लखनऊ को आगरा से जोडऩे वाले लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे के लिए 24 अक्टूबर का दिन ऐतिहासिक भरा रहा. तेज रफ्तार मार्ग में लड़ाकू और परिवहन वाहनों के टच डाउन करने का एक अध्याय और जुड़ गया. इससे पहले भी 2015 में मथुरा के पास यमुना एक्सप्रेस-वे पर वायुसेना के लड़ाकू विमान मिराज-2000 टच डाउन करके उड़े थे. यानी यूपी की सरजमीं पर सियासत की महत्वपूर्ण महत्वाकांक्षा परिणति स्वरूप बने दोनों ही एक्सप्रेस-वे अब वायुसेना के विमानों को उतारने के काबिल हैं. आसमानी सेना का यह अभ्यास जरूरी होने के पीछे बड़ा तर्क यह है कि देश में विपरीत परिस्थितियों या युद्ध सरीखे हालातों पर विमानों को उतारने के लिए एक नया विकल्प देश-प्रदेश के पास उपलब्ध है.
बेशक यह खुशी की बात है.
हमें यह गुरूर भी होना चाहिए.
सियासतदां को इतराना भी चाहिए.
सरकारों का सीना 56 इंच का होना चाहिए.
कि इतना लंबा और कई शहरों के फासले को कम करने वाला हाईवे अब हमारी झोली में है.
लेकिन,
जरा ठहरिए, सोचिए और संभलिए.
कि क्या फर्राटे भरवाने वाले हाईवे पर आप सुरक्षित हैं. आपकी जिंदगी को कोई जोखिम नहीं है. नहीं, कतई नहीं. यह कहना गलत होगा. यह एक्सप्रेस-वे जिंदगियों को बेहिसाब तरीके से लील रहे हैं. खुद एक्सप्रेस-वे को मंजूरी देने वाले केंद्रीय और राज्य के विभागों के आंकड़े इस बात के गवाह हैं. एनसीआरबी के आंकड़ें उठाएं या फिर पीआईबी द्वारा रिलीज सेंट्रल मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाईवेज की रिपोर्ट पर आंखें गड़ाई जाएं. तो निश्चित तौर पर आंखें फटी रह जाएंगी.
यमुना एक्सप्रेस-वे की ही बात करें तो अगस्त 2012 से लेकर अब तक 4000 से ज्यादा एक्सीडेंट यहां हो चुके हैं. 2012 के 275 हादसों में 33, 2013 के 896 हादसों में 218, 2014 के 771 हादसों में 127, 2015 के 919 हादसों में 142 और 2016 के 1193 हादसों में 128 मौतें हो चुकी हैं. 2017 में भी मौत का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है. अभी हाल ही में 3 नवंबर 2017 को स्कूली बच्चों से भरी हिमाचल प्रदेश से आ रही बस का टायर फटने से ड्राइवर की मौत हुई. इसमें 30 बच्चे घायल हुए और आधा दर्जन से ज्यादा स्टाफ को गहरी चोटें आईं. एक दिन पहले ही आगरा शहर के एक युवा कारोबारी ने ड्राइवर समेत इसी एक्सप्रेस-वे पर दम तोड़ दिया. अब सीधे तौर पर यह कहना जरूरी भी हो गया है कि एक तरफ तो सरकार इन एक्सप्रेस-वे पर फाइटर प्लेन को उतार रही है और दूसरी ओर उन्हीं एक्सप्रेस-वे पर सवारी वाहन ही सुरक्षित तरीके से नहीं दौड़ पा रहे हैं.
मुश्किल इतनी भर नहीं है, एक्सप्रेस-वे न सिर्फ मौत के रास्ते साबित हो रहे हैं बल्कि लोगों को उनकी मंजिल तक भी नहीं पहुंचा पा रहे हैं. जिस उददेश्य के लिए यह हाईवे बनाए गए, मसलन इन पर फर्राटे भरते हुए कम समय में एक लंबी दूरी को तय किया जा सकता है, वह भी उददेश्य तमाम जिंदगियों का अधूरा ही रह जाता है. और ऊपर से सरकार देश भर में इसी तरह के एक-दो नहीं बल्कि 22 एक्सप्रेस-वे बनाने का दावा कर रही है. और सभी एक्सप्रेस-वे पर फाइटर प्लेन उतारने का भी दंभ भर रही है. इनमें दिल्ली-मुरादाबाद, दिल्ली-मेरठ और मुंबई-पुणे सरीखे कई एक्सप्रेस-वे शामिल हैं. लेकिन इससे इतर होकर यदि हम इन एक्सप्रेस-वे पर सुरक्षित सफर की बात करते हैं तो वह कहीं होता दिखता नहीं है. बेशक यह युद्ध और आपातकाल की दृष्टि से उचित हो सकता है, लेकिन दोनों ही परिस्थितियां गाहे-बगाहे कई दशकों में एक या दो बार ही आती हैं. चीन और पाकिस्तान से विवाद इतने चरम पर हैं, फिर भी युद्ध जैसे हालात नहीं बनते दिख रहे हैं.
दूसरी तरफ, पीआईबी द्वारा केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट को ही लीजिए. ज्यादा दूर नहीं सिर्फ 2016 के आंकड़े ही उठा लीजिए. इस साल 4 लाख 80 हजार से अधिक एक्सीडेंट सड़कों पर हुए, और उनमें एक लाख 50 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई. इतना ही नहीं इन हादसों में मरने वाले 83 फीसद लोग 18 से 65 आयु वर्ग के थे. जबकि 18 साल से कम आयु वर्ग के सात फीसदी किशोरों को इन हाई स्पीड सड़कों ने लील लिया. चार लाख से अधिक हादसों में पांच लाख लोग घायल भी हुए. अब इसे क्या कहा जाएगा. यह दु:ख की बात है.
सरकारों और उसमें बैठे जिम्मेदारों को मानव सुरक्षा के प्रति गंभीर होना पड़ेगा.
उन्हें सफर कराएं,
तेज कराएं,
कम दूरी का कराएं.
अच्छी बात है, लेकिन
सुरक्षित कराएं,
सहूलियत भरा कराएं,
सुकुन से घर पहुंचाएं,
समय से कराएं,
यह और भी अच्छा रहेगा.
सरकार के लिए.
गौरव लहरी.