Monday, October 16, 2017

अब याचना नहीं, रण करने में सक्षम बन रहा अपना भारत 

यह खुशी का अवसर है. गर्व करने का वक्त है. वजह है, स्वदेशी एंटी-पनडुब्बी जहाज आईएनएस किलटन का भारतीय नौसेना में शामिल होना. 'मेक इन इंडिया' के जरिए, यह हमारे लिए जरूरी ही नहीं अनिवार्य भी है. सैन्य ताकत का बढऩा इसलिए भी जरूरी और लाजिमी हो जाता है क्योंकि दुनिया भर में, विशेष तौर पर पश्चिमी देशों में भारत का कद लगातार बढ़ रहा है. यह बढ़ता कद चीन और पाकिस्तान सरीखे देशों को रास नहीं आ रहा है. वह लगातार भारत की कूटनीति, सैन्य ताकत और अर्थनीति को छिन्न-भिन्न करने की नाकाम कोशिशों में जुटे हैं. डोकलाम विवाद हो या फिर जम्मू और कश्मीर में आतंकी हमलों का मसला. दोनों ही स्थितियों में चीन और पाकिस्तान को भारत के साथ-साथ अन्य देशों का भी दबाव झेलना पड़ा है. अब जब नौ सेना में आईएनएस किलटन सरीखा युद्धपोत शामिल हो गया है तो समुद्री सीमा की रक्षा में नौसेना को काफी मदद मिलेगी. बंगाल की खाड़ी और दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को रोकने में अमेरिका की अप्रत्यक्ष तरीके से मदद होगी. इससे न सिर्फ विस्तारवादी नीति को अपनाए बैठा चीन हतोत्साहित होगा, बल्कि उसे भारत की तरफ न चाहकर भी सकारात्मक रूख अपनाना पड़ेगा. क्योंकि आईएनएस किलटन दुश्मन की पनडुब्बी तक को तहस-नहस करने की ताकत रखता है. इसके अलावा यह शिपयार्ड अत्याधुनिक हथियारों और सेंसर से युक्त है. इसमें हेवीवेट टॉरपीडो, एएसडब्ल्यू रॉकेट, 76 एमएम कैलिबर मिडियम रेंज बंदूक और दो बहु बैरल 30 एमएम बंदूकें शामिल हैं. फायर कंट्रोल सिस्टम, उन्नत ईएसएम (इलेक्ट्रॉनिक सपोर्ट मेजर) सिस्टम, सबसे उन्नत सोनार और रडार को इंस्टॉल किया है. इधर, सोमवार को रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन की मौजूदगी में 'भारतीय नौसेना की बढ़ रही शक्ति को दर्शाने के लिए शामिल किया है किलटन' बयान देकर सेना ने पड़ोसी देशों के चेहरे पर चिंता की लकीरें जरूर खींच दी हैं. एक खास बात और है कि किलटन बनाने के सफल प्रयोग के बाद देश के इंजीनियरों ने दूसरे देशों की 'निर्भरता' को खत्म कर दिया है. हालांकि जहाज में आगे चलकर कम दूरी के एसएएम सिस्टम को लगाया जा सकेगा और एएसडब्ल्यू हेलीकॉप्टर को उतारा जा सकेगा. लेकिन फिर भी यह भारतीय जहाज रुस में बने उस जहाज की विरासत का दावा करता है, जो 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' में उपयोग में लाया गया था. लिहाजा पड़ोसी देशों युद्धवादी नीति बदलकर दोस्ताना नजरिया अपनाना होगा.