डेरा सच्चा-सौदा सिरसा के चीफ गुरमीत सिंह का जिक्र आज हर जुबान पर है. बच्चा, बूढ़ा, नौजवान उनकी करतूतों पर शर्मिंदगी महसूस कर रहा है. 'नाम चर्चा' की जगह निंदा चर्चाओं ने ले रखी है. कुछ यही आकलन दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट में सीनियर न्यूज एडीटर उमंग मिश्रा ने किया है. मजहबी आस्था के नाम पर लोगों के जज्बातों के साथ जिस तरह से खिलवाड़ हो रहा है, उसी को विस्तार से समझाने की कोशिश उन्होंने अपने आलेख में की है. उन्होंने इस तथ्य पर जोर ज्यादा दिया है कि 'बात सिर्फ राम-रहीम तक सीमित नहीं है. गद्दी को गुरू मानने की प्रथा व्यापक है. जो भी उसक पर बैठेगा, उसे गुरू मान लेंगे. भाई लकड़ी और धातु से बनी सिंहासननुमा कुर्सी ही तो है, उस पर निर्जीव चीज में क्या प्रभाव हो सकता है कि कोई भी अज्ञानी उस पर बैठ जाए और सबका गुरू बन जाए. गुरू तो कोई तब है, जब वो ज्ञान दे सके'.
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27 अगस्त को दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के अंक में प्रकाशित आलेख की कॉपी.
