Thursday, January 25, 2018

जब मोदी ने सुनाया भारत पर निबंध




दावोस से जारी तीन बड़ी रिपोर्ट 
  1. प्रदूषण पर और इकोसिस्टम के संरक्षण पर जारी एक रिपोर्ट में भारत को 180 मुल्कों में 177 वें नंबर पर बताया गया है. दो साल पहले भारत 156 वें नंबर पर था. यानी भारत का प्रदर्शन खराब हुआ है. यह सूची येल सेंटर फॉर एनवायरमेंट लॉ एंड पालिसी ने तैयार की है. प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु परिवर्तन को बड़ी चुनौती बताया था. भारत का ही प्रदर्शन नीचे लुढ़क गया है.
  2. दावोस में ही जारी समावेशी विकास की रिपोर्ट में भारत 62 वें स्थान पर है. दो पायदान नीचे गिरा है. पाकिस्तान भारत से 15 पायदान ऊपर 47 पर है. भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने समावेशी विकास भी जोर दिया मगर उनका अपना रिकॉर्ड कैसा है, यह इस सूची में दिखता है.
  3. एक रिपोर्ट ऑक्सफाम की है. आर्थिक असमानता की रिपोर्ट. इसे भारत की मीडिया ने प्रमुखता से नहीं छापा. इस रिपोर्ट से यह पता चलता है कि दुनिया भर के साढ़े तीन अरब लोगों के पास जितना पैसा है, उतना मात्र 44 अमीरों के पास है. इन 44 लोग की आर्थिक शक्ति 3.7 अरब लोगों के बराबर हैं आप कल्पना कर सकते हैं दुनिया में असमानता का क्या आलम है.


अब बात करते हैं दावोस में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों को विदेशी मीडिया ने किस तरह लिया है. यह चर्चा इस दौर में इसलिए भी मौजूं हो चली है, क्योंकि जहां मोदी दुनिया भर में संरक्षणवाद, आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन पर चिंता जताते है, वही तीनों मुद्दे उनके लिए खुलकर चुनौती बने हुए हैं. या यूं भी कह सकते हैं कि देश के लोकतंत्र को वाकई खतरा है....

भारत में आसियान देशों को आमंत्रित करने से दो दिन पहले स्वीट्जरलैंड के दावोस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओजस्वी भाषण दिया. यह भाषण ओजस्वी गोदी मीडिया के लिए हुआ है. भारतीय मीडिया के इतर यदि वैश्विक मीडिया पर नजरें गढ़ाएं तो कुछ अलग ही कहानी देखने को मिलती है. भारत के लिए जादूगर साबित होने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशी मीडिया के लिए दावोस में सिर्फ एक भारतीय प्रतिनिधि के रूप में उभरे हैं. वजह साफ है, दावोस में भारत के प्रधानमंत्री मोदी के उदघाटन भाषण को भारतीय मीडिया ने प्रमुखता से छापा है. भारत के लिए दावोस में बोलना एक बड़े इवेंट के रूप में मीडिया ने दिखाया है. यह बात अलग है कि किसी ने उनके भाषण के अंतर्विरोध को छूने का साहस नहीं किया है. जबकि दुनिया के अन्य मुल्कों की मीडिया ने भारत के नेता को ज्यादा तरजीह नहीं दी है. विदेशी मीडिया ने भारत के प्रधानमंत्री के विचारों की चर्चा कम की है. ऐसा नहीं कि गैर भारतीय मीडिया ने मोदी को छापा ही नहीं है बल्कि स्थान तो दिया है लेकिन सतही तौर पर ही मोदी उनके अखबारों और वेबसाइट में नजर आते हैं. 

वाशिंगटन पोस्ट ने मोदी के भाषण को खास महत्व नहीं दिया है. सिर्फ इतना लिखा है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की महिला प्रबंध निदेशक लगार्द ने मोदी के बयान पर चुटकी ली है कि उनके मुंह से लड़कियों के बारे में सुनते तो अच्छा लगता. उनके कहने का मतलब यह था कि कॉरपोरेट गर्वनेंस में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाए जाने की जो चर्चा दुनिया में चल रही है, उस पर भी प्रधानमंत्री बोलते तो अच्छा रहता. अप्रत्यक्ष तौर पर देखा जाए तो इस तरह महिला प्रबंध निदेशक लगार्द ने मोदी को लगे हाथ नसीहत भी दे डाली है कि मु_ी भर महिलाओं के हाथ कॉरपोरेट गर्वनेंस रहने पर इतराना ज्यादा अच्छा नहीं है, बल्कि इसमें क्रांतिकारी परिवर्तन की जरूरत है. 

