Friday, March 30, 2018

क्यों होता है ऐसा....


नरम बिस्तर पर अब नींद नहीं आती हमें,
जबकि पहले खटिया पर खर्राटे भरा करते थे.

नंगे बदन बच्चा आज भी उस पुतले के सामने सो गया,
जिस पर फैंसी महंगे लिबास लटके हुए थे.

भूखा सोता है एक परिवार उस रेस्तरां के आगे,
जहां दिन-रात लंच-डिनर का शोर मचा रहता है.

प्लास्टिक बोतलों को इकट्ठा कर रहा है वो बच्चा,
जो एक घूंट पानी के लिए दिन भर तरसता रहता है.

अखबार-किताबों की रद्दी खरीदने की आवाज लगाता है वो रोज सवेरे,
जो बचपन में कलम-किताब लेकर स्कूल जाने के सपने देखा करता था.

पत्थरों को तोड़ रही है वो बच्ची्
जिसके हाथों में हथौड़ा उठाने की ताकत नहीं..


Thursday, March 29, 2018

सब में रब और रब में राम-2




शेष क्रमश:
जाति और पंथ से बढ़कर एक धर्म और जाति होती है, वह है मानवता की. इंसानियत की यह जाति हर मजहब में मायने रखती है. यह बात अलग है कि इसे कुछ लोग अपने रूआब के लिए इस्तेमाल करते हैं. कुछ अपनी दौलत-शौहरत दिखाने के लिए इंसानियत का मजहब अपनाते हैं
तो कुछेक ऐसे भी लोग हैं जाति-मजहब से ऊपर उठकर इंसानियत को ही अपना धर्म मानते हैं, लेकिन हिंदुत्व का जो एजेंडा देश में चल रहा है, वह इस मानव सभ्यता के 'सर्वोच्च धर्म इंसानियतÓ को ही खत्म करने पर आमादा है. खास तौर पर एक बहुचर्चित सियासी दल ने यह एजेंडा देश को 'सीरियाÓ बनाने की राह में पहुंचा दिया है. अपने वोट बैंक के खातिर वह यह समझ नहीं पा रहा है कि यदि इंसानियत खत्म हुई तो दूसरा इसका दुश्मन हैवानियत देश में खड़ी हो जाएगी, फिर वह ना तो धर्म देखेगी, न जाति, न नेता और न जनता. सीरिया की तरह हैवानियत अपना इस कदर असर दिखाएगी कि जनमानस के अस्तित्व पर खतरा मंडरा उठेगा. इसीलिए आज मैं 'सब में रब और रब में राम-2Ó की उन चंद और लाइनों की व्याख्या आपके सामने कर रहा हूं जो कलियुग के वेदव्यास ने हिंदुत्व का माहौल बनाने के लिए अपने मुखारबिंदु से निकाली हैं और उसे एक धर्म की धुरी बनाने का षड्यंत्र रचा है...

