Thursday, October 6, 2016
सलामी मांगती शहादत
मित्रों नमस्कार
रियो ओलंपिक. बीते जमाने की बात है. कई अनुभव रहे. खट्टे ज्यादा. मीठे कम. बुरे ज्यादा. अच्छे कम. हारे ज्यादा. जीते कम. हाँ, कुछ मायने में हम ज्यादा रहे. संख्या बल का दल. 119 की टोली. जिनमें नए ज्यादा, पुराने कम. खैर, अब टोक्यो पर फोकस है. भविष्य दूर है. अभी तो जश्न का माहौल है. दो तमगे सेलिब्रेट कर रहे है. सम्मान की होड़ है. पुरुस्कार बेजोड़ है. सलमान से सचिन तक. कार से करोड़ों तक दे रहे हैं. सिंधू-साक्षी मालामाल हैं. पीएम से सीएम तक खुश हैं. ट्वीट चल रहे है. अच्छा है. ख़ुशी होनी चाहिए. जश्न मनना चाहिए.
पर मुझे आपत्ति है. क्यूँ?
इसलिए सिंधु और साक्षी देश का प्रतिनिधित्व करती हैं. लेकिन देश की अंतिम सीमा सियाचीन में बैठे सैनिक के प्रति कोई अपनी जिम्मेदारी नहीं समझता. ये तर्क देकर मुझे खामोश किया जा सकता है कि सैनिक को अच्छी सैलरी, मुफ़्त इलाज, बच्चों को बेहतर शिक्षा दे रहे हैं. सैनिक शहीद होता है तो कुछ लाख और पंप या एजेंसी देकर उसके परिवार के आंसू पोंछते हैं. तब सरकारें सन्नाटे में आ जाती हैं. सचिन से सलमान तक bmw और कैश प्राइज की बात नहीं करते. आखिर सैनिक भी तो 125 करोड़ देशवासियों का प्रतिनिधित्व करता है.
मैडल नहीं लाता तो क्या?
सुरक्षा तो रखता है.
सीमा पर रहता है.
56 इंच का सीना ताने
हाथों में तिरंगा थामे.
जॉब के बाद या जॉब के दौरान उसे कोई कंपनी अपने प्रोडक्ट का ब्रांड एम्बेसडर नहीं बनाती.
क्यों? क्योंकि वो खूबसूरत नहीं है. उसकी कोई फैन फॉलोइंग नहीं है. वह वोट और नोट कमाने का जरिया नहीं बन सकता. ये रवैया बदलना होगा. सबको. हर सैनिक की अंतरराष्ट्रीय पहचान बने. स्पोर्ट्समैन से लेकर सरकार तक. सचिन से सलमान तक सलाम करें.
तभी सहादत को सेल्यूट कहा जा सकता है.
जय हिन्द.
Labels:
अभिव्यक्ति,
सैनिक
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment