Saturday, May 12, 2018

कुदरत का क्रोध

तीन मई 2018 
अमेरिका के हवाई राज्य में किलायू ज्वालामुखी से निकल रहा लावा 200 फीट तक हवा में उछल रहा है. इससे आसपास के क्षेत्रों में भूकंप के झटके महसूस हो रहे हैं. 31 घर पूरी तरह तबाह हो चुके हैं और 1700 लोगों को अपना घर छोड़कर जाना पड़ा है.
एक्सपर्ट : ज्वालामुखी विशेषज्ञ वेंडी स्टोवाल के अनुसार ज्वालामुखी में बड़ी मात्रा में लावा जमा हुआ है. जब तक यह पूरी तरह निकल नहीं जाता है तब तक विस्फोट जारी रहेंगे. 

सात मई 2018
न्यूजीलैंड के बे ऑफ प्लेंटी के एक फार्म में धरती फट गई. यहां करीब फुटबॉल के दो मैदान के बराबर लंबी और छह मंजिला इमारत जितनी गहरी दरार देखी गई. देश में इसे अब तक का सबसे बड़ा सिंकहोल माना जा रहा है.
एक्सपर्ट : वॉलकैनोलॉजिस्ट बै्रड स्कॉट के अनुसार 200 मीटर लंबा और 20 मीटर गहरा सिंक होल आमतौर पर न्यूजीलैंड में नहीं देखा जाता है. 

11 अप्रैल 2018
130 किमी की रफ्तार से आए तूफान ने आगरा समेत देश के कई शहरों में अपना कहर बरपाया. इस दौरान जान माल की क्षति के साथ फसलों को काफी नुकसान हुआ.
दो मई 2018 
132 किमी की रफ्तार से आया तूफान. देश भर के 13 राज्यों में तूफान की दानवी ताकत ने 130 लोगों की जान ले ली. अभी यह सिलसिला थमा नहीं है. बरकरार है. 
एक्सपर्ट : पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं कि इन सब घटनाओं के शुरुआती संकेत 18वीं शताब्दी से ही मिलने शुरू हो गए थे, जब दुनिया में औद्योगिक क्रांति का जन्म हुआ. आज हालात ये हैं कि कभी बवंडरों से या फिर बाढ़ से या फिर शीतलहर से दुबके पड़े हैं.

आने वाले वक्त में बहुत कुछ अप्रत्याशित दिखेगा
उक्त कुछ घटनाएं आमजन और उन खास जनों को समझनी होंगी. सोचना होगा इन घटनाओं के बारे में आखिर धरती पर यह क्या हो रहा है. ज्यों-ज्यों तकनीकी और विकास का विस्तार होता जा रहा है, आबादी पर उतना ही ज्यादा खतरा मंडरा उठा है. कुदरती क्रोध इतना बढ़ता जा रहा है कि 120 किलोमीटर की रफ्तार से तेज हवाएं चलती हैं और उनका कहर ऐसा कि सैकड़ों लोग एक झटके में मौत के मुंह में चले गए. ये कुछ ऐसा है इसके बारे में आज से 15-20 साल पहले कोई आम शख्स अनुमान भी नहीं लगा सकता था, लेकिन वैज्ञानिकों ने इसकी चेतावनी जरूर उस समय दे दी थी. इसे ग्लोबल वार्मिंग का नाम दिया गया. ग्लोबल वार्मिंग वो दो शब्द हैं, जिनका असर पूरी दुनिया पर अब ज्यादा इफेक्टिव रुप से दिख रहा है. जनवरी में जारी हुए साल 2017-18 के इकोनॉमिक सर्वे में साफ तौर पर कहा गया था कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भारत में मध्यावधि में फार्म इनकम 20 से 25 फीसदी तक कम रह सकती है. पशुधन से होने वाली आय में भी 15 से 18 फीसदी की कमी हो सकती है. ये भविष्यवाणी भारत के एग्रीकल्चर सेक्टर को लेकर की गई है. मगर ग्लोबल वार्मिंग का असर इससे बहुत व्यापक पैमाने पर नजर आ रहा है. आने वाले वक्त में बहुत कुछ अप्रत्याशित दिखेगा. इसका अंदेशा भी वैज्ञानिकों को है.

