Sunday, August 27, 2017

'मोक्ष' दिलाते बाबा



डेरा सच्चा-सौदा सिरसा के चीफ गुरमीत सिंह का जिक्र आज हर जुबान पर है. बच्चा, बूढ़ा, नौजवान उनकी करतूतों पर शर्मिंदगी महसूस कर रहा है. 'नाम चर्चा' की जगह निंदा चर्चाओं ने ले रखी है. कुछ यही आकलन दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट में सीनियर न्यूज एडीटर उमंग मिश्रा  ने किया है. मजहबी आस्था के नाम पर लोगों के जज्बातों के साथ जिस तरह से खिलवाड़ हो रहा है, उसी को विस्तार से समझाने की कोशिश उन्होंने अपने आलेख में की है. उन्होंने इस तथ्य पर जोर ज्यादा दिया है कि 'बात सिर्फ राम-रहीम तक सीमित नहीं है. गद्दी को गुरू मानने की प्रथा व्यापक है. जो भी उसक पर बैठेगा, उसे गुरू मान लेंगे. भाई लकड़ी और धातु से बनी सिंहासननुमा कुर्सी ही तो है, उस पर निर्जीव चीज में क्या प्रभाव हो सकता है कि कोई भी अज्ञानी उस पर बैठ जाए और सबका गुरू बन जाए. गुरू तो कोई तब है, जब वो ज्ञान दे सके'.


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27 अगस्त को दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के अंक में प्रकाशित आलेख की कॉपी.

Thursday, August 24, 2017

युद्ध में सक्षम तो शांति का पक्षधर भी है भारत 

भारत और चीन में आर्मी वॉर से पहले 'कमेंट वॉरÓ छिड़ा हुआ है. चीनी मीडिया लगातार भारत को युद्ध की धमकियां दे रहा है, तो भारत की तरफ से भी 'जवाबी फायरिंगÓ चल रही है. हालांकि 'ग्लोबल टाइम्सÓ में रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों ही देश 1962 की तुलना में बेहद मजबूत हैं. चीन तो क्या, यह बात हर कोई जानता है कि अब लड़ाई किसी देश के बूते की बात नहीं है. सच्चाई यह है कि भारत, अमेरिका और जापान की दोस्ती चीन को रास नहीं आ रही है, लिहाजा वह दबाव बनाने के लिए यह सब कर रहा है, ताकि इस क्षेत्र में उसका दबदबा कायम रहे. इधर, गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने दुनिया के किसी भी मुल्क में भारत पर आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं है, सरीखा तल्ख बयान देकर चीन को चेताया है. बेशक उन्होंने इस मसले का हल सकारात्मक तरीके से निकालने की पहल भी यह कहकर की है कि भारत ने कभी किसी पर हमला नहीं किया, लेकिन देश की सुरक्षा पर आंच न आने की बात कहकर अपनी युद्धनीति की मंशा भी जता दी है. वहीं, रक्षा मंत्रालय ने युद्ध की स्थिति से निपटने के लिए व्यापक कदम उठाए हैं. रक्षा मंत्रालय ने रविवार को सेना की जरूरतों के अनुरूप परिणाम के लिए बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) में आमूल-चूल परिवर्तन का फैसला लिया है. यह फैसला डोकलाम में भारत और चीन की सेना में तनातनी को देखते हुए लिया है. रक्षा मंत्रालय ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारों के अतिरिक्त सरकार ने बीआरओ के महानिदेशक (डीजी) को 100 करोड़ रुपये तक की खरीदारी का वित्तीय अधिकार दिया है. इसके अलावा बीआरओ को सड़क परियोजनाओं के लिए बड़ी निर्माण कंपनियों को शामिल करने का फैसला लेने की भी मंजूरी दी है. इस तरह भारत चीन से मुकाबला करने के लिए हर उस रक्षा नीति पर जोर दे रहा है, जो उसे युद्ध के हालातों में सफल और सक्षम करेगी. लिहाज़ा इस बात को समय रहते हुए चीन जितनी जल्दी समझ ले तो बेहतर रहेगा।

