Thursday, April 19, 2018

नेचुरल या इंटेंशनली कैश क्राइसिस


इस समय पर्याप्त करेंसी चलन में है. कुछ राज्यों में अचानक 
बढ़ी असामान्य मांग के कारण करेंसी नोटों की कमी हुई है. 
यह अस्थायी है. इससे तेजी से निपटा जा रहा है. 
अरूण जेटली
वित्त मंत्री, 
भारत सरकार

Courtsy by: Jagran.com

देश एक बार फिर संकट के दौर से गुजर रहा है. जी हां यह संकट नकदी का है. 'नोटबंदीÓ के डेढ़ साल बाद 'नकदबंदीÓ से एटीएम खाली पड़े हुए हैं. लोगों को पैसा निकालना हैं तो वो फिर से कतार में खड़े हो रहे हैं. यूपी, पंजाब, गुजरात, पूर्वी महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कई इलाकों के एटीएम में करेंसी नोटों की किल्लत खड़ी हो गई है. इन राज्यों में एटीएम या तो खाली पड़े हुए हैं बंद पड़े हुए हैं. इससे लोग परेशान हैं. यह बात अलग है कि मंगलवार को वित्त मंत्रालय ने नकदी की कमी, एटीएम में नकदी न होने और कुछ के चालू न होने की बात स्वीकार की, लेकिन यह भी कहा कि तीन माह में बढ़ी करेंसी की असाधारण डिमांड ने यह समस्या उत्पन्न कर दी है. वित्त मंत्री बेशक बीमार हैं, लेकिन ट्विट के जरिए वह कहते हैं कि इस समय पर्याप्त करेंसी चलन में है. कुछ राज्यों में अचानक बढ़ी असामान्य मांग के कारण करेंसी नोटों की कमी हुई है. यह अस्थायी है. इससे तेजी से निपटा जा रहा है. वहीं वित्त मंत्रालय ने यह भी कहा है कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और बिहार के कुछ इलाकों में अचानक बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए अप्रैल में 13 दिन के अंदर 45 हजार करोड़ की नकदी आपूर्ति बढ़ाई गई है. सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक के साथ ही अन्य बैंकों से मांग के अनुरूप करेंसी की उपलब्धता सुनिश्चित कराने को कहा है.
वित्त मंत्रालय के यह तमाम दावे सुनने में तो राहत दे सकते हैं, लेकिन ग्राउंड रिपोर्ट कुछ और ही हाल बतलाती है. कैश की वाकई किल्लत आन खड़ी हुई है.

  • कोई अपनी बीमार मां के इलाज के लिए पैसा चाहता है. लेकिन कैश नहीं है. 
  • कोई अपने बच्चों के स्कूल की फीस जमा करना चाहता है, लेकिन कैश नहीं है. 
  • किसी मां-बाप के घर से बिटिया ब्याही जानी है, लेकिन कैश नहीं है.

यह कैश क्यों नहीं है, इसके लिए हमें रिजर्व बैंक के ही कुछ आंकड़ों को समझना होगा.
7 नवंबर 2016 से पहले 17.97 लाख करोड़ की मुद्रा चलन में थी. (भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार)
6 अप्रैल 2018 को 18.17 लाख करोड़ का कैश बाजार में मौजूद था.
फिर भला छह दिन में ऐसा क्या हुआ कि कैश बाजार से गायब हो गया. एटीएम सूखने लगे. 'नो कैशÓ के बोर्ड टांग दिए गए. आखिर जब 18 लाख करोड़ रूपया मार्केट में था, वह अचानक गायब कैसे हो गया. इसके पीछे तर्क दिया जा सकता है कि

  1. फसल कटने के बाद किसानों के भुगतान में रूपयों का इस्तेमाल अधिक हो रहा है. 
  2. वेडिंग सीजन के चलते लोग ज्यादा रूपया अपनी जेब में दबाकर रखना चाहते हैं.
  3. एजुकेशन सेशन की स्टार्टिंग भी इन्ही दिनों होने से स्कूलों में ज्यादा पैसा जा रहा है. 
  4. वित्तीय वर्ष समाप्ति के चलते भी नौकरी पेशा और बिजनेसमैन को रूपये की जरूरत रहती है. 

