बेशक यह खुशी की बात है.
Saturday, November 4, 2017
भले ही फाइटर मत उतारिए, पर सफर सुरक्षित करिए
बेशक यह खुशी की बात है.
Monday, October 16, 2017
अब याचना नहीं, रण करने में सक्षम बन रहा अपना भारत
यह खुशी का अवसर है. गर्व करने का वक्त है. वजह है, स्वदेशी एंटी-पनडुब्बी जहाज आईएनएस किलटन का भारतीय नौसेना में शामिल होना. 'मेक इन इंडिया' के जरिए, यह हमारे लिए जरूरी ही नहीं अनिवार्य भी है. सैन्य ताकत का बढऩा इसलिए भी जरूरी और लाजिमी हो जाता है क्योंकि दुनिया भर में, विशेष तौर पर पश्चिमी देशों में भारत का कद लगातार बढ़ रहा है. यह बढ़ता कद चीन और पाकिस्तान सरीखे देशों को रास नहीं आ रहा है. वह लगातार भारत की कूटनीति, सैन्य ताकत और अर्थनीति को छिन्न-भिन्न करने की नाकाम कोशिशों में जुटे हैं. डोकलाम विवाद हो या फिर जम्मू और कश्मीर में आतंकी हमलों का मसला. दोनों ही स्थितियों में चीन और पाकिस्तान को भारत के साथ-साथ अन्य देशों का भी दबाव झेलना पड़ा है. अब जब नौ सेना में आईएनएस किलटन सरीखा युद्धपोत शामिल हो गया है तो समुद्री सीमा की रक्षा में नौसेना को काफी मदद मिलेगी. बंगाल की खाड़ी और दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को रोकने में अमेरिका की अप्रत्यक्ष तरीके से मदद होगी. इससे न सिर्फ विस्तारवादी नीति को अपनाए बैठा चीन हतोत्साहित होगा, बल्कि उसे भारत की तरफ न चाहकर भी सकारात्मक रूख अपनाना पड़ेगा. क्योंकि आईएनएस किलटन दुश्मन की पनडुब्बी तक को तहस-नहस करने की ताकत रखता है. इसके अलावा यह शिपयार्ड अत्याधुनिक हथियारों और सेंसर से युक्त है. इसमें हेवीवेट टॉरपीडो, एएसडब्ल्यू रॉकेट, 76 एमएम कैलिबर मिडियम रेंज बंदूक और दो बहु बैरल 30 एमएम बंदूकें शामिल हैं. फायर कंट्रोल सिस्टम, उन्नत ईएसएम (इलेक्ट्रॉनिक सपोर्ट मेजर) सिस्टम, सबसे उन्नत सोनार और रडार को इंस्टॉल किया है. इधर, सोमवार को रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन की मौजूदगी में 'भारतीय नौसेना की बढ़ रही शक्ति को दर्शाने के लिए शामिल किया है किलटन' बयान देकर सेना ने पड़ोसी देशों के चेहरे पर चिंता की लकीरें जरूर खींच दी हैं. एक खास बात और है कि किलटन बनाने के सफल प्रयोग के बाद देश के इंजीनियरों ने दूसरे देशों की 'निर्भरता' को खत्म कर दिया है. हालांकि जहाज में आगे चलकर कम दूरी के एसएएम सिस्टम को लगाया जा सकेगा और एएसडब्ल्यू हेलीकॉप्टर को उतारा जा सकेगा. लेकिन फिर भी यह भारतीय जहाज रुस में बने उस जहाज की विरासत का दावा करता है, जो 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' में उपयोग में लाया गया था. लिहाजा पड़ोसी देशों युद्धवादी नीति बदलकर दोस्ताना नजरिया अपनाना होगा.
Monday, September 4, 2017
सौ पंखुरियों के कमल हैं कान्हा

कृष्ण अंतत: क्या है?
रह-रहकर यह सवाल उठता है. क्या है उनकी संपूर्ण यात्रा....
आइए एक मानव से महामानव और परमेश्वर की संज्ञा से परिभाषित श्रीकृष्ण के सफर पर चलते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की तलाश करते हैं.
विश्व संस्कृति के इतिहास में मात्र श्रीकृष्ण ऐसे हैं, जिनकी जीवन यात्रा कारागार से आरंभ होकर कल्पतरू तक बनी. सभी तरह के हारे, घबराए, जीवन से निराश लोगों को साहस, आत्मविश्वास और वत्सल छांव प्रदान करती है. कृष्ण के बारे में सोचें...
जिसके जन्म लेने से पूर्व ही सत्ताधारियों ने उसकी हत्या करने का कुचक्र रच डाला था.
जिसे धरती छूते ही उसकी मां की गोदी से छीन लिया था.