डम-डम बाज रहा है, काल के कपाल का
मंदिर वहीं बनाऊंगा चेला हूं महाकाल का

यह कोई नई बात नहीं है कि जब काल के कपाल के डमरू ने शोर मचाया है. उसकी आवाज गूंजी है. वह सीधी सी बात है, जिसका काल आया है, उसे फिर खुद महाकाल भी नहीं बचा सके हैं. फिर चाहे राजा हो या रंक. हरिद्वार वासी हो या उज्जैन में रहने वाला. इसलिए यह कहना कि काल के कपाल का डमरू बाज रहा है और अब मंदिर बनाने का समय आ गया है तो आप यह भली भांति जानते हैं कि देश में यह मुद्दा तकरीबन 150 साल से चल रहा है. आज भी यह मुद्दा देश की सर्वोच्च अदालत में लंबित है. लगभग रोज सुनवाई भी हो रही है, फिर भी अभी कोई फैसला नहीं हो सका है. जबकि 150 वर्ष के एक लंबे समय में देश ने कई बड़े मुद्दों को हल किया है. सियासी इच्छा न होने के कारण यह मुद्दा सिर्फ चुनावी और एक वोट बैंक बनकर रह गया है, नहीं तो यदि सियासी इच्छा प्रबल हो तो यह मुद्दा मिनटों में उसी तरह हल हो सकता है, जिस तरह भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ. बांग्लादेश एक अलग देश बना. अक्साई चीन, पाक अधिकृत काश्मीर यह हिस्सा भी, हमारे देश से अलग हो गए. फिर भला कुछ एकड़ की जमीन का यह मसला हल कैसे नहीं हो सकता. लिहाजा यह कहना कि आप मंदिर बना देंगे, यह बात कहना छोड़ दीजिए, 'व्यास जी.Ó क्योंकि जिसके लिए आप यह धर्मगान गा रहे हैं, सबसे पहले तो वही लोग नहीं चाहते हैं कि मंदिर बने. वरना देश के 20 से अधिक राज्यों और केंद्र में उनकी सरकार होने के बावजूद उन्हें कुछ भी करने से कौन रोक सकता है. लाएं एक कानून संसद में और कह दें कि 2019 के चुनाव से पहले मंदिर बन जाएगा.

अब समझते हैं नीचे लिखी दो लाइनों का अर्थ..

शिखर हिमालय की चोटी पर केसरिया लहराएंगे
लहराएंगे, लहराएंगे, हम केसरिया लहराएंगे

आपने यह तर्कसंगत बात नहीं की है. तथाकथित लेखक ने भी यह सही नहीं लिखा है. सिर्फ और सिर्फ एक वर्ग विशेष की भावनाओं को भड़काने की कोशिश भर है. जो देश में धार्मिक जंग उत्पन्न करने के हालात खड़े कर सकता है. वरना वास्तविकता और हकीकत ये है कि शिखर हिमालय पर पहुंचना हर किसी के वश की बात नहीं है, जो हिमालय पर पहुंच जाते हैं वह अपने राष्ट्र का ध्वज पताका फहराते हैं, न कि किसी वर्ग, जाति और धर्म का. तार्किक स्तर पर तो यह लाइनें निरर्थक और व्यर्थ तौर पर ही लिखी गई हैं. इन्हें कोई न तो समझे और ना ही गंभीरता से ले. (क्रमश:)
अभी कुछ लाइनें और शेष हैं...

जल्द ही उनकी भी व्याख्या करूंगा,

देखते रहिए बस यह ब्लॉग...


Monday, March 19, 2018

सब में रब और रब में राम - 1



एक थे 'वेद व्यास जीÓ. महाभारत काल का उन्होंने वर्णन किया था. धर्म ग्रंथों और स्कूली किताबों में भी इस तथ्य की पुष्टि होती है. और आज कलयुग है. त्रेता के राम को एक नए 'वेद व्यास जीÓ ने नए सिरे से गढ़ दिया है. अपने ओजपूर्ण और जज्बाती तेवरों के साथ उन्होंने जो यह गगनभेदी धर्मगान गाया है, वह आखिर क्या है? समझ नहीं आता, वह कहते हैं कि ...

मैं हिंदू जगाने आया हूं, मैं हिंदू जगाकर जाऊंगा 
मरते दम तक अपने मुख से जय श्री राम गाऊंगा 

..तो क्या आज तक हिंदू जागा हुआ नहीं था. क्या अब तक हिंदू कुम्भकर्णी नींद सोया हुआ था. क्या आपके जगाने से ही हिंदू की रगों में खून दौड़ेगा और उनके मुख से 'जयश्रीरामÓ सरीखा नारा निकलेगा.
शायद नहीं. बल्कि बिलकुल नहीं, और मेरी नजर से तो कतई नहीं.
वजह है, वो भी बड़ी. हिंदू कोई कुम्भकर्ण नामक व्यक्ति नहीं है. जो छह महीने सोता है और छह महीने अपने जीवन यापन के लिए जरूरी संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल करता है. बल्कि हिंदू एक विचारधारा है. एक सभ्यता है. जो आत्म शंाति की तरफ ले जाने के लिए अध्यात्म का रास्ता चुनती है और आत्मा का परमात्मा में मिलन कराती है.