लेकिन, उपरोक्त कारणों को सुनने और देखने के बाद कैश की किल्लत की वजह को वाजिब नहीं माना जा सकता है. बड़ा सवाल तो ये है कि चारों कारण तो हर साल होते हैं, फिर ऐसा इस वर्ष या अपै्रल के सात दिनों में क्या हो गया जो बड़े पैमाने पर आधे से ज्यादा भारत में कैश का संकट गहरा गया है?
दरअसल, मेरा मानना है कि देश में कैश की यह किल्लत भी सियासती हो चली है. देश के तीन बड़े राज्यों में 2018 के अंत या फिर 2019 के शुरूआत में विधानसभा चुनाव और देश के आम चुनाव भी होने हैं. कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान. तीनों ही इलेक्शन में वोटों का खेल बिना नोटों के खेला नहीं जा सकता है. जहां दो राज्यों में बीजेपी फिर से अपनी ही सत्ता को दोहराने के लिए जी-जान लगाने को आतुर है, वहीं कर्नाटक में कांग्रेस से सत्ता छीनने का मन बना चुकी है. चुनावों में व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार, जनसभाएं और बड़े नेताओं की रैली करना, बिना कैश के संभव नहीं है. ऐसे में सत्ताधारी पार्टियों ने अभी से अपने दल की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए रूपया दबाना शुरू कर दिया है. ऐसा मैं सिर्फ एक अपने अनुमान के अनुसार कह रहा हूं. यह किसी भी दस्तावेजी रिपोर्ट में अंकित नहीं है.
दूसरा बड़ा कारण खुद बैंकों द्वारा पैदा किया गया है. आरबीआई की रिपोर्ट पर गौर फरमाएं तो कई बैंकों ने लोन देने के बाद वसूली करना, शायद अपनी शान के खिलाफ समझ लिया है. क्योंकि आरबीआई के आंकड़े गवाह हैं कि 2014 से दिसंबर 2017 तक बैंकों ने जो कर्ज दिया उसके सापेक्ष वसूली बमुश्किल छह से दस फीसद तक ही की है. एसबीआई ने 102587 लाख करोड़ का कर्ज दिया, लेकिन वसूला सिर्फ 10396 करोड़ रूपया. पीएनबी ने 27814 करोड़ रूपये का कर्ज दिया, लेकिन वसूली की 6270 करोड़ की. बैंक ऑफ इंडिया ने 1099 करोड़ रूपये की वसूली की, लेकिन लोन बांटा 17680 करोड़ रूपये का. इस दिशा में यूको बैंक ने तो लोन का तमाशा ही बनाकर रख दिया. तीन साल के अंदर 6087 करोड़ रूपया बांटा लेकिन वसूली एक फूटी कौड़ी नहीं की. इसके अलावा आईडीबीआई, केनरा बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और इंडियन ओवरसीज बैंक भी, इस फेहरिस्त में शामिल हैं.


तीसरा और आखिरी कारण. पिछले साल मई में 2000 के नए नोटों को छापना रिजर्व बैंक ने बंद कर दिया है. लिहाजा जो नोट छापे गए थे उनमें से केवल अब मार्केट में एक डाटा के अनुसार 30 फीसद ही चलन में है. यानी सर्कुलेट हो रहे हैं, बाकी 70 फीसद 2000 के नोट कहां गए, कोई नहीं जानता.
अब आपकी खुद समझ में आ गया होगा कि आखिर कैश की किल्लत कोई नैचुरल नहीं है, बल्कि यह जानबूझकर की गई एक हरकत है. निज स्वार्थ के लिए देश के एक फीसदी से भी कम लोगों ने 125 करोड़ भारतीयों के सामने मुश्किलों का अंबार खड़ा कर दिया है. लिहाजा, चुनाव आ रहे हैं, अपनी 'जेब में नोट और जेहन में वोट' की ताकत का सूझबूझ के साथ इस्तेमाल करें.

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