Friday, November 30, 2018

आक्रोश में अन्नदाता

सभी फोटोज: अभिजीत शर्मा

रामलीला मैदान में बृहस्पतिवार से डेरा डाले देशभर से आए हजारों किसानों ने आज भारी-भरकम सुरक्षा के बीच संसद मार्ग पर बैठे हुए हैं. कर्ज राहत और उपज का उचित मूल्य देने समेत उनकी कई मांगें हैं. आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश समेत देशभर से आए किसान बृहस्पतिवार को रामलीला मैदान में इकट्ठे हुए हैं.
सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाकर बीते दिनों किसान संसद की तरफ से पारित दो अहम विधेयकों को पास कराए. पहला कानून किसानों को एक बार में पूरी तरह से ऋण मुक्त किया जाए. दूसरा कृषि उपज का उचित और लाभकारी मूल्य से जुड़ा है. इसमें किसानों की आय फसल की लागत का डेढ़ गुना करने का प्रावधान है.

देश के तमाम राज्यों में 207 किसान संगठन संयुक्त रूप से प्रदर्शन कर रहे हैं. दरअसल, किसान अपनी उपज के लिए लाभकारी दाम, स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशें लागू करने एवं कृषि ऋण माफ करने की मांग कर रहे हैं. उन्होंने शहरों में सब्जियों, फलों, दूध और अन्य खाद्य पदार्थों की आपूर्ति रोक दी है. व्यापारियों का कहना है कि आपूर्ति में कमी के चलते सब्जियों एवं अन्य खाद्य पदार्थों के भाव बढ़ गए हैं.

महज वोटर हैं किसान

इन परिस्थितियों को देखने के बाद जेहन में बहुतेरे सवाल उठने लगते हैं. सबसे अहम और चौंकाने वाला सवाल तो यह है कि आखिर किसान को अपनी सुविधाओं के लिए कृषि प्रधान देश में आंदोलन के लिए सड़क पर आना ही क्यों पड़ता है? इसका जवाब किसी सरकार के पास नहीं है. न तो पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकार के पास और ना ही मौजूदा वक्त में भाजपा की सरकार के पास. यह कहना भी गलत नहीं होगा कि किसानों को सिर्फ सरकारों ने वोट बैंक ही माना है. राष्ट्र की एक संपदा के रूप में काम करने वाले किसान सियासी दलों के लिए महज वोटर बनकर ही रह गए हैं.

समस्याओं पर हाथ कोई नहीं रखता

चुनावी सीजन में लुभावनी घोषणाओं के जरिए अपने पक्ष में किसानों से वोट करवा लिया जाता है. फिर पांच साल अन्नदाता अपने अन्न के लिए मोहताज बना रहता है. सिर्फ घोषणाओं के आसरे किसानों को रिझाने की कोशिश की जाती है, लेकिन उनकी मूल समस्या पर हाथ नहीं रखा है. लिहाजा पहले किसानों की समस्याओं पर फोकस करना जरूरी हो जाता है. वो कौन सी जरूरतें हैं, जिनके समाधान के लिए किसानों को लगभग हर साल या फसली सीजन में अपना घर, खेत और गांव छोड़कर सड़क पर आना पड़ता है. समाधान को यदि सरकारें गंभीरता से ले लें तो किसान ही नहीं शहर में रहने वाले लोगों का जीवन भी सरल हो सकेगा. महंगाई के हालात नहीं बनेंगे और किसानों के आंदोलन की आग से शहरवासी भी नहीं झुलसेंगे. सरकार को इस विषय पर सोचने की जरूरत है.

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