आज,आप जो खाते हैं,
वो खाना नहीं,
आप जो पीते हैं,
वो पानी नहीं,
आप जो महसूस करते हैं,
वो वास्तविकता नहीं,
आप जो कहते हैं,
उसमें,
किसी की आस्तिकता नहीं,
आप, आप, आप...
बाप हैं, पर,
बेटे आपके नहीं,
भाई हैं, पर
हक आपके नहीं,
संबंधी हैं, पर
रिश्ते आपके नहीं,
और तो और
दोस्त हैं, पर
ये दुनिया आपकी नहीं।
इसलिए
आप, आप, आप...
जो अनुभव करते हैं,
बस, बस, बस...
वो ही एक सच है,जिसमें बसा ये
सारा जग है,
क्योंकि
दिन शायद आपके हों,
पर रातें आपकी नहीं।
वजह है, सब तरफ
फरेब है, मक्कारी है,
बाबू या अधिकारी है,
घूस चलती है,
दबंगई दौड़ती है,
और, और, और
सच की तस्वीर को
सिर्फ रौंदती है,
क्योंकि
पैसा शायद आपको हो
लेकिन
नियत में ईमानी नहीं।
इसलिए
घुट-घुट जिंदगी जिओ
या फिर
एक रास्ता और है,
अब उठो, खड़े हो
खामोश न रहो,
होश-ओ-हवास न खोओ,
सिर्फ
हिम्मत रखो,
धैर्य रखो,
सच का सहारा लो
और
बेबाकी से आप कहो,
क्योंकि,
काया-माया आपकी हो,
लेकिन
यह जिंदगी आपकी नहीं।
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