सुलहकुल की नगरी में जुबान पर मंथन
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| एफटीसीजी ने 'बिन पानी सब सून' की प्रस्तुति दी जिसके निर्देशक उमाशंकर मिश्रा और संयोजन अनिल जैन ने किया. |
उर्दू पर किस्सागोई
मंगलवार को सुलहकुल की नगरी में शब्दों का जादू बिखरता नजर आया. शब्द-शब्द मिलाकर गढ़ी गई एक 'मिनी बुकÓ का विमोचन हुआ तो शहर की जुबान पर विस्तार से चर्चा की गई. बातचीत के जरिए कई गूढ़ रहस्य युवा पीढ़ी ने समझे. 'इश्क की जुबानÓ कही जाने वाली उर्दू पर किस्सागोई शुरू हुई तो यह सिलसिला देर तक चलता रहा. रंग-ए-सुलहकुल का दूसरा दिन पूरी तरह उर्दू पर ही केंद्रित रहा. जुबान सुधार और उसे बढ़ाने पर मंथन किया गया. कल्चरल सेशन में गिटार और शब्द स्वर बनकर गूंजते रहे. शहर की तस्वीर कैरीकेचर में झलकी, जो आयोजन स्थल शहीद स्मारक पर लगाई गई प्रदर्शनी की गवाह बनी.
मज़हबी खाँचों से निकाल कर हिन्दोस्तानी जुबान बनाने की बात की

कार्यक्रम का उद्घाटन लेखक शेष नारायण सिंह की लघु पुस्तिका 'उर्दू: हमारी साझा विरासतÓ के विमोचन के साथ हुआ. मशहूर शायर एडवोकेट अमीर अहमद जाफरी ने अपनी शायरियों के जरिए समझाया कि उर्दू - इश्क की जुबान है. यह हमारी साझी विरासत है. फैज अली शाह ने उर्दू को मज़हबी खाँचों से निकाल कर हिन्दोस्तानी जुबान बनाने की बात की.
डॉ. नसरीन बेगम ने रोशनी डाली

'उर्दू और उसके तालिबे इल्मÓ टॉपिक पर बैकुंठी देवी कन्या महाविद्यालय में उर्दू विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. नसरीन बेगम ने रोशनी डाली. सांस्कृतिक सत्र शुरू हुआ तो तालियों की गडगड़ाहट से आयोजन स्थल गूंज उठा.
कैरिकेचर में दिखी शहर की तस्वीर
युवा कार्टूनिस्ट मदन गोपाल ने अपने हुनर का बखूबी इस्तेमाल करते हुए कैरिकेचर में शहर की कई तस्वीर और शख्सियतों को पेश किया. स्वीटी अग्निहोत्री, डॉ. शशि तिवारी आदि ने विचार रखे. राजवीर सिंह राठौर, डॉ. अरशद, डॉ. प्रेमशंकर, डॉ. ब्रज किशोर और राजीव जैन, चिन्मय शर्मा, मुदित शर्मा, दीपक जैन, प्रमेंद्र, मुदित शर्मा, निर्मल सिंह, रमेश मिश्रा, विशाल झा, अमोल शिरोमणि, वासिफ शेख, अनुज लहरी, चिन्मय गोस्वामी आदि ने सराहनीय सहयोग किया.
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| संचालन गगन पाठक ने किया. |
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| इस अवसर पर डॉ. आरसी शर्मा ने अध्यक्षता की. |







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