आज जब चिकित्सा विज्ञान यह दावा करती है कि कोख से जन्म लेने के आधा घंटे के भीतर मां का स्तनपान शिशु को पौरूषत्व प्रदान करता है, उस दौर में देवकी के हृदय के टुकड़े को छीनकर जन्म के चंद क्षणों बाद ही वासुदेव ने उफनती कालिंदी को पार कराया. अर्थात बृज क्षेत्र का माखनचोर कृष्ण को अपनी असल मां का दूध तक पीने को नहीं मिला था.
सारे मिथक, इतिहास लोकगाथाएं खंगाल लें. कहां मिलेगा आपको कृष्ण सा जन्मजात आउटसाइडर. गर्भ के अंधकार से यूं बाहर फेंके गए हम सभी रोएं हैं, कृष्ण कई लोगों के आंसुओं का कारण लेकर पैदा हुए.
शायद ही कोई होगा, ऐसा लड़खड़ाकर चलने वाला बच्चा, जिसे सुनना पड़ा यह ताना कि तू गोरा नहीं काला है. यशोदा, उसकी मां नहीं, उसने तो बस उसे पाला है. दुधमुंही उम्र और इतना जहर आसपास. कोई और होता तो कच्ची उम्र में न्यूरॉटिक हो जाता. या क्या पाता नंदमहल की खिड़की से यमुना में छलांग लगा देता. आज की युवा पीढ़ी और बालमन यह ध्यान रखे कि कृष्ण ने वह सब नहीं किया.
आयु बढऩे के साथ-साथ कृष्ण ने साहसिक कदम उठाया. इतना साहसिक कि इंद्रपूजा का विरोध तक कर डाला. वर्षा जब धरासार होने लगी तो ब्रजवासियों के लिए गोवर्धन पर्वत उठाकर कृष्ण ने छत्ररक्षक की भूमिका निभाई.
श्रीकृष्ण चरित का निहितार्थ समझें. इंद्रियों का अर्थ गमन या गो. एक बार पहाड़ उठा ले कोई, डूबने से बचा ले अपनों को, तो समझिए कि इंद्रियां सध गईं. उनके साथ काल के प्रवाह में बहने की जगह उन्हें ऊध्र्वमुखी करने को रास कहा जाएगा. अब कृष्ण के आंतरिक प्रभाव की ओर मुड़ें. जब ब्रज की गोपियां भरमाई सी जिंदगी जीने लगीं, तब एक-एक गोपी के वास्ते कृष्ण रास के व्यसन में डूब गए. यमुना की रेत, मयूर की तान, गौ के चारे, दही की मटकी, चूल्हे की आग, राख, धड़कन, सांस, नींद, आंगन, पानी. एक-एक रंग में इंद्रधनुष. कहां-कहां कृष्ण नहीं दीख पड़े थे.
मथुरा पहुंचे श्रीकृष्ण को जीवन की कई त्रासदी झेलनी पड़ी थीं. जरासंध का हमला, कालयवन से प्राण बचाने की नौबत, भिक्षा मांगकर खाना. कई ऐसे प्रसंग जो कृष्ण के जीवन को संघर्ष से भरपूर बनाते हैं. कुरूक्षेत्र के मैदान में अर्जुन जब युद्ध लडऩे से इनकार कर देता है, अपनों को सामने देख शस्त्र गिरा देता है. तब श्री कृष्ण के मुख से गीता के रूप में वाणी प्रखर हुई. जो आज की रहस्य ग्रंथ मानी जाती है.
भ्रष्ट सत्ताधीशों को उखाड़ फेंकने की कला भी श्रीकृष्ण ने सिखाई. आधुनिक युग की मैनेजमेंट टेक्नीक को भी पहले-पहल श्रीकृष्ण ने ही समझा. उन्होंने युधिष्टर से जहां अश्वात्थामा कहलवाया, वहीं भीम के समक्ष शिखंडी को लाकर खड़ा कर दिया. जिसे आजकल के लोग कूटनीति कहते हैं. जयद्रथ वध उनके दूरदृष्टा का परिचय देने के साथ आधुनिक युग शब्दावली का आपदा प्रबंधन कहलाता है. देह छोडऩे के पूर्व श्रीकृष्ण ने जराव्याध को क्षमा दी थी. इसके साथ स्वर्ग और सुख प्रदान किया. इसीलिए श्रीकृष्ण के रूप और व्यक्तित्व को परिभाषित करना असंभव है.
अब जरा विचार करें कि यदि श्रीकृष्ण न होते तो ललित कलाओं का क्या होता. इतिहास गवाह है कि हर कला की धुरी श्रीकृष्ण पर टिकी है. श्रीकृष्ण योगेश्वर भी हैं और ढेरों विरोधी के संगम भी. हम सभी उनकी भक्ति में लीन हैं. उनके जैसा चरित्र खोजने की कल्पना करना भी बेमानी भरा है. क्योंकि कान्हा सौ पंखुरियों के कमल हैं.