अब जिक्र इसी धर्मगान के दूसरे अंतरे का... 

दमक रहीं तलवारें सबकी, चमक रहा त्रिशूल है
हिन्दू को कमजोर न समझे, ये दुश्मन की भूल हैं

...जरा मुझे बताइए कि क्या हिंदुओं ने पहले कभी तलवारें नहीं उठाई हैं. जो अब तलवारें लहराने और उनको चमकाने की बात कही जा रही है. बल्कि जब-जब धर्म की हानि हुई है, हिंदू ही जागा है और उसने आगे बढ़कर धर्म की रक्षा की है. क्या आपके बताने से त्रिशूल और तलवारें चमकेंगी. त्रेता में भगवान श्रीराम धनुष और द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र नहीं उठाया था. कलियुग में क्यों हिंदुओं के बलिदानों को भूल जाते हो. मंगल पांडे, भगत सिंह और चंद्रशेखर, आखिर हिंदू ही तो थे. लिहाजा दुश्मन यह भली भांति जानता है कि यह समाज अपने आप में परिपूर्ण सामथ्र्य और वतनपरस्ती रखता है.

अब जिक्र इसी धर्मगान के तीसरे अंतरे का 

सब में रब और रब में राम
मिलकर बोलो जय श्री राम

 यह लाइन गाते वक्त शायद 'व्यास जीÓ भूल गए कि वह खुद ही हिंदु-मुस्लिम के एकजुट होने की बात अप्रत्यक्ष तौर पर कर गए. क्योंकि उन्होंने खुद कहा कि सब में रब, यानी हर एक व्यक्ति में रब समाया हुआ है, फिर क्या हिंदु और क्या मुस्लिम. सिर्फ 'व्यास जीÓ ने ही रब में भेद कर दिया. रब में राम कहकर. उन्होंने रब को अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया. जबकि छोटी क्लासों के बच्च्े भी जानते हैं कि जब वह राम और रमजान लिखेंगे तो दोनों के शुरूआती शब्द 'रामÓ ही लिखे जाएंगे. लिहाजा मिलकर 'जयश्रीरामÓ बोला जाए तो मिलकर 'अल्लाह हो अकबरÓ बोलना भी इस देश की तहजीब में आता है.

अब जिक्र इसी धर्मगान के चौथे अंतरे का.. 

मांग रहा हूं वचन राम से, मुझको भारत मात मिले 
हर जनम में हिंदुस्तान मिले, हर जनम में हिंदु नाम मिले

 यह लाइनें तो सचमुच ही लेखक और गायक के सामान्य ज्ञान की क्षीणता को प्रदर्शित करती हैं. क्योंकि राम से वचन मांगते वक्त लोगों ने कभी जनम-जनम का फेर नहीं मांगा, बल्कि सदैव उनकी भक्ति का अनुराग ही मांगा. और दूसरी लाइनों में यह कहना कि 'मुझे भारत मात मिले या हिंदुस्तान मिलेÓ तो आपकी जानकारी के लिए बता दिया जाए कि हिंदुस्तान कोई सीमाओं से बंधा हुआ स्थान नहीं है. यह बात अलग है कि आज देशों की सीमाओं ने हर देश का नक्शा अलग खींच दिया है, लेकिन आपके ही हिंदु धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि भारत कहां तक फैला हुआ है. भारत कोई जम्मू से कन्या कुमारी और बंगाल से जैसलमेर तक नहीं है, बल्कि पहले आर्यावर्त हुआ करता था, लिहाजा आप दुनिया के किसी भी देश में जन्में आपको हिंदुस्तान मिलेगा. और आज तो लगभग हर देश में एक 'मिनी भारतÓ बसता है. जहां राम-रहीम का नाम संग-संग लिया जाता है. (क्रमश:)

इससे आगे की लाइनों का अर्थ जल्द बताऊंगा...
इसी ब्लॉग पर...


