Monday, August 6, 2018

गमों का तूफान दिल में समेटकर हंसी की सुनामी लाने का नाम है जोकर


जोकर। नाम सुनकर दिल और दिमाग पर रंग-पुता चेहरा, नाक पर चेरी, आंखें बड़ी-बड़ी, तन पर चटख रंग के परिधान और गुदगुदाती हरकतों से भरी तस्वीर सामने आ जाती है। अधिकांश लोग जोकर के रूप में राजकपूर की इमेजिन कर लेते हैं तो कोई 52 प्लेकार्ड के पैकेट में निकलने वाले जोकर को अपनी आंखों के सामने ले आते हैं। जोकर कई रूप धरकर आता है। हमको हंसाता है। इतना हंसाता है कि हम अपने गम भूल जाते हैं। यह एक कला है। साधना से आती है। कठिन है, मगर से इंसान की जिद से बढ़कर नहीं। सीखता इंसान ही है। कब, क्यों और कहां पलते हैं यह जोकर। कोई पता नहीं। इनका कोई अपना निजी संसार नहीं है। बचपन में ही जब कोई डॉक्टर, इंजीनियर या बैंकर्स बनने के ख्बाव बुनता है तो हम उन हजारों में या यूं कहिए लाखों में से एक कोई बंदा जोकर बनने का सपना पालता है। यह सपना उसके सामने कोई शुरू से नहीं होता, बल्कि मजबूरी में उठाया गया एक कदम होता है। इसके पीछे मुफलिसी होती है, हिकारत होती है, नफरत होती है या फिर मोहब्बत भी हो सकती है। राजकपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर देखिए। खुद-ब-खुद समझ जाएंगे, लेकिन एक जोकर की जिंदगी वास्तव में क्या होती है, इससे वाकिफ होना भी जरूरी है। गमों के तूफानों को अपने दिल में समाकर हंसी की सुनामी लेकर आता है। फिर चाहे वह मंच हो या फिर सर्कस की रिंग। उसे हंसाना ही पड़ता है। फिर चाहे मालिक हंटर चलाए या वह खुद की मर्जी से काम करे, लेकिन हंसाता जरूर है।


 एक जोकर की कहानी याद आती है, लेकिन यह काफी चौंकाने वाली है। जब से यह कहानी सुनी है, जोकर को देख हंसी कम शक की गुंजाइश ज्यादा बढ़ जाती है। अपने ही देश की है। आतंकी घटनाओं से लगभग हर दिन रूबरू होने वाली सरजमीं से जुड़ी है। बात जम्मू और कश्मीर की कर रहा हूं।  एक जोकर जो कश्मीर की वादियों को हंसाता था। लोगों की उदासी दूर कर चेहरे पर मुस्कान लाता था, लेकिन लोगों को हंसाने वाला सब के गम खुशियों में बदलने वाला एक कश्मीरी युवक कब आतंक का पर्याय बन गया कोई समझ नहीं पाया। डर और मौत का घर बन चुका आतंकी सद्दाम पाडर मौजूदा वक्त में तो जिंदा नहीं है, लेकिन उसके किस्से-कहानी आज भी वादियों में युवाओं के होंठों पर रहते हैं। सुना और पढ़ा है सिर्फ मैंने कि वह जब समय बचता था तो गांव के चौराहे पर लोगों को हंसाया करता था। साथ ही क्रिकेट खेलता दिखता था। उसके बारे में कहा जाता था कि वह लोगों को हंसाने में इतना माहिर था कि उसे देखते ही लोग हंसने लगते थे। सद्दाम को सब जोकर समझते थे, लेकिन एक जोकर ने आतंकी संगठन का हाथ थामा और उसके बाद लोग उसके नाम पर हंसने की जगह उससे डरने, सहमने लगे। यानी इंसान जोकर भी है और आतंकी भी। अब तय हम को ही खुद करना है कि बनना क्या है। 

No comments:

Post a Comment