Sunday, August 27, 2017
'मोक्ष' दिलाते बाबा
डेरा सच्चा-सौदा सिरसा के चीफ गुरमीत सिंह का जिक्र आज हर जुबान पर है. बच्चा, बूढ़ा, नौजवान उनकी करतूतों पर शर्मिंदगी महसूस कर रहा है. 'नाम चर्चा' की जगह निंदा चर्चाओं ने ले रखी है. कुछ यही आकलन दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट में सीनियर न्यूज एडीटर उमंग मिश्रा ने किया है. मजहबी आस्था के नाम पर लोगों के जज्बातों के साथ जिस तरह से खिलवाड़ हो रहा है, उसी को विस्तार से समझाने की कोशिश उन्होंने अपने आलेख में की है. उन्होंने इस तथ्य पर जोर ज्यादा दिया है कि 'बात सिर्फ राम-रहीम तक सीमित नहीं है. गद्दी को गुरू मानने की प्रथा व्यापक है. जो भी उसक पर बैठेगा, उसे गुरू मान लेंगे. भाई लकड़ी और धातु से बनी सिंहासननुमा कुर्सी ही तो है, उस पर निर्जीव चीज में क्या प्रभाव हो सकता है कि कोई भी अज्ञानी उस पर बैठ जाए और सबका गुरू बन जाए. गुरू तो कोई तब है, जब वो ज्ञान दे सके'.
संलग्न : -
27 अगस्त को दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के अंक में प्रकाशित आलेख की कॉपी.
Thursday, August 24, 2017
युद्ध में सक्षम तो शांति का पक्षधर भी है भारत
भारत और चीन में आर्मी वॉर से पहले 'कमेंट वॉरÓ छिड़ा हुआ है. चीनी मीडिया लगातार भारत को युद्ध की धमकियां दे रहा है, तो भारत की तरफ से भी 'जवाबी फायरिंगÓ चल रही है. हालांकि 'ग्लोबल टाइम्सÓ में रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों ही देश 1962 की तुलना में बेहद मजबूत हैं. चीन तो क्या, यह बात हर कोई जानता है कि अब लड़ाई किसी देश के बूते की बात नहीं है. सच्चाई यह है कि भारत, अमेरिका और जापान की दोस्ती चीन को रास नहीं आ रही है, लिहाजा वह दबाव बनाने के लिए यह सब कर रहा है, ताकि इस क्षेत्र में उसका दबदबा कायम रहे. इधर, गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने दुनिया के किसी भी मुल्क में भारत पर आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं है, सरीखा तल्ख बयान देकर चीन को चेताया है. बेशक उन्होंने इस मसले का हल सकारात्मक तरीके से निकालने की पहल भी यह कहकर की है कि भारत ने कभी किसी पर हमला नहीं किया, लेकिन देश की सुरक्षा पर आंच न आने की बात कहकर अपनी युद्धनीति की मंशा भी जता दी है. वहीं, रक्षा मंत्रालय ने युद्ध की स्थिति से निपटने के लिए व्यापक कदम उठाए हैं. रक्षा मंत्रालय ने रविवार को सेना की जरूरतों के अनुरूप परिणाम के लिए बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) में आमूल-चूल परिवर्तन का फैसला लिया है. यह फैसला डोकलाम में भारत और चीन की सेना में तनातनी को देखते हुए लिया है. रक्षा मंत्रालय ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारों के अतिरिक्त सरकार ने बीआरओ के महानिदेशक (डीजी) को 100 करोड़ रुपये तक की खरीदारी का वित्तीय अधिकार दिया है. इसके अलावा बीआरओ को सड़क परियोजनाओं के लिए बड़ी निर्माण कंपनियों को शामिल करने का फैसला लेने की भी मंजूरी दी है. इस तरह भारत चीन से मुकाबला करने के लिए हर उस रक्षा नीति पर जोर दे रहा है, जो उसे युद्ध के हालातों में सफल और सक्षम करेगी. लिहाज़ा इस बात को समय रहते हुए चीन जितनी जल्दी समझ ले तो बेहतर रहेगा।
Monday, August 21, 2017
भारत को आगे कर चीन और उत्तर कोरिया को रोक रहा अमेरिका