गौरव लहरी

09897935410

Saturday, March 10, 2018

लाइफ सक्सेस करने का बेहतर फलसफा है ऑनलाइन


कंटेंट चोरी के खतरे के बावजूद युवा राइटर्स की फस्र्ट च्वॉइस सोशल मीडिया 

दिल्ली के युवा राइटर्स अभिषेक गोस्वामी और दिव्येश दत्ता के साथ आपका साथी गौरव लहरी.

आगरा कॉलेज मैदान में शनिवार को अक्षरों का संसार बसा तो कई किताबों ने अपना बसेरा डाल लिया. देश-दुनिया के तमाम मुद्दों को लेकर शब्द शिल्पी यहां हाजिर हुए हैं. जो जिंदगी का मतलब अपनी किताबों के जरिए समझा रहे हैं. ऑनलाइन पर अपना कंज्यूमर तलाशने वाली युवा राइटर्स की जमात भी बुक फेयर में अपनी दस्तक दे चुकी है और वह प्रिंट मीडिया से ज्यादा सोशल मीडिया के जरिए लाइफ सक्सेस बनाने के नजरिए से इत्तेफाक रखते हैं.

जिंदगी में शार्टकट्स न अपनाएं 
 
स्मिता
'एट क्रॉस रोड्स-ग्रीड फॉर लव एंड लव ऑफ मनी' की राइटर और दिल्ली निवासी स्मिता माहेश्वरी बताती हैं कि लाइफ में कई च्वॉइस करनी पड़ती हैं. उसके लिए कुछ मुश्किल भरा रास्ता चुनते हैं तो कुछ शार्टकट्स अपनाते हैं. लेकिन शार्टकट्स अपनाने वालों की जिंदगी में उनके निजी रिश्तों पर असर पड़ता ही है. फाइनेंशियल क्राइसिस भी उभरती है, लिहाजा हमें अपनी मुश्किलों का डटकर सामना करना चाहिए, उनसे भागना नहीं चाहिए.






तकनीक ही बचा सकती है कंटेंट
दिव्येश दत्ता
यू मी एंड लव...जिहाद गांधी विद गन के युवा राइटर दिव्येश दत्ता कहते हैं कि सोशल मीडिया के जमाने में कंटेंट के 'कट-पेस्ट' का चलन ज्यादा हो चुका है. हालांकि गवर्नेंस इस पर ज्यादा सीरियस है, फिर भी इससे बचा नहीं जा सकता. सिर्फ टेक्नीकली टूल्स ही हमें हमारा कंटेट सुरक्षित रखने में मदद कर सकते हैं. लिहाजा ऑथर को चाहिए कि वह अपनी वेबसाइट, पीडीएफ और अन्य कंटेंट को सुरक्षित करने के लिए अपडेट बना रहे.





प्रिंट से ज्यादा ऑनलाइन कंज्यूमर्स हैं 
अभिषेक गोस्वामी
दिल्ली से ही आए 'द लोनली ड्रमरÓ के राइटर अभिषेक गोस्वामी कहते हैं कि आज वक्त बदल चुका है. वह दिन चले गए, जब एक ऑथर की बुक का मार्केट में आने का इंतजार किया जाता था, अब तो मन में ख्याल आते ही ऑथर अपनी कलम सोशल मीडिया पर चला देते हैं. इससे उन्हें अपना मैटेरियल प्रिंट से ज्यादा ऑनलाइन कंज्यूमर तक परोसने में देर नहीं लगती. स्पीड से रीडर्स मिल जाते हैं और फटाफट अपने कंटेंट के भले-बुरे का पता लग जाता है. 

Thursday, March 8, 2018

सजा कला, प्रतिभा और संस्कृति का मंच


प्रमुख 'रंगकर्मी स्व. जितेंद्र रघुवंशी और सुलहकुल की विरासत' पर मंथन 
करते हुए वक्ताओं ने उनकी स्मृति में रंग भरे.