Monday, August 21, 2017

भारत को आगे कर चीन और उत्तर कोरिया को रोक रहा अमेरिका 


चीन विस्तारवादी नीति अपनाए हुए है. आक्रामकता उसकी फितरत है. चीन का यह रवैया 'दुनिया के दादाÓ अमेरिका को रास नहीं आ रहा. खुद अमेरिका के प्रशांत क्षेत्र के सैन्य कमांडर एडमिरल हैरी हैरिस ने यह स्वीकार किया है. अमेरिकी सैन्य कमांडर हैरिस चीन की करतूतों की तुलना आतंकवाद से कर रहे हैं. वजह साफ है, दरअसल, चीन और उत्तर कोरिया के आक्रामक तेवर अमेरिका को टेंशन दिए हुए हैं. इसीलिए बार-बार उत्तर कोरिया का उकसावे भरी धमकी और प्रशांत क्षेत्र में दक्षिण चीन सागर पर चीन की बढ़ती सैन्य ताकत, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को आक्रामक तेवर बनाए रखने के लिए मजबूर किए हुए है. बता दें कि प्रशांत क्षेत्र के अंतर्गत चीन और उत्तर कोरिया दोनों ही देश आते हैं. इस पर अमेरिकी सैन्य व्यवस्था है, लिहाजा अमेरिका के एडमिरल हैरी हैरिस ने भविष्य में टकराव की आशंका जताई है. साथ ही दोनों देशों से सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर निपटने के लिए अमेरिका ने भारत को खड़ा कर दिया है. तभी तो एडमिरल हैरिस ने भारत की सैन्य ताकत का भरोसा दिलाया है. दक्षिण एशिया में चीन का वर्चस्व कम करने के लिए अमेरिका भारत को आगे करके अपनी लकीर बड़ी रखना चाहता है. जो न सिर्फ भारत के लिए फायदेमंद है, बल्कि भारत से जुड़े सीमा विवादों और पड़ोसी मुल्कों से मधुर संबंध बनाने में भी कारगर है. फिर चाहे भारत में संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण हो या अत्याधुनिक हथियार की मांग, अमेरिका खुलकर भारत को समर्थन दे रहा है. क्योंकि, आज फिलीपिंस जो आतंक का दर्द झेल रहा है, और अमेरिका उस पर सैन्य कार्रवाई के जरिए मल्हम लगा रहा है, वही जख्म भारत को परेशान किए हुए है. आंतकी घुसपैठ, हमले और निर्दोषों की हत्याएं, भारत में भी कम नहीं है, लेकिन यह सुकून की बात है कि दो महाशक्ति एक प्लेटफार्म पर खड़े होकर दुनिया बचाने की जंग लडऩे को तैयार हैं, जो दोनों के भविष्य के लिए बेहतर है. 

Monday, August 14, 2017

हताशा में गलत बयानबाजी पाक के लिए खतरा


पाकिस्तान के नए नवेले विदेश मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने कहा है कि पाकिस्तान हमेशा से ही भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहता है लेकिन भारत की ओर से कोई पॉजिटिव रिस्पॉन्स नहीं मिलता है. आसिफ ने ये बात विदेश मंत्री बनने के बाद पहली बार रविवार को की गई प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कही. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस समय शांति की कोशिशें कर रहा है, ये समय है कि भारत को आरोप लगाना छोड़ना चाहिए और अच्छा रिस्पॉन्स करना चाहिए.
आसिफ ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोग ‘आत्मनिर्णय के अधिकार’ के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं जो उन्हें संयुक्त राष्ट्र ने अपने संकल्पों के माध्यम से "आश्वासन दिया" था. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अपने बॉर्डर की रक्षा करने में सक्षम है लेकिन हम लोग शांति से कश्मीर का मुद्दा सुलझाना चाहते हैं.
आसिफ बोले कि पाकिस्तान लगातार आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहा है, पाकिस्तान की सेना ने आतंकियों पर कार्रवाई तेज कर दी है. आपको बता दें कि पाकिस्तान का आतंकवाद के ऊपर ये बयान उस समय आया है जब अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार (NSA) जनरल एचआर मैकमास्टर ने पाकिस्तान को ट्रंप का बेहद सख्त संदेश दिया है, जिसमें उन्होंने पाक से कहा था कि वह तालिबान, हक्कानी नेटवर्क और उस जैसे दूसरे आतंकी संगठनों को मदद पहुंचाने की 'दोगली नीति' को बदले, क्योंकि इससे खुद पाक को ही भारी नुकसान हो रहा है.
गौरतलब है कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को बीते हफ्ते पनामा पेपर्स लीक मामले में भ्रष्टाचार का दोषी मानकर प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद नवाज शरीफ की जगह शाहिद खाकन अब्बासी को पाकिस्तान का नया प्रधानमंत्री बनाया गया है.

Gaurav lahari

Saturday, August 12, 2017

जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है।

मित्रों,
आज नमस्कार से बात नहीं करूंगा,
क्यों करूँ,
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है, राजा अपनी गलती मान नहीं रहा है,
मंत्री मौन हैं, जिम्मेदार पता नहीं कौन हैं,
संतरी 2 साल पुराने रिकॉर्ड थामे खड़े हैं, सेवादार उधारी मांगने खड़े हैं,
बकबकियों के मुँह सिल गए हैं,
पुरस्कार कोई लौटा नहीं रहा,
असहिष्णुता अब नहीं दिख रही है,
अज़ी,
नेता छोड़िए,
अभिनेता नहीं बोल रहे,
सब टॉयलेट में मगन हैं,
शायद कह रहे हैं,
अख़लाक़ की मौत थोड़े ही हुई है,
सो मैं उसके घर जाऊँ फूट-फूट कर रोने,
मैं गरीबों के लिए कवि सम्मेलन क्यों छोड़ूं,
मैं तो जश्ने आज़ादी मनाऊँगा,
मैं तो पतंग उड़ाऊँगा,
फिर भी यही गाऊंगा,
ये देश है वीर जवानों का,
गरीबों का, दलितों का,
मैं तो यहाँ मुद्दे उठाता हूँ,
जाति ज़हर घोलता हूँ,
धर्म तराज़ू में तौलता हूँ,
मेरे खून में हिंसा है,
अहिंसा का मैं पुजारी हूँ,
अमरीका में बैठकर
हार जाऊँ सरहद को,
ऐसा मैं जुआरी हूँ,
फिर गोरखपुर क्या,
इंदौर क्या, आगरा क्या,
ये सब तो मेरे पैरों तले खड़ी हैं,
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है।
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है।