चीन विस्तारवादी नीति अपनाए हुए है. आक्रामकता उसकी फितरत है. चीन का यह रवैया 'दुनिया के दादाÓ अमेरिका को रास नहीं आ रहा. खुद अमेरिका के प्रशांत क्षेत्र के सैन्य कमांडर एडमिरल हैरी हैरिस ने यह स्वीकार किया है. अमेरिकी सैन्य कमांडर हैरिस चीन की करतूतों की तुलना आतंकवाद से कर रहे हैं. वजह साफ है, दरअसल, चीन और उत्तर कोरिया के आक्रामक तेवर अमेरिका को टेंशन दिए हुए हैं. इसीलिए बार-बार उत्तर कोरिया का उकसावे भरी धमकी और प्रशांत क्षेत्र में दक्षिण चीन सागर पर चीन की बढ़ती सैन्य ताकत, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को आक्रामक तेवर बनाए रखने के लिए मजबूर किए हुए है. बता दें कि प्रशांत क्षेत्र के अंतर्गत चीन और उत्तर कोरिया दोनों ही देश आते हैं. इस पर अमेरिकी सैन्य व्यवस्था है, लिहाजा अमेरिका के एडमिरल हैरी हैरिस ने भविष्य में टकराव की आशंका जताई है. साथ ही दोनों देशों से सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर निपटने के लिए अमेरिका ने भारत को खड़ा कर दिया है. तभी तो एडमिरल हैरिस ने भारत की सैन्य ताकत का भरोसा दिलाया है. दक्षिण एशिया में चीन का वर्चस्व कम करने के लिए अमेरिका भारत को आगे करके अपनी लकीर बड़ी रखना चाहता है. जो न सिर्फ भारत के लिए फायदेमंद है, बल्कि भारत से जुड़े सीमा विवादों और पड़ोसी मुल्कों से मधुर संबंध बनाने में भी कारगर है. फिर चाहे भारत में संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण हो या अत्याधुनिक हथियार की मांग, अमेरिका खुलकर भारत को समर्थन दे रहा है. क्योंकि, आज फिलीपिंस जो आतंक का दर्द झेल रहा है, और अमेरिका उस पर सैन्य कार्रवाई के जरिए मल्हम लगा रहा है, वही जख्म भारत को परेशान किए हुए है. आंतकी घुसपैठ, हमले और निर्दोषों की हत्याएं, भारत में भी कम नहीं है, लेकिन यह सुकून की बात है कि दो महाशक्ति एक प्लेटफार्म पर खड़े होकर दुनिया बचाने की जंग लडऩे को तैयार हैं, जो दोनों के भविष्य के लिए बेहतर है.
Monday, August 14, 2017
हताशा में गलत बयानबाजी पाक के लिए खतरा
पाकिस्तान के नए नवेले विदेश मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने कहा है कि पाकिस्तान हमेशा से ही भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहता है लेकिन भारत की ओर से कोई पॉजिटिव रिस्पॉन्स नहीं मिलता है. आसिफ ने ये बात विदेश मंत्री बनने के बाद पहली बार रविवार को की गई प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कही. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस समय शांति की कोशिशें कर रहा है, ये समय है कि भारत को आरोप लगाना छोड़ना चाहिए और अच्छा रिस्पॉन्स करना चाहिए.
आसिफ ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोग ‘आत्मनिर्णय के अधिकार’ के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं जो उन्हें संयुक्त राष्ट्र ने अपने संकल्पों के माध्यम से "आश्वासन दिया" था. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अपने बॉर्डर की रक्षा करने में सक्षम है लेकिन हम लोग शांति से कश्मीर का मुद्दा सुलझाना चाहते हैं.
आसिफ बोले कि पाकिस्तान लगातार आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहा है, पाकिस्तान की सेना ने आतंकियों पर कार्रवाई तेज कर दी है. आपको बता दें कि पाकिस्तान का आतंकवाद के ऊपर ये बयान उस समय आया है जब अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार (NSA) जनरल एचआर मैकमास्टर ने पाकिस्तान को ट्रंप का बेहद सख्त संदेश दिया है, जिसमें उन्होंने पाक से कहा था कि वह तालिबान, हक्कानी नेटवर्क और उस जैसे दूसरे आतंकी संगठनों को मदद पहुंचाने की 'दोगली नीति' को बदले, क्योंकि इससे खुद पाक को ही भारी नुकसान हो रहा है.
गौरतलब है कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को बीते हफ्ते पनामा पेपर्स लीक मामले में भ्रष्टाचार का दोषी मानकर प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद नवाज शरीफ की जगह शाहिद खाकन अब्बासी को पाकिस्तान का नया प्रधानमंत्री बनाया गया है.