रंग-ए-सुलहकुल आयोजन के अवसर पर साझा मंच पर जब युवाओं ने अपने 
शहर की विरासत को सहेजा तो उनकी गंभीरता और परिपक्वता गजब की नजर आई. 
कई सांस्कृतिक और रंगारंग प्रस्तुतियों ने मनमोह लिया. 





कार्यक्रम का उद्घाटन वैचारिक सत्र के साथ हुआ. इस अवसर पर 'जितेन्द्र रघुवंशी और सुलहकुल की विरासत' पर इप्टा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. ज्योत्सना रघुवंशी ने प्रमुखता से प्रकाश डालते हुए कहा कि जितेंन्द्र रघुवंशी विभिन्न संस्कृतियों के हामी थे और युवा पीढ़ी को साथ लेकर चलते थे. वरिष्ठ पत्रकार हरिनारायण, विनय पतसारिया, प्रमोद सारस्वत ने विशिष्ट उपस्थिति दर्ज कराई. 


अनूठी प्रस्तुतियों ने मनमोहा
सांस्कृतिक सत्र में कला और संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिला. अन्तरा मुखर्जी का भाव अभिनय कथक में नजर आया. आशीष दधीचि ने 'शहर की आवाजें' सुनाईं तो लोगों के जेहन में प्रमुख स्थान दिखाई देने लगे. मोहित कुलश्रेष्ठ ने साहित्यकार प्रेमचंद की कृति 'बड़े भाई साबÓ की प्रस्तुति देकर मंत्रमुग्ध कर दिया. भास्कर झा ने काव्य पाठ की प्रस्तुति दी. काजल शर्मा और अन्तरा मुखर्जी ने ब्रज की होली की अनूठी प्रस्तुति देकर खूब तालियां बटोरीं.


कलाकारों का किया सम्मान
  






सभी को किशन लाल लहरी स्मृति ट्रस्ट के गौरव लहरी और सभी अतिथियों ने सभी कलाकारों को स्मृति चिन्ह और प्रमाण पत्र  दिए.











सराहनीय सहयोग किया


इस अवसर पर स्वीटी अग्निहोत्री, डॉ. शशि तिवारी आदि ने विचार रखे. राजवीर सिंह राठौर, डॉ. अरशद, डॉ. प्रेमशंकर, डॉ. ब्रज किशोर और राजीव जैन, चिन्मय शर्मा, मुदित शर्मा, दीपक जैन, प्रमेंद्र, मुदित शर्मा, निर्मल सिंह, रमेश मिश्रा, विशाल झा, अमोल शिरोमणि, वासिफ शेख, अनुज लहरी, चिन्मय गोस्वामी आदि ने सराहनीय सहयोग किया. संचालन मानस रघुवंशी और नीतू दीक्षित ने किया.  अंत में समन्वयक डॉ विजय शर्मा ने सभी को धन्यवाद ज्ञापन किया.

Wednesday, March 7, 2018

सुलहकुल की नगरी में जुबान पर मंथन


सुलहकुल की नगरी में जुबान पर मंथन 
एफटीसीजी ने 'बिन पानी सब सून' की प्रस्तुति दी
जिसके निर्देशक उमाशंकर मिश्रा और संयोजन अनिल जैन ने किया.
उर्दू पर किस्सागोई


मंगलवार को सुलहकुल की नगरी में शब्दों का जादू बिखरता नजर आया. शब्द-शब्द मिलाकर गढ़ी गई एक 'मिनी बुकÓ का विमोचन हुआ तो शहर की जुबान पर विस्तार से चर्चा की गई. बातचीत के जरिए कई गूढ़ रहस्य युवा पीढ़ी ने समझे. 'इश्क की जुबानÓ कही जाने वाली उर्दू पर किस्सागोई शुरू हुई तो यह सिलसिला देर तक चलता रहा. रंग-ए-सुलहकुल का दूसरा दिन पूरी तरह उर्दू पर ही केंद्रित रहा. जुबान सुधार और उसे बढ़ाने पर मंथन किया गया. कल्चरल सेशन में गिटार और शब्द स्वर बनकर गूंजते रहे. शहर की तस्वीर कैरीकेचर में झलकी, जो आयोजन स्थल शहीद स्मारक पर लगाई गई प्रदर्शनी की गवाह बनी.


