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पंजाब नेशनल बैंक में हजारों करोड़ रुपये के घोटाले की खबर ने सबको चौंका दिया. घटाले से भी बड़ी बात थी कि नीरव मोदी देश छोड़कर भाग चुके थे, वहीं उनसे पहले विजय माल्या और ललित मोदी भी देश छोड़ चुके हैं. इसी को लेकर है hindi.oneindia.com का कार्टून
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...तो आपका पैसा अब बैंक में भी सुरक्षित नहीं है. केतन पारेख, ललित मोदी, विजय माल्या, सहाराश्री सुब्रत राय और नीरव मोदी से जुड़े मनी लान्ड्रिग के मामलों को सुनने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा. आप हाड़ तोड़ मेहनत के बाद जो कुछ मु_ी भर अपनी जमा पूंजी को बैंक में रखकर चोर-उचक्कों के चुरा लेने के डर से निश्चिंत हो जाते हैं तो अब यह बेफिक्री छोड़ दीजिए. क्योंकि बैंकों में जमा लाखों करोड़ रूपये की जमा पूंजी को कब कौन पूंजीपति एक झटके में सरकारी और बैंकिंग तंत्र के साथ मिलकर उड़ा ले जाएगा, यह कोई नहीं कह सकता है. क्योंकि, रूपये-पैसे, आभूषण और अन्य जरूरी दस्तावेजों को रखने के लिए सर्वाधिक सुरक्षित माने जाने वाले बैंकिंग सेक्टर के सिस्टम में भी अब सेंध लगने लगी है. ब्लैक मनी को व्हाइट मनी में बदलना हो या फिर हजारों करोड़ रूपये को स्विस बैंकों में ट्रांसफर करना हो. अथवा विदेशी बैंकों से कर्ज लेने के लिए भारतीय बैंकों से एलओयू लेना हो. सब कुछ बस चुटकियों का खेल हो चुका है. आंकड़े तक इस बात के गवाह हैं कि निजी क्षेत्र की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्रों की बैंकों में धोखाधड़ी के मामलों की संख्या अधिक है. पिछले तीन बरसों (2014-15 से 2016-17 के बीच) के दौरान वाणिज्यिक बैंकों में धोखाधड़ी के कुल 12778 मामले सामने आए. इनमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 8622 मामले सामने आए, जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों में 4156 मामले सामने आए.
पंजाब नेशनल बैंक के 11400 करोड़ घोटाले के सामने आने के बाद देश के सबसे बड़े बैंकिंग सिस्टम को झटका लगा है. देश के इतिहास में बैंकिंग सिस्टम का सबसे बड़ा घोटाला माना जा रहा है. हालांकि पीएनबी का प्रबंधन अपनी सफाई देकर अपनी छवि दुरूस्त करने की कोशिश में लगा हुआ है, लेकिन पीएनबी की साख पर लगा यह बट्टा किसी कालिख से कम नहीं है. सवाल यह उठता है कि आखिर सिर्फ दो अधिकारियों ने स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम के जरिए संदेश भेजकर नीरव मोदी और उनके साथियों की आभूषण कंपनियों के लिए विदेशों में कर्ज का इंतजाम कर दिया. यह कहना गलत नहीं होगा कि बिना बैंक अधिकारी और कर्मचारियों के किसी भी तरह के घोटाले या वित्तीय अनियमितता को अंजाम देना संभव नहीं है. क्योंकि लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में तीन बरस के अंदर निजी और सार्वजनिक बैंकों के 12778 मामलों में कर्मचारियों की मिलीभगत भी सामने आई है. बेशक यह केसों के सापेक्ष कर्मचारियों की संलिप्तता की प्रतिशत दर महज 13 फीसद है, लेकिन इनमें सर्वाधिक कर्मचारी सार्वजनिक बैंकों के धोखाधड़ी मामलों में संलिप्त पाए गए हैं. इनमें जब बात की जाए निजी क्षेत्र की तो 4156 मामलों में 568 बैंक कर्मचारियों की भागीदारी सामने आई है और सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के कर्मचारियों का आंकड़ा इससे भी ज्यादा है. 8622 मामलों में 1146 बैंक कर्मचारी सार्वजनिक बैंकों के हुए घोटाले में संलिप्त हुए हैं.
सरल भाषा में बैंक का मतलब होता है, ऐसे जगह जहां पैसे, रुपये का लेन-देन हो. यदि हमें अपने पैसे बचाकर रखने है तो हम बैंक में रख सकते है. अगर किसी को पैसे की जरुरत है तो वो बैंक से लोन भी ले सकता है. इसलिए बैंक से रुपये लिया भी जा सकता है और दिया भी जा सकता है. लेकिन अपने देश में तो कुछ अलग ही हाल है. जनता खून-पसीना एक करके अपनी जिंदगी और भविष्य को बेहतर बनाने के लिए बैंकों में रूपया जमा करते हैं और उस रूपये को विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लोग लोन के रूप में लेकर सात समंदर पार भाग जाते हैं. आखिर ऐसा कब तक इस देश में चलता रहेगा, यह किसी को पता नहीं है. देश की सरकारें भी अपनी कान और आंखों को मूंदकर दोषियों की संरक्षणदाता बनती रहेंगी. नीरव मोदी और उनके साथियों पर कार्रवाई करने के साथ ही पीएनबी के लाखों छोटे खाताधारकों के हित सुरक्षित रहें, यह भी सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है, वरना बैंकिंग व्यवस्था से ही उनका विश्वास उठ जाएगा.

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