Wednesday, April 25, 2018

गठबंधन तो ठीक पर सीट बंटवारे पर मुश्किल


सियासत में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती हैं: कहावत 

मुद्दों के आसरे कभी एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लडऩे वाली पार्टियां अब एक मंच के नीचे ही मोदी लहर के खिलाफ एकजुट होने की कवायद करने में जुटी है. यानि 2019 में महागठबंधन के आसरे ही क्षत्रप राजनीति को ऑक्सीजन मिलेगी. और अगर मोदी लहर को हराने में कामयाब रही तो यही गठबंधन दिल्ली की गद्दी पर भी अपना दावा ठोंक सकेगा.
अखिलेश और मायावती के साथ आने से एक ओर जहां यूपी की सियासी तस्वीर बदलने लगी है तो वहीं दूसरी ओर देश में मोदी को रोकने के लिए एक सियासी मुहिम शुरू हो चुकी है. हालांकि, 2014 के आम चुनाव में जिस प्रकार से मोदी ने तमाम क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर दिया था. अब वहीं क्षेत्रीय दल महागठबंधन के आसरे ही अपनी जमीन तलाश रहे हैं. मायावती, अखिलेश ने 2019 के लिए गठबंधन का ऐलान किया है.
कांग्रेस यदि गठबंधन का हिस्सा नहीं बनी, तो भी एसपी-बीएसपी उसके लिए दो सीटें छोड़ेंगी. लोकसभा चुनाव 2019 के लिए सीट बंटवारे की कसरत में जुटी दोनों पार्टियों ने तय किया है कि रायबरेली और अमेठी सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारेंगी. फिलहाल एसपी-बीएसपी 78 सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी के साथ सीट बंटवारे को अंतिम रूप दे रही हैं.
हालांकि, अब सबसे ज्यादा नजर यही रहेगी कि यूपी में सपा और बसपा के बीच सीटों को लेकर तालमेल कैसे बनता है. दरअसल, मायावती और अखिलेश के सियासी वजूद के बीच कांग्रेस भी अगर गठबंधन में शामिल होती है तो स्थितियां कुछ भी पेचीदा हो सकती हैं.
ऐसी स्थिति में बीएसपी का पलड़ा भारी है. मायावती लगातार यह भी इशारा करती रही हैं कि वह गठबंधन करेंगी तो उन्हें सम्मानजक सीटें चाहिए. वहीं अखिलेश भी राज्यसभा में बीएसपी की हार के बाद कह चुके हैं कि समाजवादी बड़े दिल वाले हैं.


  
 योगेश मिश्रा
(गेस्ट राइटर)

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