मज़हबी खाँचों से निकाल कर हिन्दोस्तानी जुबान बनाने की बात की


कार्यक्रम का उद्घाटन लेखक शेष नारायण सिंह की लघु पुस्तिका 'उर्दू: हमारी साझा विरासतÓ के विमोचन के साथ हुआ. मशहूर शायर एडवोकेट अमीर अहमद जाफरी ने अपनी शायरियों के जरिए समझाया कि उर्दू - इश्क की जुबान है. यह हमारी साझी विरासत है. फैज अली शाह ने उर्दू को मज़हबी खाँचों से निकाल कर हिन्दोस्तानी जुबान बनाने की बात की.


 डॉ. नसरीन बेगम ने रोशनी डाली

'उर्दू और उसके तालिबे इल्मÓ टॉपिक पर बैकुंठी देवी कन्या महाविद्यालय में उर्दू विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. नसरीन बेगम ने रोशनी डाली. सांस्कृतिक सत्र शुरू हुआ तो तालियों की गडगड़ाहट से आयोजन स्थल गूंज उठा.

                                                कैरिकेचर में दिखी शहर की तस्वीर


युवा कार्टूनिस्ट मदन गोपाल ने अपने हुनर का बखूबी इस्तेमाल करते हुए कैरिकेचर में शहर की कई तस्वीर और शख्सियतों को पेश किया. स्वीटी अग्निहोत्री, डॉ. शशि तिवारी आदि ने विचार रखे. राजवीर सिंह राठौर, डॉ. अरशद, डॉ. प्रेमशंकर, डॉ. ब्रज किशोर और राजीव जैन, चिन्मय शर्मा, मुदित शर्मा, दीपक जैन, प्रमेंद्र, मुदित शर्मा, निर्मल सिंह, रमेश मिश्रा, विशाल झा, अमोल शिरोमणि, वासिफ शेख, अनुज लहरी, चिन्मय गोस्वामी आदि ने सराहनीय सहयोग किया. 

संचालन गगन पाठक ने किया.



 इस अवसर पर डॉ. आरसी शर्मा ने अध्यक्षता की.


Monday, March 5, 2018

रंग-ए-सुलहकुल: 'साझा' मंच पर रखी युवाओं ने 'विरासत'


'जिनका काम है सियासत, वो जाने, 
मेरा पैगाम है मोहब्बत, जहां तक पहुंचे' 
सुलहकुल के इस संदेश के साथ युवा विरासत की साझी पहल रंग-ए-सुलहकुल का आगाज सोमवार को गोवर्धन होटल में हो गया. इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी गई.

गूंजी तबले की थाप
कार्यक्रम का उद्घाटन श्रीमती भावना रघुवंशी और सूफी परंपरा के संवाहक सैयद अजमल अली शाह नियाजी ने संयुक्त रूप से किया. प्रख्यात शायर जनकवि नजीर अकबराबादी का होली गीत आकांक्षा शर्मा ने 'जब फागुन रंग झमकते हो' सुनाया. राग रिदम में युवा तबला वादक भानु प्रताप सिंह ने अपनी उंगलियों का जादू तबरे पर बिखेरा.

जन गीतों का गायन
भारतीय जन नाट्य संघ के कलाकारों ने दिलीप रघुवंशी के संयोजन में जन गीतों का गायन किया. इसमें अजय शर्मा, मिथुन चौहान, मनीष कुमार, अर्जुन गिरि, निर्मल सिंह, योगेंद्र स्वरूप, पुनीत, भारत, शिवम ने प्रतिभा का प्रदर्शन किया.

सुलहकुल संस्कृति का प्रतीक

होली व सुलहकुल को भाईचारे का प्रतीक बताते हुए डॉ. जेएन टंडन ने शहर के प्रमुख रंगकर्मी स्व. जितेंद्र रघुवंशी को सुलहकुल संस्कृति का प्रतीक बताया.

कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन
नृत्य ज्योति कथक केंद्र की नृत्यांगनाओं ने ज्योति खंडेलवाल के निर्देशन में 'सूर के कन्हाईÓ प्रस्तुत किया. इसमें कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया गया. इप्टा की नायाब प्रस्तुति 'सेठ बांकेमलÓ का चरित्र चित्रण का अभियन निर्मल सिंह ने किया.

गली-घाटों की प्रदर्शनी दिखी 
'जूम ऑन आगराÓ के तहत परिसर प्रदर्शनी में वासिफ शेख और अनुज लहरी ने आगरा के स्मारकों, गलियों और घाटों की फोटो प्रदर्शनी लगाई. संचालन डॉ. विजय शर्मा ने किया. विशिष्ट अतिथि गजेंद्र सिंह, स्वीटी अग्निहोत्री, डॉ. बृज खंडेलवाल, शशि शिरोमणि और शशि तिवारी आदि ने विचार रखे. कार्यक्रम में ज्योत्सना रघुवंशी, फैज अली शाह, चिन्मय शर्मा, मुदित शर्मा, दीपक जैन, आशीष दधीचि, मुदित शर्मा, शरद गुप्ता आदि ने सराहनीय सहयोग किया.



      *शब्द रंग*
*6 मार्च, मंगलवार,  3 बजे 2018*
*विमोचन : लघु पुस्तिका *
'उर्दू : हमारी साझी विरासत'
लेखक - शेष नारायण सिंह
   *सुलहकुल और उर्दू*
एक बातचीत
*उर्दू इश्क़ की जुबान*
एड. अमीर अहमद जाफ़री
उर्दू शायर 
*उर्दू और उसके तालिबे इल्म*
डॉ नसरीन बेगम 
वरिष्ठ प्राध्यापक, उर्दू विभाग
बैकुंठी देवी कन्या महाविद्यालय, आगरा।
*सांस्कृतिक सत्र*
हवाईयन गिटार वादन :
शुभम सिंह जाखड़
गायन: अब्बास अमीर जाफ़री
*परिसर में प्रदर्शनी*
*कैरिकेचर*
मदन गोपाल, युवा कार्टूनिस्ट
(जलपान)
*स्थान: शहीद स्मारक, संजय प्लेस ,आगरा।* 

Sunday, March 4, 2018

आज से होगा रंग-ए-सुलहकुल का आगाज



चार दिन तक होंगे शहर में कई सांस्कृतिक और रचनात्मक कार्यक्रम
युवा विरासत की साझी पहल रंग-ए-सुलहकुल का आज से आगाज होने जा रहा है. इस अवसर पर शहर भर में विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग संस्थाओं द्वारा कई अनूठे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा. रविवार को शहीद स्मारक पर आयोजित रंग-ए-सुलहकुल आयोजन समिति के पदाधिकारियों ने प्रेस कांफ्रेंस में विभिन्न कार्यक्रमों की रूपरेखा को समझाया.

जूम ऑन आगरा पर प्रदर्शनी 

पदाधिकारियों ने बताया कि रंग-ए-सुलह का उद्घाटन गोवर्धन होटल में शाम चार बजे से होगा. राग-रंग की थीम पर नजीर की होली सुनाई देगी तो इप्टा के जनगीत के स्वर भी गूंजेंगे. राग रिदम में तबले की थाप बजेगी. 'होली सुलहकुल का त्योहारÓ विषय पर डॉ. जेएन टंडन का व्याख्यान सुनने को मिलेगा. 'सेठ बांकेमलÓ की भाव अभिनय की प्रस्तुति दी जाएगी. सूर के कन्हाई पर नृत्य ज्योति कला केंद्र के कलाकारों द्वारा गु्रप डांस होगा. कैंपस में 'जूम ऑन आगराÓ पर प्रदर्शनी में मोबाइल फोटोग्राफी की कलाकृतियां देखने के लिए मिलेंगी. 

