Friday, April 13, 2018

आतंकवादी बिरयानी खाता है, शिक्षक भूखा ही सो जाता है

आदरणीय प्रधानमंत्री जी, 
महामहिम, 
मैं लोक कल्याणकारी भारत सरकार के सार्वजनिक प्रतिष्ठान हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड/आईजीसी कोलकाता के घाटशिला (झारखंड) यूनिट की कंपनी के अंगीभूत 1972 में स्थापित सुरदा माइन्स उच्च विद्यालय में शिक्षण कार्य करता रहा हूं. विगत 14 वर्षों से मुझे वेतन नहीं दिया जा  रहा है और मैं परिवार समेत भूखे मरने को मजबूर हूं. अत:  महामहिम से विनम्र निवेदन है कि मेरे आवेदन पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए बकाए वेतन के भुगतान की व्यवस्था करवाकर हमें कृतार्थ करने की कृपा की जाए या परिवार सहित मृत्यु को आवरण (प्राप्त) करने का आदेश निर्गत करें. 
गणेश चौधरी, 
शिक्षक 

जी हां कुछ यही लिखा है गणेश चौधरी नामक शिक्षक ने खत में, जो आप पढ़ रहे हैं. इसका एक-एक अक्षर सच है. जो कड़वा है, लेकिन हकीकत है. दरअसल, मामला शिक्षक के वेतन से जुड़ा हुआ है, इसलिए हमें पहले इस मामले को पहले समझ लेना जरूरी है और यह जान लेना भी जरूरी है कि नेताओं के जुमलों के आसरे यह देश नहीं चलता बल्कि वादा पूर्ति से देश विकास की ओर चलता है. मामला कुछ यूं है कि दो सितंबर 2002 को हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड/आईसीसी कंपनी ने माइंस और स्कूलोंं को बंद कर दिया. माइंस और स्कूलों को बंद करने के पीछे कंपनी अधिकारियों ने अपनी आर्थिक तंगी का हवाला भी बताया. कंपनी के कर्मचारियों को वीआरएस के तहत भुगतान कर दिया, लेकिन शिक्षकों को एक फूटी कौड़ी नहीं दी गई. तब से लेकर अब तक यह शिक्षक अपने वेतन की जंग लड़ रहे हैं. हर रोज वेतन मिलने की उम्मीद के साथ सुबह उठते हैं और रात में वेतन न मिलने की मायूसी के साथ नींद के आगोश में समा जाते हैं. वेतन लेने के लिए शिक्षकों ने अदालत के दरवाजे भी खटखटाए, लेकिन वहां से भी उन्हें कोई सख्त फैसला या इंसाफ नहीं मिला. बस मिला तो तारीख पे तारीख. जिसने उनकी और कमर तोड़ दी. उम्मीद की एक किरण को भी निराशा के इस स्याह अंधेरे ने घेर लिया. 2014 में देश में सत्ता परिवर्तन हुआ. 'शाइनिंग इंडियाÓ का नारा देने वाली भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मेक इंडियाÓ का नारा बुलंद किया. इस नारे की बुलंदी के साथ कंपनी ने फिर से अपनी घाटशिला की यूनिट को खोल दिया और काम शुरू हो गया, लेकिन स्कूलों को अब भी बंद रखा. शिक्षकों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई. अपनी वेतन संबंधी मांग को दोहराया, यहां तक कि इनमें से एक गणेश चौधरी नामक शिक्षक ने पीएमओ से इच्छा मृत्यु तक मांग डाली. फिर भी तत्काल जवाब और आदेश देने वाला पीएमओ अभी तक खामोश है. उसकी चुप्पी और खत का इंतजार यह शिक्षक कर रहा है. स्कूलों के शिक्षकों की बात करें तो 125 शिक्षकों की माली हालत खराब है. 14 साल के अंदर इनमें से 15 शिक्षकों की मौत हो चुकी है. पांच शिक्षक बीमार हैं, उनमें से दो की हालत गंभीर है. देश का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहां पर आतंकवादियों को जेल में बिरयानी खिलाई जाती हैं. एक आतंकवादी पर एक दिन में सिर्फ खाने के लिए सरकारी मंत्रालय के अनुसार 110 रूपया खर्च किया जाता है और देश का भविष्य तैयार करने वाला शिक्षक यहां भूखे पेट सोता है. इसी स्कूल की शिक्षक कली रानी, शमशेर खान, मोहन सिंह, गीतारानी धन आदि तमाम ऐसे नाम हैं, जो अब वेतन मिलने की उम्मीद खो चुके हैं और 'सरकारÓ से इच्छा मृत्यु मांग रहे हैं. अब यह सरकार को तय करना है कि 'इच्छा मृत्युÓ देगी या 'वेतनÓ. शिक्षकों की यह पीड़ा देखकर निदा फाजली का शेर याद आता है कि

ज़हानतों को कहां कर्ब से फरार मिला, 
जिसे निगाह मिली उसको इंतज़ार मिला. 



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