Gaurav lahari
Saturday, August 12, 2017
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है।
मित्रों,
आज नमस्कार से बात नहीं करूंगा,
क्यों करूँ,
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है, राजा अपनी गलती मान नहीं रहा है,
मंत्री मौन हैं, जिम्मेदार पता नहीं कौन हैं,
संतरी 2 साल पुराने रिकॉर्ड थामे खड़े हैं, सेवादार उधारी मांगने खड़े हैं,
बकबकियों के मुँह सिल गए हैं,
पुरस्कार कोई लौटा नहीं रहा,
असहिष्णुता अब नहीं दिख रही है,
अज़ी,
नेता छोड़िए,
अभिनेता नहीं बोल रहे,
सब टॉयलेट में मगन हैं,
शायद कह रहे हैं,
अख़लाक़ की मौत थोड़े ही हुई है,
सो मैं उसके घर जाऊँ फूट-फूट कर रोने,
मैं गरीबों के लिए कवि सम्मेलन क्यों छोड़ूं,
मैं तो जश्ने आज़ादी मनाऊँगा,
मैं तो पतंग उड़ाऊँगा,
फिर भी यही गाऊंगा,
ये देश है वीर जवानों का,
गरीबों का, दलितों का,
मैं तो यहाँ मुद्दे उठाता हूँ,
जाति ज़हर घोलता हूँ,
धर्म तराज़ू में तौलता हूँ,
मेरे खून में हिंसा है,
अहिंसा का मैं पुजारी हूँ,
अमरीका में बैठकर
हार जाऊँ सरहद को,
ऐसा मैं जुआरी हूँ,
फिर गोरखपुर क्या,
इंदौर क्या, आगरा क्या,
ये सब तो मेरे पैरों तले खड़ी हैं,
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है।
जब जनता सरकार के सामने बेबस खड़ी है।
Thursday, July 13, 2017
वुमेन क्रिकेट में 'रनक्वीन' कर रही 'राज'
वुमेन क्रिकेट में 'रनक्वीनÓ कर रही राज
शटलर साइना नेहवाल, पीवी सिंधू, टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा, रेसलर गीता फोगट, साक्षी मलिक, पैरालंपिक दीपा मलिक, बबिता कुमारी, दीपा कर्माकर. मुक्केबाज मैरीकॉम, कर्णम मल्लेश्वरी. खेल जगत में यह नाम परिचय के मोहताज नहीं है. इन्होंने देश-दुनिया के पटल पर अलग-अलग खेलों में अविस्मरणीय आयाम स्थापित किया है. इस फेहरिस्त में एक और नाम बुधवार यानी 12 जुलाई को जुड़ गया. वह नाम खेल के मैदान से निकलकर बाहर आया है. मैं बात अपनी भारतीय क्रिकेट महिला टीम की कप्तान मिताली राज की कर रहा हूं. अभी तक भारतीय क्रिकेटर सुर्खियों में रहते थे, सचिन को भगवान बना दिया गया. युवराज सिंह को सिक्सर किंग तो महेंद्र सिंह धौनी मैच फिनिशर के रूप में पहचाने गए. विराट कोहली का सिक्का टीम और बोर्ड से लेकर विश्व रैंकिंग में शीर्ष पर है. उसी बीच मिताली ने अपनी काबलियत के दम पर अपने आप को साबित करके दिखाया है.
मिताली वुमेन क्रिकेट के इतिहास में सबसे ज्यादा रन बनाने वाली बल्लेबाज बनकर देश और दुनिया भर की मीडिया और खबरिया चैनलों की सुर्खियां बन चुकी है. आस्ट्रेलिया सरीखी मजबूत टीम के खिलाफ आईसीसी वुमेंस वल्र्ड कप के लीग मुकाबले में 34 वां रन बनाने के साथ उसने रनों का पहाड़ खड़ा कर दिया. अपने 183 वन डे मैचों की पारियों में 48 बार नॉट आउट रहते हुए छह हजार रन पूरे करते ही मिताली दुनिया की सर्वाधिक रन बनाने वाली महिला का खिताब अपने नाम करा चुकी है. उसने इंग्लैंड की चार्लट एडवर्ड, आस्ट्रेलिया की धुरंधर बल्लेबाज बेलिंडा क्लार्क, कैरेन रॉल्टन और इंग्लैंड की क्लैरी टेलर को भी पीछे छोड़ दिया है.
मिताली की इस महान उपलब्धि से पहले हमें कुछ बरस पहले फ्लैशबैक में जाना होगा. साल 2001-2002 की बात है यह. लखनऊ में इंग्लैंड के विरुद्ध पहला टेस्ट मैच खेला गया. मिताली इस मैच में पहली बार किसी अंतर्राष्ट्रीय टीम के साथ टेस्ट मैच खेलने के लिए पिच पर उतरीं. लेकिन अफसोस मिताली बिना कोई रन बनाए डक यानी जीरो पर आउट हो गई. लेकिन उसने हार नहीं मानी. आज वही मिताली रनों के शिखर पर राज कर रही है.
दरअसल, मिताली का कॅरियर पहले क्रिकेट नहीं था. मिताली जहां अपने बैट से बॉल और बॉलर को डांस कराती है, उससे भी कहीं ज्यादा खुद मिताली भरतनाट्यम में भी दक्ष है. राजस्थान के जोधपुर में 3 दिसम्बर 1982 को जन्मी मिताली ने 'भरतनाट्यमÓ नृत्य में भी ट्रेंनिग प्राप्त की है. अनेक स्टेज शो भी किए हैं. लेकिन क्रिकेट की दीवानगी उनके इस हुनर पर उस वक्त भारी पड़ गई, जब डांस टीचर ने उनसे भरतनाट्यम या क्रिकेट में से किसी एक को चुनने की सलाह दे डाली. चूंकि मिताली को क्रिकेट विरासत में मिला था, इसलिए उसने खेल की रूख किया और अपने बैंकर्स पिता धीरज राज डोराई की तरह बैट बॉल को थामा. पूर्व एयरफोर्स कर्मचारी पिता धीरज ने भी मिताली को प्रोत्साहित करने के लिए हर संभव प्रयत्न किया. उसके यात्रा खर्च उठाने के लिए अपने खर्चों में कटौती की. इसी प्रकार उसकी माँ लीला राज को भी अनेक कुर्बानियाँ बेटी के लिए देनी पड़ीं. उन्होंने बेटी की सहायता के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी ताकि जब खेलों के अभ्यास के पश्चात थकी-हारी लौटे तो वह अपनी बेटी का ख्याल रख सके. बचपन में जब उसके भाई को क्रिकेट की कोचिंग दी जाती थी, तब वह मौक़ा पाने पर गेंद को घुमा देती थी. तब क्रिकेटर ज्योति प्रसाद ने उसे नोटिस किया और कहा कि वह क्रिकेट की अच्छी खिलाड़ी बनेगी. मिताली के माता-पिता ने उसे आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित किया तथा इस प्रकार की सहायता की जिसके कारण वह अपने इस मुकाम तक पहुँच सकी है.