दिखेंगे आगरा के कैरीकेचर


इसके साथ ही छह मार्च को शहीद स्मारक संजय प्लेस में दोपहर तीन बजे 'उर्दू हमारी साझी विरासतÓ लघु पुस्तिका का विमोचन, सुलहकुल और उर्दू पर एक बातचीत, उर्दू गजल-आज के इश्क की जबान, उर्दू और उसके तालिबे इल्म, हवाईयन गिटार वादन, गायन, फिल्म एंड थियेटर क्रियेशन गु्रप द्वारा बिन पानी सब सून नामक नुक्कड़ नाटक के अलावा परिसर में ही कैरीकेचर ऑफ आगरा बाई मदन गोपाल की प्रदर्शनी का आयोजन होगा.

गूंजेंगी शहर की आवाजें
सात मार्च को नागरी प्रचारिणी सभा के मानस भवन में शाम चार बजे से रंगकर्मी स्व. जितेंद्र रघुवंशी को समर्पित स्मृति रंग के तहत कथक, शहर की आवाजें, बड़े भाई साहब एकल प्रस्तुति, रंग-ध्वनि, काव्य पाठ, बृज की होली, ललित कला संस्थान की चित्रकला प्रदर्शनी, ललित कला विभाग की इनले वर्क पेंटिंग, लीगेसी आर्ट स्टूडियो की तरफ से स्कल्पचर के साथ परिसर प्रदर्शनी का आयोजन होगा. आठ मार्च को नागेश्वर मंदिर कैंपस, बाग मुजफ्फर खान पर 'रंग तरूणीÓ के तहत मेरी पाठशाला की छात्राओं द्वारा 'मेरे रंग की दुनियाÓ विषय पर वर्कशॉप और पेंटिंग कंप्टीशन, नाट्य प्रस्तुति-आधी औरत आधा ख्वाब, परिसर प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा.


---------आज राग रंग----------
5 मार्च सोमवार  
शाम 4 बजे, 2018
"रंग ए सुलहकुल"
उदघाटन: 
श्रीमती भावना जितेन्द्र रघुवंशी
सैयद अजमल अलीशाह  
*होली सुलहकुल का त्योहार*
वक्ता- डॉ. जे एन टंडन, 
समाज विद और बाल रोग विशेषज्ञ
*अध्यक्षता* :  डॉ विनीता सिंह, निदेशक, ललित कला संस्थान, डॉ भीमराव आम्बेडकर विवि, आगरा।
*विशेष उपस्थिति* : डॉ. सोम ठाकुर, श्री सुरेन्द्र शर्मा, इंजी. शशि शिरोमणि राजवीर सिंह राठौर, डॉ. शशि तिवारी, डॉ. ज्योत्स्ना रघुवंशी, श्री गजेंद्र सिंह।
*नज़ीर की होली*
रचना : नज़ीर अकबराबादी
गायन प्रस्तुति: आकांक्षा शर्मा
*इप्टा के जनगीत*
संयोजन : दिलीप रघुवंशी
*ताल रिदम*
तबला वादन : भानु प्रताप सिंह
*सेठ बाँकेमल*
कृति : अमृतलाल नागर 
एकल नाट्य : निर्मल सिंह
*ब्रज के कन्हाई*
नृत्य प्रस्तुति : नृत्य ज्योति कत्थक कला केंद्र के विद्यार्थियों द्वारा
निर्देशक: श्रीमती ज्योति खण्डेलवाल.
परिसर में  प्रदर्शनी
*Zoom on Agra*
Mobile Click By 
*wasif khan & Anuj Lahari*

(होली मिलन और जलपान)
*स्थान: होटल गोवर्धन, दिल्ली गेट आगरा*

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Thursday, March 1, 2018

बस आपके आने की देर है...


साथियों बस चंद रोज बाद....
रंग-ए-सुलहकुल 







  • निमंत्रण पत्र आ चुका है...
  • तारीख वार इवेंट सेट हैं...
  • बस आपके आने की देर है... 











  • आप तो जरूर आईए...
  • साथियों को भी लाईए...
  • जश्न-ए-रंग भी मनाइए..