Saturday, June 9, 2018

'गांव बंद' को मजबूर क्यों किसान

किसानों का संघर्ष
PTI
केंद्र सरकार की कथित किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ किसानों का दस दिवसीय 'गांव बंद' आंदोलन एक जून को शुरु हुआ था. देश के 22 राज्यों में कई किसान संगठन संयुक्त रूप से प्रदर्शन कर रहे हैं. रविवार को किसानों का संघर्ष आराम की अवस्था में आ जाएगा. दरअसल, किसान अपनी उपज के लिए लाभकारी दाम, स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशें लागू करने एवं कृषि ऋण माफ करने की मांग कर रहे हैं. उन्होंने शहरों में सब्जियों, फलों, दूध और अन्य खाद्य पदार्थों की आपूर्ति रोक दी है. व्यापारियों का कहना है कि आपूर्ति में कमी के चलते सब्जियों एवं अन्य खाद्य पदार्थों के भाव बढ़ गए हैं.
महज वोटर हैं किसान 
इन परिस्थितियों को देखने के बाद जेहन में बहुतेरे सवाल उठने लगते हैं. सबसे अहम और चौंकाने वाला सवाल तो यह है कि आखिर किसान को अपनी सुविधाओं के लिए कृषि प्रधान देश में आंदोलन के लिए सड़क पर आना ही क्यों पड़ता है? इसका जवाब किसी सरकार के पास नहीं है. न तो पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकार के पास और ना ही मौजूदा वक्त में भाजपा की सरकार के पास. यह कहना भी गलत नहीं होगा कि किसानों को सिर्फ सरकारों ने वोट बैंक ही माना है. राष्ट्र की एक संपदा के रूप में काम करने वाले किसान सियासी दलों के लिए महज वोटर बनकर ही रह गए हैं.
समस्याओं पर हाथ कोई नहीं रखता
चुनावी सीजन में लुभावनी घोषणाओं के जरिए अपने पक्ष में किसानों से वोट करवा लिया जाता है. फिर पांच साल अन्नदाता अपने अन्न के लिए मोहताज बना रहता है. सिर्फ घोषणाओं के आसरे किसानों को रिझाने की कोशिश की जाती है, लेकिन उनकी मूल समस्या पर हाथ नहीं रखा है. लिहाजा पहले किसानों की समस्याओं पर फोकस करना जरूरी हो जाता है. वो कौन सी जरूरतें हैं, जिनके समाधान के लिए किसानों को लगभग हर साल या फसली सीजन में अपना घर, खेत और गांव छोड़कर सड़क पर आना पड़ता है. पहले यही समझने की कोशिश जरूरी है.
यह समस्याएं कुछ इस तरह की हैं...
पूंजी की कमी
सभी क्षेत्रों की तरह कृषि को भी पनपने के लिए पूंजी की आवश्यकता है. तकनीकी विस्तार ने पूंजी की इस आवश्यकता को और बढ़ा दिया है. लेकिन इस क्षेत्र में पूंजी की कमी बनी हुई है. छोटे किसान महाजनों, व्यापारियों से ऊंची दरों पर कर्ज लेते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में किसानों ने बैंकों से भी कर्ज लेना शुरू किया है. लेेकिन हालात बहुत नहीं बदले हैं.
अच्छे बीज
अच्छी फसल के लिए अच्छे बीजों का होना बेहद जरूरी है. लेकिन सही वितरण तंत्र न होने के चलते छोटे किसानों की पहुंच में ये महंगे और अच्छे बीज नहीं होते हैं. इसके चलते इन्हें कोई लाभ नहीं मिलता और फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
फसल पर सही मूल्य
किसानों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें फसल पर सही मूल्य नहीं मिलता. वहीं किसानों को अपना माल बेचने के तमाम कागजी कार्यवाही भी पूरी करनी पड़ती है. मसलन कोई किसान सरकारी केंद्र पर किसी उत्पाद को बेचना चाहे तो उसे गांव के अधिकारी से एक कागज चाहिए होगा.ऐसे में कई बार कम पढ़े-लिखे किसान औने-पौने दामों पर अपना माल बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
The Financial Express
कृषि ऋण माफी
सरकारों ने सार्वजनिक और सहकारी बैंकों के जरिए किसानों को लोन देने की व्यवस्था तो लागू कर रखी है. किसान अपने खेत को बंधक रखकर लोन उठा भी लेता है. अमूमन फसली सीजन पर उसे रूपयों की जरूरत पड़ती है तो वह लोन के लिए आवेदन करता है. उसे लोन भी मिल जाता है, लेकिन लोन माफी के नाम पर उसे सिर्फ धोखा ही मिलता है. सरकारें लोन माफी के लिए अपने घोषणा पत्र में प्रावधान तो करती हैं, लेकिन सत्ता पर काबिज होते ही भूल जाती हैं. यदि लोन माफ होता भी है तो मुट्ठी भर किसानों का.
सिंचाई व्यवस्था
भारत में मानसून की सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. इसके बावजूद देश के तमाम हिस्सों में सिंचाई व्यवस्था की उन्नत तकनीकों का प्रसार नहीं हो सका है. उदाहरण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में सिंचाई के अच्छे इंतजाम है, लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जहां कृषि, मानसून पर निर्भर है. इसके इतर भूमिगत जल के गिरते स्तर ने भी लोगों की समस्याओं में इजाफा किया है.
भंडारण सुविधाओं का अभाव
भारत के ग्रामीण इलाकों में अच्छे भंडारण की सुविधाओं की कमी है. ऐसे में किसानों पर जल्द से जल्द फसल का सौदा करने का दबाव होता है और कई बार किसान औने-पौने दामों में फसल का सौदा कर लेते हैं. भंडारण सुविधाओं को लेकर न्यायालय ने भी कई बार केंद्र और राच्य सरकारों को फटकार भी लगाई है लेकिन जमीनी हालात अब तक बहुत नहीं बदले हैं.
भूमि पर अधिकार
देश में कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है. असमान भूमि वितरण के खिलाफ किसान कई बार आवाज उठाते रहे हैं. जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है जिस पर छोटे किसान काम करते हैं. ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं.
Times Now
उक्त समस्याओं के समाधान को यदि सरकारें गंभीरता से ले लें तो किसान ही नहीं शहर में रहने वाले लोगों का जीवन भी सरल हो सकेगा. महंगाई के हालात नहीं बनेंगे और किसानों के आंदोलन की आग से शहरवासी भी नहीं झुलसेंगे. सरकार को इस विषय पर सोचने की जरूरत है.

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