हैदराबाद की मिताली राज ने एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच में 1999 में पहली बार भाग लिया. यह मैच मिल्टन कीनेस, आयरलैंड में हुआ था, जिसमें मिताली ने नाबाद 114 रन बनाए. अपने कैरियर में अपनी मेहनत के दम पर आगे बढ़कर दिखाया और अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट में आज तक का सर्वाधिक स्कोर 214 रन बना कर कीर्तिमान स्थापित किया. यह इतिहास उसने इंग्लैंड के खिलाफ खेलते हुए 2002 में बनाया. यह महिला क्रिकेट का सर्वाधिक रन रिकॉर्ड है. जुलाई 2006 में मिताली राज के नेतृत्व में महिला क्रिकेट टीम ने इंग्लैंड को उसकी ही ज़मीन पर मात दे दी, जिससे मिताली को भरपूर प्रंशसा मिली, साथ ही जीत का श्रेय भी. आस्ट्रेलिया की करेन बोल्टन का रिकार्ड तोड़ दिया जिसने 209 रन बना कर रिकार्ड स्थापित किया था. मिताली ने महिला विश्व कप 2005 में भारतीय महिला टीम की कप्तानी की. उन्होंने 2010, 2011 एवं 2012 में आईसीसी वल्र्ड रैंकिंग में प्रथम स्थान प्राप्त किया. 2003 की क्रिकेट उपलब्धियों के लिए मिताली राज को 21 सितम्बर, 2004 को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. 34 वर्षीय मिताली ने उन तमाम युवतियों के लिए एक नई राह बना डाली है, जो क्रिकेट में अपना कॅरियर बनाने का ख्बाव संजोए हुए हैं.
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Thursday, March 30, 2017
सूबे में संत नहीं संघ चला रहा अपना एजेंडा
मित्रों नमस्कार,
उत्तर प्रदेश का निजाम बदल चुका है. सन्यासी को सत्ता हासिल हुई है और ये सत्ता बदलने के साथ जमाने ने भी करवट ले ली है. हुक्मरान के आदेश पर हुकुमत के हाकिम अवैध बूचड़खानों को बंद कराने में जुटे हैं. कुछ असलियत में बंद करा रहे हैं तो कई सिर्फ अपना नंबर बढ़ा रहे हैं. ये इसलिए भी क्योंकि कई संवेदनशील, जैसे आजमगढ़, आगरा, फीरोजाबाद, मुजफ्फरनगर, फैजाबाद आदि तमाम जिले ऐसे भी हैं, जहां आधिकारिक तौर पर तो बूचड़खाने बंद हो चले हैं, लेकिन बीफ की बिक्री में अभी कोई कमी दर्ज नहीं की गई है. दुकानों से हटकर ये उपक्रम अब घरों से संचालित होने लगे हैं. ये बात दीगर है कि इसकी भनक सिर्फ 'खाने वालों तकÓ ही सीमित है.
फिलहाल इस मुद्दे पर सरकार सख्त है, ऐसा दिखाया जा रहा है. अंदरखाने क्या चल रहा है, किसी को पता नहीं है. यह भी इस सूबे की सच्चाई है कि यदि सत्ता 'कट्टरÓ बनी रही तो खुलेआम चलने वाले बूचड़खाने अतीत की बातें हो जाएंगी. होंगी भी क्यों नहीं, इसके पीछे सीधे तौर पर संघ परिवार का एजेंडा काम कर रहा है. संघ अपने उद्देश्यों की पूर्ति अब खुले तौर पर करने से कोई हिचक महसूस नहीं करेगा. वजह साफ है, केंद्र भी उसके हाथ में और देश के दर्जन भर प्रांतों की बागडोर भी संघ की आनुसांगिक पार्टी बीजेपी की मुट्ठी में कैद है. ऐसे में बूचड़खानों को बंद कराना पहली प्राथमिकता पार्टी और सरकार दोनों की हो सकती है.
