Saturday, August 6, 2016

बॉस



बॉस. एक शब्द. दो अक्षर. सुनकर ही रूआब झड़ता है. शक्ल अलग हो सकती है. पर रौब, उपदेश, संदेश, निर्देश और फरमानों में सब एक जैसे. जी हां, आज चर्चा बॉस के बारे में.
कौन होता है बॉस?
कैसे बनता है बॉस?
क्यों बनता है बॉस?
कब बनता है बॉस?
बॉस, हर संस्थान में होता है. हर दल में होता है. घर में. परिवार में. गांव में. शहर में. जिले में. मंडल में. सूबे में. अंतत: प्रदेश और देश में भी. कुछ विश्व बॉस होते हैं. जैसे अमेरिका. अपने आप को मानता है. खैर अंतर्राष्ट्रीय बहस का मुद्दा है. इसे छोड़ते हैं. यहीं पर. बॉस संगठन चलाता है. पार्टी बढ़ाता है. सत्ता चलाता है. परिवार साधे रखता है. ये है बॉस की खासियत. बॉस के हुकुम के आगे, न पीछे. न कोई बड़ा, न कोई छोटा. कह दिया, सो कह दिया. कर दिया वो हो गया. ना किया तो भला सबका. खुश रखता है, अपने को. अपने से जुड़े दूसरों को. दु:ख अपना भुलाता है, पर दूसरों का याद रखता है. उसके गम को अपनाता है, अपना बिसार कर.
बॉस. यूं ही नहीं बनता. वह नेतृत्व करता है. लीडरशिप का जुनून लेकर चलता है. काम कराने की कला को जीता है. हारता नहीं है. हराता नहीं है. सिर्फ जीतता है और जिताता है. चलता है. हर दम, हर पल. अपनी इच्छाओं को काबू में रखकर. दूसरों की इच्छाओं को सुनकर. अपना काम बाद में करके. पहले अधीनस्थ को तरजीह देता है. क्यूं. अधीनस्थ जड़ है उसकी. उसे खाद-पानी नहीं दिया. तो क्या तना तन पाएगा. नहीं. बिलकुल नहीं. कतई नहीं. चाह उसकी होती हैं. पर पूरी उसकी टीम करती है. लगन उसमें होती है, पर लगन से काम टीम करती है. जुनून होता है. वहां टॉप पर पहुंचने का. शिखर छूने का. अव्वल दर्जे पर रहने का. यही जुनून उसके रूख को मोड़ देता है. भावनाओं को काबू करने में. संवेदनाओं को छू देने में. गंभीरता को अपना लेने में.
बॉस. जो गुलाम होकर भी गुलामी नहीं करता. गुलाम बनाता है. उन्हें बढ़ाता है. हतोत्साहित अकेले में करता है. और प्रोत्साहन भीड़ के बीच में देता है. क्यों. ये रवायत है. बॉस बनने की. परंपरा भी कह सकते हैं. सोचता है अपने बारे में. भविष्य के बारे में. आज के बारे में. कल के बारे में. पर दूसरों (कर्मचारी) पर अपने हुकुम का जादू इस कदर चलाता है कि दूसरा उसके काम के लिए इनकार नहीं कर सकता. करेगा भी क्यों? उसने बॉस के अक्स में अपना हित देखा है. सुनहरे अवसर देखे हैं. तभी तो हम बॉस के पथ पर बढ़ते हैं. तो बढ़ते जाइए. चलते जाइए. बनिए और बनाईए. बॉस..

ये कहकर विराम देता हूं कि
बॉस बनाना मुश्किल नहीं है. यह एक कला है. साधना है. जिसे एक कलाकार और साधक की तरह निभाना पड़ता है.

Lahari

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