मित्रों,
आज नमस्कार से बात नहीं करूंगा,
क्यों करूँ,
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है, राजा अपनी गलती मान नहीं रहा है,
मंत्री मौन हैं, जिम्मेदार पता नहीं कौन हैं,
संतरी 2 साल पुराने रिकॉर्ड थामे खड़े हैं, सेवादार उधारी मांगने खड़े हैं,
बकबकियों के मुँह सिल गए हैं,
पुरस्कार कोई लौटा नहीं रहा,
असहिष्णुता अब नहीं दिख रही है,
अज़ी,
नेता छोड़िए,
अभिनेता नहीं बोल रहे,
सब टॉयलेट में मगन हैं,
शायद कह रहे हैं,
अख़लाक़ की मौत थोड़े ही हुई है,
सो मैं उसके घर जाऊँ फूट-फूट कर रोने,
मैं गरीबों के लिए कवि सम्मेलन क्यों छोड़ूं,
मैं तो जश्ने आज़ादी मनाऊँगा,
मैं तो पतंग उड़ाऊँगा,
फिर भी यही गाऊंगा,
ये देश है वीर जवानों का,
गरीबों का, दलितों का,
मैं तो यहाँ मुद्दे उठाता हूँ,
जाति ज़हर घोलता हूँ,
धर्म तराज़ू में तौलता हूँ,
मेरे खून में हिंसा है,
अहिंसा का मैं पुजारी हूँ,
अमरीका में बैठकर
हार जाऊँ सरहद को,
ऐसा मैं जुआरी हूँ,
फिर गोरखपुर क्या,
इंदौर क्या, आगरा क्या,
ये सब तो मेरे पैरों तले खड़ी हैं,
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है।
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है।
Saturday, August 12, 2017
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है।
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