गौरव लहरी :)
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