अल जजीरा की वेबसाइट पर भी मोदी के भाषण का कवरेज है. भाषण के साथ दूसरे बयान भी है. जो उनकी आलोचना करते हैं. अल जजीरा ने इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स वाच के कार्यकारी निदेशक केनेथ रॉथ का एक ट्वीट छापा है. केनेथ रॉथ ने कहा है कि मोदी कहते हैं सब एक परिवार हैं, उन्हें बांटिए मत, लेकिन यह बात तो मोदी के समर्थक हिन्दू राष्ट्रवादियों के ठीक उलट है. अर्थात वसुधैव कुटुंबकम का संदेश देने वाले मोदी को यह सिखाने की कोशिश केनेथ रॉथ ने की है कि संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत पर मचे हंगामे को नियंत्रित करना भी मोदी की प्राथमिकता होनी चाहिए. क्योंकि हिंदुस्तान में जिस तरह से फिल्म को लेकर आगजनी और बवाल मचा हुआ है, उससे यही साबित होता है कि हिंदुत्व का नारा देने वालों के बयान सिर्फ खोखले और दोगले हैं.

गार्डियन अखबार ने प्रधानमंत्री मोदी के बयान को कम महत्व दिया है बल्कि कनाडा के प्रधानमंत्री के बयान को लीड स्टोरी बनाई है. इसी स्टोरी में नीचे के एक पैराग्राफ भारत के प्रधानमंत्री के भाषण का छोटा सा हिस्सा छापा है. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि कॉरपोरेट ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को नौकरी दे और यौन शोशण की शिकायतों पर गंभीरता से पहल करे. बहुत ज्यादा ऐसे कॉरपोरेट हो गए हैं जो टैक्स बचाते हैं, सिर्फ मुनाफा ही कमाते हैं और मजदूरों के कल्याण के लिए कुछ नहीं करते हैं. इस तरह की असमानता बहुत बड़ा जोखिम पैदा करती है. यह स्थिति भारत में भी कम नहीं है. संगठित और असंगठित क्षेत्रों में महिला कामगारों की महत्ता को दरकिनार ही रखा जाता है. बल्कि उन्हें एक उपभोग की वस्तु मानकर उनका यौन उत्पीडऩ होता है.

सीएनएन मनी ने लिखा है कि दावोस में दो ही हॉट टापिक हैं. जानलेवा मौसम और ट्रंप. इसकी साइट पर प्रधानमंत्री मोदी का संरक्षणवादी ताकतों वाले बयान का छोटा सा टुकड़ा ही है. लगता है इन्हें उनके भाषण में कुछ नहीं मिला. सीएनन मनी ने लिखा है कि दावोस में कॉरपोरेट इस आशंका और उत्सुकता में हैं कि ट्रंप क्या बोलेंगे. हर तरफ इसी की चर्चा है.



दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में भारत की व्याख्या देखेंगे तो वह दसवीं कक्षा के निबंध से ज्यादा का नहीं है. भारत के प्रति विशेषणों के इस्तेमाल कर देने से निबंध बन सकता है, भाषण नहीं हो सकता. जरूर कई लोगों को अच्छा लग सकता है कि उन्होंने दुनिया के सामने भारत क्या है, इसे रखा. ऐसा क्यों है. जब भी कोई नेता भारत की व्याख्या करता है, दसवीं के निबंध के मोड में चला जाता है. यह समस्या सिर्फ मोदी के साथ नहीं, दूसरे नेताओं के साथ भी है. महिमामंडन थोड़ा कम हो. प्रधानमंत्री को अब 'वसुधैव कुटुंबकमÓ और 'सर्वे भवन्तु सुखिन:Ó से आगे बढऩा चाहिए. हर भाषण में यही हो जरूरी नहीं है. विदेशी मीडिया कम से कम प्रधानमंत्री के लोकतंत्र वाले हिस्से को प्रमुखता दे सकता था. वो हिस्सा अच्छा था. जरूर उसके जिक्र के साथ सवाल किए जा सकते थे. दो महीने से भारत के चैनलों पर एक फिल्म के रिलीज होने को लेकर चर्चा हो रही है. जगह जगह उत्पात मचाए जा रहे हैं. एक जातिगत समूह में जाति और धर्म का कॉकटेल घोलकर नशे को नया रंग दिया जा रहा है. राजस्थान के उदयपुर में एक हत्या के आरोपी के समर्थन में लोगों का समूह अदालत की छत पर भगवा ध्वज लेकर चढ़ जाता है और डर से कोई बोलता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के चार चार सीनियर जज चीफ जस्टिस के खिलाफ प्रेस कांफ्रे.स कर रहे हैं. ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया में लोकतंत्र को चुनौती मिल रही है, विदेशी मीडिया संस्थान प्रधानमंत्री मोदी के इस भाषण को प्रमुखता दे सकते थे.

No comments:

Post a Comment