Wednesday, December 2, 2015

वो हमारा घर

जब छोटे थे हम, बड़ी थी हमारी खुशिया,
रहते अपनी मौज में, करते खूब मस्तियाँ,
एक कैंपस था बहुत बड़ा सा हमारा,
लहरी कंपाउंड नाम है जिसका प्यारा.

नीम और पीपल के दो पेड़ थे बड़े-बड़े,
मंदिर और द्वारे पर हरदम रहते थे खड़े,
मोटी जंजीरों का झूला उन पर पड़ा रहता,
हर बच्चा उस पर दिन भर झूला करता.

भोरकाल में मंदिर की घंटी बजा करती,
साँझ ढलते ही आरती भी हुआ करती,
थी टाल बालू की, तो कोयले की भी,
रहती जिनमें ग्राहकों की गहमागहमी.

बच्चों की टोली दिन भर शोर मचाती,
कभी लंगड़ी तो कभी लंगड़ लड़ाती,
आईसपाइस, खो-खो खेल थे हमारे,
किल-किल कांटे खेलते मिलकर सारे.

बैडमिंटन के कोर्ट में टूर्नामेंट होते,
क्रिकेट के रिकॉर्ड भी हमारे नाम होते,
दीवाली पर पटाखे खूब छुड़ाते थे,
होली का हुड़दंग भी खूब मचाते थे.

अब बात करें अपने घरवालों की,
जो शौहरत पाएं है दुनिया भर की,
घर में एक हमारे मुड हुआ करते,
सभी 'बड़े भाई साहब' कहा करते.

जिम्मेदारी वो अपनी पूरी निभाते,
अक्सर व्यवहार वही चलाते,
ब्याह-गौने उन्होंने ही करवाये,
मरघट तक कन्धा भी दिलवाये.

बाबू की थाली में हर बच्चे ने खाना खाया,
जिया अम्मा की कपूरी भी हर बच्चा लाया,
गुड़िया दीदी के संग गुट्टे खेले सबने,
पर डांट खा-खाकर जाते थे पढ़ने.

गुड्डू चाचा जब फैक्ट्री से आवाज लगाते,
ये गुड्डू हैं, कंपाउंड के हर लोग समझ जाते,
शाम को जब हर घर की लाइट चली जाती थी,
चबूतरे पर बड़े-बूढ़ों की चौपाल सज जाती थी.

किस्से-कहानी, मुहाबसों का दौर होता,
हर एक की आवाज में दिखता जोर होता,
इसमें प्रमोद बाबा का शोर जमा रहता,
और सबों का तर्क कमजोर बना रहता.

बेबी चाचा हमारे पेट बजाकर आते,
और पप्पू चाचा लहरी जी कहलाते,
नवीन चाचा रातों में कोना ढूंढा करते,
पर लाला चाचा सबके डिश चलाया करते.

केशव जी की फ्रेंच कट मशहूर थी,
पर उस दौर में वो भी एक गरूर थी,
हर पल खामोश देखा हमने रमेश बाबा को,
पर अकड़ कर चलते देखा किशन बाबा को.

सुशील चंद्र ठण्डी रातों में ऑफिस से आते,
घर आते ही सबके कटोरदान खटखटाते,
अल्पी, अर्चना, मीनू, वीना साथ खाना खाते,
रजाई में छिलकों के साथ मूंगफली मिलाते.

अशोक चाचा का तो घर पर पता नहीं रहता था.
पीठ पीछे उन्हें हर कोई 'लाट साब' कहता था,
बोबी चाचा सूर्य ग्रहण में कीर्तन करवाते,
और नीरज चाचा रात में कैंडल उड़वाते.

काका जी अब भी हमारे बीच बने हुए हैं,
वही हैं जो अभी तक सलामत खड़े हुए हैं,
मनोज लहरी की अपनी अलग दुनिया है,
हर बात में उनकी खट्टी-खट्टी गुनिया है.

हर बच्चे की बर्थडे में जो रूम सजाता है,
टोनी चाचा का जिक्र तो तभी आता है,
हर मॉडल प्रोजेक्ट उन्होंने ही बनाये,
जूली, मोंटी, शिल्पी या सोनल घर आये.

लेकिन कट गए अब पेड़ नीम-पीपल के,
न रह गए मन कोमल और कोपल से,
साँझ सुहानी भी अंधियारी लगने लगी है,
अपनों की तो बात भी अब चुभने लगी है.

हर बात अब सिर्फ कहानी लगती है,
दूसरी पराई, अपनी बेटी सुहानी लगती है,
बेटा अपना दुनिया में नाम कमाए,
पर दूसरे का एक कदम न बढ़ाये.

हर श्ाख्स इस धोखे में जी रहा,
सिर्फ आंसू ही खून के घूँट पी रहा,
खिंच आई है अब आंगनों में दीवारें,
अपने तान रहे अपनों पर तलवारें,

क्यों ऐसा होता है, चाचा ताऊ जी मुझे समझाओ,
वक़्त के साथ अपनी प्यार-एकता न बिसराओ,
देखो हंस रहा जग सारा लहरी खानदान पर,
भूलो गम, नफरत सभी, रहो मिल-जुलकर.

गर फिर दिल से पुकारा जो बड़ों ने तो,
लौट आएंगे अपने भीड़ में खो रहे जो,
एक-दूसरे का रंज-ओ-गम हर लेंगे,
मुट्ठी बनकर सारी दुनिया जीत लेंगे.
आपका गौरव.

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