सूरज ढल रहा था. चांद आने को आतुर था
अभी पूनौ के चांद का कद इतना भी छोटा नहीं हुआ था कि चोर-उचक्कों को फायदा मिल जाए. उसी बीच ठाकुर के खोखे पर रोज की तरह चार दोस्तों की महफिल जम उठी. चार दोस्त यानी, अरून, मनोज, रसूल और अनुज. आते ही अनुज ने ठाकुर को ऑर्डर पेल दिया. ठाकुर लाल चाय बनाओ. मनोज भाई की तरफ से. पकौड़े भी तल देना, लगे हाथ अरून ने ठाकुर को फरमान सुना डाला. लोहे के छोटे ड्रमों को उल्टा करके उनके तलों पर चारों जम गए और शुरू कर दिया गपियाना. काम की फिकर तो थी ही नहीं. क्योंकि मनोज ने बोल ही दिया था, 'डोंट फिकर नेवर चिंता'. गप-सड़ाके की स्टार्टिंग हुई अपने बॉलीबुड के सुल्तान सलमान भाई से. रसूल पहले बोला. यार ये अच्छा नहीं हुआ. अब दबंगई कौन करेगा. तभी बात काटते हुए अनुज बोल उठा, रसूल भाई तुम तो बजरंगी भाईजान के जाने से ऐसे उदास हो गए हो कि तुम्हारे घर का मेंबर चला गया. अरे हिरन मारा था. हां, वो भी काला वाला, मनोज ने सुर मिलाया.
ठाकुर से चाय के कप उठाकर सर्व करते हुए अरून बोला, देखो भई, वो तो जाना था. तुम खामखां बहस किए जा रहे हो. तुम्हें एक बात नहीं पता होगी. तब तक ठाकुर बोल उठा, जे लेओ भई अपने पकौड़े भी उठा लो, यहन ठंडे पर जाएंगे. मनोज लपककर पहुंचे. और उठा लिया पकौड़ों से चुचाते तेल भरी कागज की प्लेट. उठाते ही दो मुंह में डाले फिर अपने ड्रम के स्टूल पर धर लिए. अरे जज साहब ने सलमान को हिरन बना दिया, और कर ले हिरन का शिकार.... मुंह में दबाते हुए पकौड़ों को मनोज बोला. रसूल बोला वैसे अच्छा भी हुआ. पर यार मेरी एक बात समझ नहीं आई, साला ये हिरन भी अजीब आयटम है. अपना सिकंदरा हो या जोधपुर. सुर्खियों में बना ही रहता है. तभी अरून ने अनुज को भी पकौड़े ऑफर करते हुए कहा कि देखो अनुज श्रवण कुमार को जानते हो. हां भइया. वो ही ना, अपने मम्मी-पापा को डोली में उठाकर तीरथ कराने ले गया था. हां, सही पकड़े हो बेटा अनुज, मनोज तपाक से बोले. अरून ने चाय की चुस्की खींची और बोले तो सुनो बेटा अनुज और हां रसूल तुम भी. सतयुग से लेकर कलियुग में हिरन का गौरवशाली संयोग रहा है. जो भी ताकतवर इंसान मरा या बर्बाद हुआ तो उसके पीछे बड़ी वजह हिरन ही रही है. फिर चाहे श्रवण कुमार रहे हों या महाभारत कराने वाले किशन जी. अब तक सीता मैया को चुराने से पहले हिरन मरने की कथा तो सबने सुनी थी, लेकिन चारों जुग में हिरन का संयोग निकलने की बात सुन 'तीनों' यानी रसूल, मनोज और अनुज. और उत्सुक हो उठे.
अपने बॉस की काल काटते हुए अरून महाशय बोले, सुनो श्रवण कुमार मरे, तब जब दशरथ जी ने समझ लिया तालाब में कोई हिरन पानी पी रहा है, लाओ शिकार कर लेते हैं. साधा निशाना, चलाया तीर और श्रवण कुमार ढेर. जे तो हुई सतयुग की बात. अब आओ त्रेता में. भगवान राम की धर्मपत्नी माता सीता को चुराने से पहले कौन आया. मनोज बाबू ने दिमाग का घोड़ा दौड़ाया और बोले सोने का हिरन. अबे वो सोने का हिरन नहीं था, वो मायावी हिरन था. रामलीला का नहीं, कछु इतिहास पढ़ लेते तो हिरन नहीं बने होते आज काम के मारे, रसूल ने मनोज को तमाचा भरा जवाब दे मारा. चलो कोई नहीं रसूल भाई छोड़ो सुनो, अरून बोले. तो रामचंद जी ने हिरन के जाल में फंसी सीता का किडनैप करने वाले रावण को मारा. यानी हिरन के कारन रावन भी ढेर. ठीक है. अब द्वापर जुग की भी सुन लो, जरा.![]() |
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