गर्म प्रदेश ठंडे और ठंडे प्रदेश हो रहे गर्म
कई सारी वेबसाइट और पोर्टल खंगालने के बाद मिलीं अहम जानकारियों को पढऩे के बाद यही निष्कर्ष निकला है कि आने वाला वक्त अगली नस्ल के लिए बेहद चुनौती भरा साबित होगा. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट तो डराने में कोई कसर नहीं छोड़ती है कि दुनिया में सबसे ज्यादा गेहूं उत्पादन करने वाला देश केवल ग्लोबल वार्मिंग की वजह से 2050 तक 25 फीसद उत्पादन की कमी झेल सकता है. भारत में बढ़ती आबादी के बीच खाद्यान्न का संकट भी खड़ा हो सकता है. वहीं अमेरिका, यूरोप जैसे ठंडे इलाकों में गेहूं का उत्पादन 25 फीसदी तक बढऩे का अनुमान है. ब्लूमबर्ग की ही रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका, यूरोप में मौसम गर्म हो रहा है, इसकी वजह से वहां ऐसी फसलों की पैदावार बढ़ेगी, जिनका उत्पादन बेहद कम है. यानी ठंडे मौसम वाले प्रदेश गर्म हो रहे हैं और गर्म प्रदेश कहीं ज्यादा गर्म हो रहे हैं.

तूफानों की तीव्रता में 3.5 गुना बढ़ोतरी
दुनिया में मौसम की विस्तार से जानकारी देने वाली मंथली मैग्जीन नेचर क्लाइमेट चेंज जरनल में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट में वर्ष 2015 में वैज्ञानिकों ने बताया था कि आने वाले तूफान कहीं ज्यादा खतरनाक होंगे. वैज्ञानिकों ने कहा था कि जलवायु परिवर्तन की वजह से विनाशकारी तूफान पैदा होंगे. रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता प्रोफेसर जिम एल्सनर के मुताबिक, इन दिनों जो तूफान आ रहे हैं वह पहले के मुकाबले बहुत खतरनाक हैं. शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि पिछले 30 सालों में तूफानों की तीव्रता औसतन 1.3 मीटर प्रति सेकंड या 4.8 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बढ़ी है.

बढ़ता तापमान बिगाड़ रहा है धरती की सेहत 
इधर, भारत मौसम विज्ञान विभाग (ढ्ढरूष्ठ) के डीजी डॉक्टर केजी रमेश के अनुसार मौसम को लेकर जितनी भी एक्स्ट्रीम कंडीनशन बन रही हैं उनके पीछे ग्लोबल वार्मिंग का हाथ है. जब तापमान बढ़ता है तो वातावरण में मॉइश्चर (नमी) बढ़ जाता है. हवा में नमी का होल्ड ज्यादा हो जाता है और कहीं ना कहीं वो निकलेगा. इसी की वजह से भारी बारिश या भयंकर तूफान जैसी घटनाएं घटती हैं. इसकी वजह से धरती की सेहत भी बिगड़ रही है, इसका खामियाजा हम सभी को उठाना पड़ेगा.

बचने के लिए सदैव सजग रहना होगा
मौसम का मिजाज बदलने का असर पूरे ईको सिस्टम पर पड़ता है. पक्षियों और समुद्री जीवों का बड़े पैमाने पर माइग्रेशन और कुछ प्रजातियों की संख्या में खतरनाक गिरावट इसकी निशानी है. इसके अलावा फसलों की बेल्ट का शिफ्ट होना भी इसका प्रमाण  है. यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना में इकोलॉजी और इवोल्यूशनरी बायलॉजी के प्रोफेसर जॉन वीन्स ने एक्यूवैदर पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इसमें प्रोफेसर कहते हैं कि जलवायु में बदलाव के चलते कुछ प्रजातियां ऐसे इलाकों की ओर चली जाती हैं जो उनके अनुकूल हों. जीवों की कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं जो माइग्रेट नहीं करतीं और आखिर में उनका अस्तित्व मिट जाता है. यह फॉर्मूला सिर्फ पशु-पक्षियों पर ही नहीं बल्कि मानव जाति पर भी लागू होता है. यदि मानव जाति को अपना अस्तित्व धरती पर बचाना है तो पहले धरती को बचाना होगा. आधुनिकता की दौड़ और होड़ में हमें अपने पर्यावरण को भी सहेज कर रखना हमारी जिम्मेदारी बनती है. इसके लिए जरूरी पौधों का रोपण, संरक्षण के अलावा कार्बन उत्सर्जन से बचने के लिए सदैव सजग रहना होगा.

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