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| सिर्फ सर्च ही करते रहिए जॉब्स |
अब सवाल फिर से वही खड़ा हो जाता है कि
...तो क्या देश में जॉब नहीं है?
इसका जवाब है, नहीं, जॉब हैं. हजारों, लाखों में नहीं करोड़ों में हैं. भरपूर हैं. सरकार के पास भी हैं और प्राइवेट सेक्टर में भी. इसका भी आंकड़ा आपको बतलाते हैं.
17271000 नौकरियां सरकारी क्षेत्र में मौजूदा वक्त पर कैंडिडेट्स की राह तक रहीं हैं.
11422000 नौकरी प्राइवेट सेक्टर में खाली हैं.
43 करोड़ 70 लाख नौकरी असंगठित क्षेत्र में हैं.
इस तरह देखा जाए तो यदि यह जॉब भर लिए जाएं तो देश में बेरोजगारी पल भर में खत्म हो सकती हैं. लेकिन देश में ऐसा हो नहीं रहा. इसके पीछे क्या वजह मानी जाए. कि सरकारें इन जॉब से अनभिज्ञ हैं, लेकिन जब देश के सरकारी संगठन या अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आईएलओ इस बात की पुष्टि करे कि जॉब हैं तो सरकारों की अनभिज्ञता झुठला जाती है. दूसरा कारण, सत्ता खुद ही नहीं चाहती है कि यह जॉब देश भर के उन तमाम युवाओं को दी जाएं, रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं. सरकार के ऐसा न करने के पीछे मंशा क्या है, यह भी जानना जरूरी है. दरअसल, बेरोजगारी के आसरे सियासी दल अपनी चुनावी रोटियां पकाते हैं. बेरोजगारी उनके घोषणा पत्र में अव्वल नंबर पर रहता है, यदि यह खत्म हो गया तो फिर वह क्या मुद्दा टॉप पर रखेंगे, यह उनके लिए 'प्रॉमिस क्राइसिसÓ की कैटेगिरी में आ जाएगा.
लिहाजा एक बार फिर हम उसी सवाल पर आकर खड़ा हो जाते हैं कि
...तो क्या देश में सरकारें जॉब नहीं दे रही हैं?
उत्तर है जी नहीं. सरकारें जॉब बांट रहीं हैं. यह बात अलग है कि उनका बांटने का ग्राफ कछुआ चाल है. आंकड़े बताते हैं कि पांच साल के अंदर ग्रेजुएट किए युवाओं के लिए सिर्फ 8000 से ज्यादा सरकारी जॉब निकलती नहीं है. साल में औसतन 667 से ही सरकारी मुलाजिम बन पाते हैं. यानी जितने युवा नौकरी पाते हैं, उससे कई सौ गुना युवा बेरोजगार की कतार में खड़े नजर आते हैं. तो क्या इसी दिन के लिए देश में बीजेपी को गद्दीनशीन कराया गया था बेरोजगारों के द्वारा. यदि हां, तो फिर खड़े रहिए बेरोजगार की लाइन में. क्योंकि सियासी बिसात पर सत्ता तो अपनी चाल ऐसे ही चलेगी. उसके लिए बेरोजगार सिर्फ एक प्यादा हैं, यदि उन्हें मारने से सियासी बिसात पर 'राजाÓ बचता है तो उन्हें डेंजर कॉलम में रखने के लिए सियासी धुरंधरों के हाथ बिलकुल नहीं कांपेंगे.

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