मानव सभ्यता और भारतीय संस्कृति पर करारी चोट है यह
राजस्थान
के झुंझनू में मलसीसर के डाबड़ीधीर सिंह गांव में दो अगस्त को तीन साल की
मासूम के साथ 21 साल के युवक विनोद बंजारा ने दरिंदगी की हदों को पार करते
हुए दुष्कर्म किया। इस मामले में 19 दिन पहले पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की।
शुक्रवार को इस मामले में बाल अधिकार संरक्षण अायोग अधिनियम की विशेष
न्यायालय की न्यायाधीश नीरजा दाधीच ने इस पर फैसला सुनाते हुए दोषी विनोद
बंजारा को फांसी की सजा सुनाई। दुष्कर्म की सजा फांसी हो, इससे बेहतर न्याय
पीड़ित और उसके परिवार के लिए नहीं हो सकता। बेशक आप यह तर्क दे सकते हैं
कि इसमें कौन सा बड़ा और सख्त फैसला न्यायाधीश ने सुना दिया। यह तो देश की
कई उच्च और सर्वोच्च अदालतें कई बार बहुचर्चित मामलों में सुना चुकी हैं।
फिर नई बात क्या हो गई। हां, यह तर्क सही हो सकता है, लेकिन नई और खास बात
इस फैसले में न्यायाधीश की टिप्पणी, भावुकता और संवेदनाओं का जिक्र, जिन
शब्दों में किया गया है, वह अंर्तमन को झकझोर देने वाले हैं।
अंतर्मन को झकझोरने वाली टिप्पणी
भारत के
इतिहास में यह पहली मर्तबा है, जब किसी न्यायाधीश ने अपनी टिप्पणी को
काव्यात्मक लहजे में पेश किया है। न्यायाधीश नीरजा दाधीच ने 20 लाइन की
कविता में दरिंदगी के खिलाफ जो टिप्पणी की है, वह उन परिवारों की पीड़ा है,
जो इस दंश को कई सालों से झेल रहे हैं। अपनी कविता में सिर्फ और सिर्फ
पीड़ितों का दर्द लिखा है। वह पीड़ा लिखी है, जिसे देख और सुनने के बाद कई
रात वह सो नहीं पाते। जिसे झेलने के बाद उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर एक ना
मिटने वाला दाग लग जाता है। उस दर्द को लेकर वह हर पल सिहरते हैं, सिसकते
हैं, रोते हैं, कराहते हैं, पर उनके आंसू पौंछने वाला कोई हाथ नहीं होता।
अंतिम पंक्तियों में न्यायाधीश ने जिस तरह से मानव सभ्यता और देश की
संस्कृति के साथ प्रकृति की एक विस्मयकारी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं,
वह वास्तव में अंर्तमन को झकझोर देते हैं।
पेश है वह संवेदनाओं से भरी कविता
इस पीडीएफ पर नजर डालिए

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