क्यों हो सकती है, इसके लिए हमें नौ दशक पीछे जाना होगा. यानी बात 1925 की करते हैं. जब संघ की स्थापना हुई. सन् 1925 में अपने स्थापना काल से ही संघ का उद्देश्य हिंदू समाज को अखंडता और सुसंगत तरीके से आक्रामक शक्ति के रूप में परिवर्तित करना था. इसके सदस्यों और संगठन के लिए धार्मिक भावनाएं, राजनीतिक सरोकारों से जुड़ी हुई थीं. अक्टूबर 1952 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया का अंग्रेजी प्रेस में एक हस्ताक्षरित लेख छपा. हालांकि इस तरह के लेख उस दौर में बमुश्किल, लिखने, पढऩे और देखने को मिलते थे. क्योंकि ब्रितानी हुकुमत की सरपरस्ती के चलते ये लेख कभी-कभार ही प्रकाशित किए जाते थे.
उस लेख के माध्यम से आरएसएस प्रमुख एमएस गोलवलकर यानी 'गुरू जीÓ ने इस बात पर जोर दिया कि 'अपनी जड़ों से कटकर कोई देश पुन निर्माण नहीं कर सकता है. इसलिए ये जरूरी है कि हम अपने मौलिक विचारों और मूल्यों को फिर से जिंदा करें. उन तमाम चिन्हों और प्रतीकों को खत्म कर दें, जो हमें हमारे अतीत की गुलामी और अपमान की याद दिलाते हैं. यह हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए कि हम अपने आपको पवित्रतम मौलिक रूप में देखें. हमारा वर्तमान और भविष्य हमारे स्वर्णिम अतीत के साथ पूर्ण रूप से एक्यबद्ध होना चाहिएÓ....इस तरह पेश किए गए आदर्श को क्या स्वरूप दिया जा सकता है या उसका क्या मतलब निकाला जा सकता है.
आरएसएस के लिए आखिर वे कौन-कौन से खास उद्देश्य थे जो युवाओं को अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए प्रेरित कर पाते? संघ प्रमुख की राय में भारत एक हिंदू राष्ट्र था. हिंदू खुद ही कई जातियों, पंथों और भाषाओं के अलावा क्षेत्रों में विभाजित थे. इसलिए संघ का उद्देश्य हिंदू समाज को मजबूत और सुसंगत तरीके से लड़ाकू बनाना था. आज भी ये एजेंडा संघ के लिए उतना ही प्रासंगिक है, जितना स्थापना काल यानी 1925 में था. खास बात ये है कि गाय के प्रति गोलवलकर जी की व्यक्तिगत श्रद्धा थी. इस पर कोई शक नहीं कर सकता. फिर भी गो हत्या पर प्रतिबंध को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाने संबंधी आह्वान किसी विराट उद्देश्य के प्रति समर्पित था और वह उद्देश्य था हिंदू समाज को एक सूत्र में बांधना.
जाहिर तौर पर गाय पूरे हिंदुस्तान में पाई जाती है. उसी तरह हिंदू भी पूरे देश में, और अब दुनिया के कोने-कोने तक फैले हुए हैं. हिंदू गाय को पूजनीय और प्रात: स्मरणीय मानते हैं, लेकिन मुसलमान और ईसाई गाय को बीफ के नाम से पुकारते हुए उन्हें काटते हैं. एक-दो परिवार इस धर्म के अपवाद हो सकते हैं. (मैं जब ये लेख लिख रहा हूं तो एक मुसलमान मेरे बगल में ही बैठा है.) इस तर्क के आधार पर ही आरएसएस एक राष्ट्रव्यापी अभियान की शुरूआत करना चाहता था. और आज जब वह अपनी आनुसांगिक पार्टी भाजपा को सत्ता के शिखर तक पहुंचा चुका है, तो उसके उद्देश्यों की पूर्ति होती हुई दिख रही है. ये मुहिम करीब 15 वर्ष पहले गुजरात से शुरू हुई और अब उत्तर प्रदेश में इसका व्यापक असर दिख रहा है.
...तो ये कहना गलत नहीं होगा कि सरकार के सिंहासन पर बैठा शख्स कोई अवैध कानून का पालन नहीं करवा रहा, बल्कि वह तो संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक बड़ी लकीर को खींचने में जुटा हुआ है. बेशक ये साहसिक कदम है, लेकिन बहुमत, मजबूत इच्छा शक्ति और कट्टरवादिता के बिना ये संभव नहीं था. अवैध बूचड़खाने बंद करना अच्छी बात है, लेकिन हुक्मरानों को इस गोरखधंधे से बेजार बाजार और बेरोजगार हुए लोगों के लिए नीति संगत कदम उठाने होंगे. ताकि मुसलमानों को लगे कि थोड़ा बहुत जो भी उन्होंने वोट बीजेपी को दिया, वह सार्थक सिद्ध हुआ. वरना देश और प्रदेश एक बार फिर सांप्रदायिकता की आग में जल सकता है..
