हिन्दू. इस शब्द के सुनाई और दिखाई देते ही एक अनूठी सभ्यता का बोध होने लगता है. सभ्यता ऐसी जो अनगिनत है. सभ्यता ऐसी जो अक्षुण्ण है. प्रेरणादायक बनती है. सभ्यता ऐसी जो अंत समय (जन्म से लेकर मृत्यु) तक साथ रहे. मृत्यु बाद भी उसका निर्वहन किया जाता रहे. यही है हमारे न्दिू होने का गौरवशाली और वैभवशाली सत्य. इसे धर्म निरपेक्षता या सांप्रदायिकता के दायरे में रखना उचित नहीं है. बल्कि इसके विस्तृत दायरे को पहले समझना आवश्यक हो जाता है. सृष्टि की शुरूआत से हिन्दू शब्द चला आ रहा है. सुनाई दे रहा है. दिखाई दे रहा है.
ये शब्द उतना ही व्यापक है जितना ब्रहमांड. हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दुस्तान का बखान केवल हिन्दुस्तानियों ने नहीं किया है, बल्कि इस्लाम, यहूदी, जैन, शक, ईसाई, और अन्य विचारधारा और सभ्यता में विश्वास रखने वाले व्यक्तियों ने भी किया है. 11 सितंबर 1893 को विश्व धर्म सम्मेलन के अवसर पर भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करते हुए 'स्वामी विवेकानन्द जीÓ ने बहुचर्चित भाषण देकर हिन्दू सभ्यता से समूची दुनिया को अवगत कराया. उन्होंनें जब अपना ओजस्वी भाषण दिया तो पश्चिमी सभ्यता के कई दार्शनिक और तर्कशास्त्रियों ने अचरज भाव ही नहीं प्रकट किया बल्कि अपनी अगाध आस्था भी इस अनोखी सभ्यता में व्यक्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
जिक्र और भी है. दुनिया के नामी-गिरामी दार्शनिक 'लियो टॉल्सटॉयÓ अपने 82 वर्ष के जीवनकाल में हिन्दू विचारधारा के समर्थक रहे. करीबन 100 वर्ष तक जिंदगी जीने वाले महान दार्शनिक 'हर्बर्ट वेल्सÓ ने एक दिन कहा था कि 'हिन्दुत्व का प्रभावीकरण फिर होने तक अनगिनत कितनी पीढिय़ां अत्याचार सहेंगी अज्ञैर जीवन कट जाएगा. तभी एक दिन पूरी दुनिया उसकी (हिन्दू) ओर आकर्षित होगी और उसी दिन दुनिया आबाद होगी. सलाम हो उस दिन कोÓ. हिन्दु सभ्यता का लोहा मानने का सिलसिला यहीं नहीं थमता है. कई और महान ज्ञाता और दर्शन शास्त्र के विद्वान अपने विचारों में हिन्दू सभ्यता से सहमत दिखते हैं.
महान वैज्ञानिक 'अल्बर्ट आइंस्टीनÓ (1879-1955) को ही लीजिए. वह समझते थे कि 'हिन्दुओं ने अपनी कुशाग्र बुद्धि और जागरूकता के माध्यम से वह किया जो यहूदी न कर सके. उनका मानना रहा कि हिन्दुत्व में ही वह शक्ति है, जिससे समाज में शांति की स्थापना की जा सकती हैÓ. उक्त महान विचारक और दार्शनिकों का उदाहरण मैं इसलिए भी दे रहा हूॅं क्योंकि ये सभी भारतीय मूल के नहीं है. हिन्दू रवायतों और धार्मिक परंपराओं का बोध भी इन्हें ना के बराबर रहा होगा. फिर भी अपने अनुभव और गहन चिन्तन से अपनी दूरदर्शी विचारधारा के जरिए दुनिया भर के सामने हिन्दू सभ्यता की वकालत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
भारत की प्राचीनता को विद्वानों ने सारगर्भित रहस्य के साथ-साथ सृष्टि की उत्पत्ति का उत्तम स्रोत मानते हुए अपने मतों को रखा है. 1503 से 1566 तक के अंतराल में यूरोप के एक मशहूर दार्शनिक हुए, 'माइकल नोस्टरैडैमसÓ. आज से करीब 90 साल पहले उन्होंने ये अविश्वसनीय घोषणा कर दी कि हिन्दुत्व ही यूरोप में शासक धर्म बन जाएगा बल्कि यूरोप का प्रसिद्ध शहर हिन्दू राजधानी बन जाएगा. नोस्टरैडैमस की ये सोच आज भी दुनिया के कई देशों पर शासन करने वाले राष्ट्र संयुक्त राज्य अमरीका पर सार्थक सी साबित होती दिखती है, जब कोई भारतीय मूल का व्यक्ति व्हाइट हाउस की दौड़ में शुमार होता है. यह बात अलग है कि ये दौड़ अमेरिकी प्रेसीडेंट के इलेक्टोरियल नियमावली की वजह से अधूरी रह जाती है.
तब भी हिन्दू सभ्यता का वर्चस्व कम होता नहीं दिखता है. मौजूदा वक्त में नेपाल पूर्ण हिन्दू राष्ट्र है. भूटान, म्यांमार और श्रीलंका के अलावा मॉरीशस में हिन्दू सभ्यता अच्छे खासे तरीके से पल्लवित होती हुई दिखती है. दरअसल इसके पीछे हिन्दू सभ्यता की एक वैज्ञानिक और तार्किक विचारधारा नजर आती है. वह यह है कि हिन्दू ही सुलह और सुधार की बात करता है. समझौतों की गुंजाइश रखता है. आर्थिक शक्ति बनने की ओर बढ़ता है. डिजीटल की तरफ रूझान करता है. इसलिए हिन्दू सभ्यता को महज एक धर्म और वोट के दायरे में बांधकर रखना गलत होगा. हमें चाहिए कि 'हिन्दूÓ शब्द के सारगर्भित रहस्य को और समझा जाए. इसकी संस्कृति और विचारधारा को व्यापक बनाया जाए. इसे सांप्रदायिकता या धर्मनिरपेक्षता के दायरे में बांधकर रखना गलत होगा.
आपका
गौरव
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