आपका
गौरव
Sunday, March 12, 2017
सरकार को कमीशन नहीं अब जरूरत है मिशन की
मित्रों नमस्कार,
'करेंगे आप, ये आपका वादा था.
अब आप ही करेंगे, ये आपका दावा रहेगा.
आप करके दिखाएंगे ये आपकी कसौटी होगी.'
उत्तर प्रदेश. 22 करोड़ मतदाताओं की उम्मीदों का प्रदेश. जहां आज एक लहर आई. लहर नहीं सुनामी कहिए. जो लहरों से लड़ते रहे, उन्हें उम्मीद नहीं थी सुनामी आएगी. अब उसी रौ में भगवा लहरा रहा है. हर तरफ. हर जगह. हर जाति पर. हर मजहब पर. हर शख्स पर भगवा रंग चढ़ा है. न मालुम पड़ता है कौन हिंदू है कौन मुसलमान. हुकुमत बदल चुकी है. हाकिम नए होंगे. हुक्मरान भी बदलने वाले हैं. चेहरे तय हो चुके हैं. बस सिंहासन पर बैठने की देर है. ये देर भी जल्द खत्म होगी. 15 मार्च तक का वक्त काटना होगा सिर्फ. तभी 'उत्तम प्रदेश' में 'काबिल', 'सुल्तान', 'दबंग' और 'टाइगर' सत्ता पर काबिज होंगे. साहब और सरकार ज्यों ही बैठेंगे. उनका 'मिशन-कश्मीर' की तरह 'मिशन यूपी' शुरू हो जाएगा. मिशन, मिशन ही रहेगा, ये ही उम्मीद लगाए बैठा है जनमानस. ये मिशन 'कमीशनÓ में नहीं बदलेगा, इसी आस और भरोसे से तो उन्होंने सत्ता बदली है.
- सोचा है, (किसानों ने) अब सारे कर्जे माफ होंगे.
- सोचा है, (शहरवासियों ने) सड़क, पानी और बिजली मिलेगी.
- सोचा है, (बहू-बेटियों ने) सुरक्षा है, मिल जाएगी हमको.
- सोचा है, (युवाओं ने) रोजगार मिल जाएगा उनको.
- सोचा है, (उद्यमियों ने) ईधन और लागत कम होगी.
- सोचा है, (गरीबों ने) आवास और शिक्षा मिलेगी.
यानी, चुनौती है. सत्ता के सामने. विपक्ष की नहीं. विरोध की नहीं. हंगामे की नहीं. शोर-शराबे की नहीं. वॉकआउट की नहीं. बिल पास होने की नहीं. न किसी आंदोलन की. बस, सिर्फ जनतंत्र की उस उम्मीद की, जिसने लोकतंत्र की कसौटी पर 'हरा-लाल' झंडा उतारकर 'भगवा' लहराया है. अब न केंद्र की फिक्र है, न राष्ट्रपति शासन की. जोड़-तोड़ की चिंता भी नहीं है. गठजोड़ करना नहीं है. बस सामने है तो जनता की उम्मीदों का आकाश. जिसे जमीन तक ला पाना असंभव तो है, लेकिन नामुमकिन नहीं. इच्छा शक्ति मजबूत करनी होगी. नहीं की तो, हश्र क्या होगा. सब जानते हैं. यूपी का मिजाज. अब बदल चुका है.
परिवर्तन होता है.
सत्ता का.
खुला और साफ लफ्जों भरा जनादेश.
- 2002 में हुआ.
- 2007 में हुआ.
- 2012 में हुआ.
- अब, 2017 है.
- 2019 आएगा.
- और, 2022 भी.
मना लीजिए, जश्न. जब तक जी चाहे. आपका मन भर जाए तो जरा गौर भी फरमाइए. इस यूपी पर. जहां अपराध है. लूट-खसोट मची है. असुरक्षा है. अपहरण है तो चीरहरण भी है. महंगाई इतनी, कि रोटी नमक से ही मिलती है. गरीब, मजलूम और मजदूरों का. साग-सब्जी की खुशबू त्योहारों पर महकती है. इधर, विकास के इंजन को 'बत्ती' चाहिए. नलों में पानी भी. अन्य मुददे भी हैं. क्षेत्रवार. तहसीलवार. जातिवार और विशेषतौर पर धर्मवार. वादा है आपका, मंदिर भी बनाएंगे. कोर्ट के नियमों पर गौर करते हुए. तो अब जो कहा, उसे करिए भी. लोकतंत्र की कसौटी पर खरा उतरने की आवश्यकता है. 'लुटियंस की दिल्ली' आपकी है. 'अकबर की सल्तनत' भी आपको मिल चुकी है. एक-दो नहीं 325 हैं आप. 73 सांसद हैं आपके. सिर्फ इच्छा शक्ति को और मजबूत कीजिए.
करेंगे आप, ये आपका वादा था.
अब आप ही करेंगे, ये आपका दावा रहेगा.
आप करके दिखाएंगे ये आपकी कसौटी होगी.
आपका,
गौरव







